नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, July 14, 2011

मुंबई और मुंबई की स्पीरिट

कल एक और बोम्ब ब्लास्ट हो गया . अब तक ३१ लोगों के मारे जाने की खबर है , सैंकड़ों हस्पताल में है . सब कुछ सामान्य है . हाँ अब हर हादसा सामान्य  हो गया है . हर हादसे के समय बिजली की गति से फैलती खबर . मोबाईल फ़ोनों का जाम हो जाना . सच्ची ख़बरों के साथ साथ अफवाहों के और कितने ही  बोम्ब ब्लास्ट जुड़  जाना  .
 FM रेडियो वालों को एक नया मसाला मिल जाना . गानों के बीच में ये बताना की धीरज बनाये रखें . कहाँ ट्राफ्फिक जाम है  उसकी सूचना देना और  अफवाहों को आगे न बढ़ाएं इसकी सलाह देना . TV के न्यूज़ चैनलों को मिल जाता है एक नया विषय जरा हट के . गृह मंत्री , मुख्य मंत्री पिछले मंत्रियों की गलती से सबक लेते हुए तुरंत घटना स्थल पर पहुँच जाते हैं और जनता को बयान देते हैं . बड़े बड़े लोगों का निंदा प्रस्ताव , हताहतों के साथ संवेदना , विदेशों के सन्देश - सब कुछ सामान्य नहीं तो और क्या है ? हाँ एक और चीज भी सामान्य  है - दुर्घटना की अगली सुबह मुंबई वासियों का सवेरे सवेरे अपना खाने का डब्बा लेकर दफ्तर के लिए निकल पड़ना . मीडिया के कैमरे पकड़ लेते हैं किसी राह चलते को और पूछते हैं - कल इतना बड़ा धमाका हो गया शहर में , क्या आपको डर नहीं लगता. बेचारा मुम्बईकर अचानक पूछे हुए इस प्रश्न का उत्तर देता है - डरने से क्या होगा ? काम नहीं करेंगा तो कैसा चलेंगा ? और बस , इसके बाद की कहानी कहने लगता है वो मीडिया का साक्षात्कार कर्ता- " ये है मुंबई की स्पीरिट , जो कभी मरती नहीं , जो कभी डरती नहीं . मुंबई शहर इसीलिए मुंबई कहलाता है क्योंकि हर मुंबई वाला हर हादसे को भूल कर अपने जीवन को सामान्य बनाने में जुट जाता है ." बेचारा मुम्बईकर सोचता है की मैंने ऐसा क्या कह दिया . वो थोड़ी देर समझ भी नहीं पाता की ये महाशय उन जैसे मुम्बईकरों की तारीफ़ कर रहें हैं या मजाक उड़ा रहें हैं.
क्या यही है मुंबई की स्पीरिट ? पडोसी  के घर में मौत का मातम हो और आप निकल जाएँ डब्बा लेकर दफ्तर के लिए . किसी मुहल्लेवाले का बच्चा रात भर घर नहीं लौटा और आप स्कूल को फोन कर के पूछें की स्कूल खुला  है या नहीं .
मीडिया ने मुंबई की स्पीरिट का मजाक बना दिया है . रोजमर्रा का जीवन , नौकरी के लिए जाना , बच्चों को स्कूल भेजना - ये सब जीवन की मजबूरियां हैं , कोई बहुत बहादुरी वाली भावना नहीं . हर व्यक्ति अन्दर से कहीं न कहीं सहमा होता है ऐसे हादसों के बाद . मुंबई की आत्मा है उन लोगों की वजह से जो इस हादसे के वक़्त उतर पड़ते हैं सड़कों पर लोगों की मदद करने .      
इन सब से उन लोगों का क्या भला होता है जिन्होंने अपनों को खोया है या जिनके अपने मौत से लड़ रहें हैं हस्पतालों में .

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