नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, July 1, 2011

चवन्नी


आज से चवन्नी बंद ! कितना लडती महंगाई से ? बेचारी का अस्तित्व ही ख़त्म कर दिया इस मुई महंगाई ने ! बेचारी अबला चवन्नी  ! भिखारी भी चवन्नी मिलने  पर कुछ ऐसे देखता है जैसे कह रहा हो कि आ जा मेरे साथ हो ले !
जीवन से जुडी एक बात यहाँ आपसे शेयर करता हूँ . बात ४४ साल पुरानी है, जब मैं कुल नौ वर्ष का था और कलकत्ता में चौथी क्लास में पढता था . सुबह का स्कूल था .घर से ६.३० बजे निकल कर पैदल जाता . करीब आधी किलो मीटर कि यात्रा थी ८-१० मिनट में पहुँच जाता था . पहले मेरा जेब खर्च बिलकुल शून्य था, लेकिन मेरी   जोरदार मांग पर मेरी दादीमाँ ने मेरे लिए  रोज एक चव्वनी का जेबखर्च पारित करवाया . मेरी माँ को लगता था कि मैं तब तक पैसे वैगरह सँभालने के लायक नहीं हुआ था .
मेरे लिए मुश्किल थी कि इस चवन्नी का रोज क्या जाये ? आखिर मुझे मेरा मनपसंद उपयोग मिल ही गया . मेरे स्कूल के रास्ते में एक अनाज की दुकान पड़ती थी. यूँ तो उस दुकान में गेहूं , चावल, ज्वार  आदि बिकता था , लेकिन सुबह  के समय में उसका मालिक बेचता था कबूतरों के दाने . बहुत से लोग वहां दाने खरीद कर सामने पेड़ के नीचे बिखेर देते थे , जहाँ भीड़ लग जाती थी बहुत सारे कबूतरों की , जो बड़े मजे से अपनी गर्दन मटका मटका कर दाने चुग चुग कर खाते थे . साथ में उनका एक गुटर गूं का संगीत चलता रहता था . बस मेरी समझ में आ गया की मुझे रोज उस चवन्नी  का क्या करना है . बस साहब , उस दिन से रोज मैं चार आने के दाने खरीदता और कबूतरों के आगे डाल  देता . मुश्किल ये थी की मेरा काम यहाँ पूरा नहीं होता था . मैं बहुत देर तक उन कबूतरों को वो दाने खाते हुए देखता रहता था . उसका परिणाम ये होता कि कई बार मैं स्कूल पहुँचने में लेट हो जाता . स्कूल से कई बार मुझे चेतवानी दी गयी . आखिर एक दिन स्कूल ने माताजी को शिकायत की कि आपका सुपुत्र प्रायः लेट आता है . बस फिर क्या ! घर पहुँचते ही मेरी पूछताछ शुरू हो गयी . पहले तो मैंने डर  के मारे कारण  नहीं बताया . मुझे लगा था कि शायद पैसों से कबूतर को दाना खिलाना कोई अच्छी बात नहीं है. ये भी डर  था कि मेरा जेब खर्च भी बंद हो सकता है . लेकिन बताने के अलावा कोई रास्ता नहीं था . सो हिम्मत कर के बता दिया .
और साहब , ग़जब हो गया . मेरी दादी ने प्यार से मुझे गले लगा लिया . माँ की आँखों में भी नमी दिखाई दी . और सबसे अच्छी बात ये हुई कि उस दिन से दादी ने मेरा जेब खर्च दुगुना करवा दिया . यानि की दो चवन्नी ! हुर्रा ! मजा आ गया ! लेकिन दादी की एक शर्त थी की दूसरी चवन्नी मैं अपने मन की चीज पर खर्च करूँगा . अब मैं दादी को  क्या समझाता की मैं तो पहली चवन्नी भी अपनी मन की चीज पर ही खर्च कर रहा था . 
बाय बाय चवन्नी ! तुम्हे बहुत याद करूँगा !

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