अगर एक वैज्ञानिक से पूछा जाए की प्राण क्या है , तो उसके पास कोई बहुत स्पष्ट उत्तर नहीं होगा . लम्बी चौड़ी व्याख्या तो वो करने लगेगा, लेकिन एक परिभाषा उसके पास नहीं मिलेगी .अगर ये पूछा जाए की जीवित होने के क्या लक्षण हैं ! इस प्रश्न के उत्तर में जैविक विज्ञान-विद ये लक्षण बताएँगे -
१. जीवित प्राणी किसी न किसी रूप में ऊर्जा को अपने अन्दर लेता है .
२. जीवित प्राणी अपने अन्दर से अपान वस्तुओं का त्याग करता है .
३. जीवित प्राणी निरंतर परिवर्तनशील है.
४. जीवित प्राणी वातावरण से प्रभावित होता है .
५. जीवित प्राणी की संरचना में लम्बे अन्तराल में मौलिक परिवर्तन भी आते हैं .
एक विज्ञान विद से पूछा जाए की पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ कैसे हुआ ! इस प्रश्न का भी कोई स्पष्ट उत्तर मिलने की सम्भावना नहीं है . हाँ इस पर वो प्रचलित मान्यताओं में तीन का जिक्र करेगा -
१. पृथ्वी पर विभिन्न धर्मावलम्बियों ने इस विषय पर अपनी अपनी अवधारणायें बना रखी है ; सबकी सोच अलग अलग होते हुए भी एक बात सबकी मिलती है , वो यह की कोई बहुत बड़ी शक्ति है , जिसने पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ किया . ये अवधारणाएं पीढ़ी दर पीढ़ी पोषित हो रही हैं . हालाँकि इन धारणाओं को सही मानने के लिए कोई प्रमाण नहीं है , लेकिन इन्हें गलत सिद्ध करने के लिए भी कोई प्रमाण नहीं है . इसलिए विज्ञान की नजर में ये धारणायें विज्ञान की सीमा और सम्भावना के बाहर का विषय है .
२. दूसरी प्रचलित मान्यता के अनुसार जीवन ब्रह्माण्ड के किसी दूसरे भाग से संयोग मात्र से पृथ्वी पर आया है . कई वैज्ञानिकों का विश्वास है कि किसी पुच्छल तारे या धूमकेतु या उल्का के पृथ्वी से टकरा जाने के कारण पृथ्वी पर जीव का प्रवेश हुआ है .उनके चिंतन के अनुसार जब ये खंड अपनी जगह से टूट कर सौर मंडल में प्रवेश कर रहे थे तब सूर्य के मंडल में इनका कुछ भाग तो खो गया और कुछ भाग अपने आप में जैविक परमाणुओं को लेकर पृथ्वी पर आ मिला . अपनी बात के पक्ष में उनका कहना है कि प्रत्येक वर्ष पृथ्वी के किसी न किसी भाग में अंतरिक्ष से उल्का खण्डों की वर्षा होती है . ऐसे पुच्छल तारे दूसरे ग्रहों पर भी पहुंचतें हैं , ऐसे उदहारण है वैज्ञानिकों के पास.
३. तीसरी और सबसे प्रचलित मान्यता जो सबसे अधिक प्रचलित अवधारणा है विश्व के वैज्ञानिकों के बीच ; उसके अनुसार जीवन का प्रारंभ पृथ्वी पर करीब ३५० करोड़ वर्षों पहले हुआ था . पृथ्वी के मंडल में एक साथ बहुत मात्रा में रासायनिक प्रतिक्रियाएं हुई . १९५० में दो वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया . उस प्रयोग में उन्होंने पृथ्वी के प्राचीन बाह्य मंडल को प्रयोगशाला के अन्दर निर्मित कर के , उस मंडल में कुछ रासायनिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया .उनका कहना था की उन प्रयोगों में जीवाणुओं के अंश ( अमीनो एसिड ) ऐसी अवस्था में पैदा होते हैं .उनका ये भी मानना है कि कालांतर में ये अंश एक दूसरे से जुड़ गए और जिससे हुआ- प्रारंभिक जीव का निर्माण .
विज्ञान हो या दर्शन - जीवात्मा सबके लिए एक अनबूझ पहेली की तरह है .अंतर ये है की विज्ञान अपने प्रयत्नों से जीवात्मा के आने और जाने के कारण तथा जीवन की संरचना को ढूंढ रहा है और दर्शन ने इसे ईश्वरीय व्यवस्था मान कर जीवन को जीने के निर्देश तैयार कर लिए हैं . दोनों का साथ साथ चलना ही मानवता के लिए हितकारी है !
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