नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Monday, February 14, 2011

सही ठिकाना : एक लघु कथा

" भगवान के नाम पर कुछ दे दो ! दो दिनों से भूखा हूँ , कुछ खाया नहीं ; लालाजी ! माताजी ! सेठजी ! " बूढा भिखारी सिद्धि विनायक मंदिर के बाहर हर आने जाने वालों से गुहार लगाता . लोग मंदिर में वैसे भी भक्ति भाव में रहते हैं , लेकिन ऐसा कोई भिखारी सामने आ जाये तो उसे भक्ति की आड़ में अनदेखा कर जाते हैं . एक हफ्ते की मेहनत का परिणाम था कुल ७८ रुपैये और ४५ लड्डू  .

निराश होकर ढाबे  वाले से बोला - " रहमत भाई, कैसे काम चलेगा इस महंगाई में ? " रहमत ने सलाह दी - " भैय्या दान बख्शीश  के मामले में मुसलमान ज्यादा आगे रहते हैं , इसलिए तुम किसी मस्जिद के बाहर अपना ठिकाना बनाओ .

अगली सुबह भिखारी ने थोडा अपना हुलिया बदला और जा बैठा माहिम  दरगाह के बाहर . थोडा मांगने का तरीका बदल लिया - " मेहरबान , परवरदिगार के यहाँ  जाकर आ रहे हो , थोड़ी मदद करो इस बूढ़े की . खुदा बहुत देगा , इस बूढ़े को एक वक़्त के खाने के पैसे दे जाओ " . यहाँ तो मामला और भी बेकार रहा . कोई भी पैसे देने को तैयार नहीं था ; जो लोग रुक कर बात सुनते , सीधा मशविरा दे डालते - "यहाँ बैठ कर पैसे क्यों मांगते हो ; बाहर ढाबों की लाइन लगी है ; वहां लोग पैसे जमा दे जाते हैं . भिखारी जमात लगा के बैठे हैं , तुम भी बैठ जाओ . दोनों समय का खाना मिल जाएगा " . अब उन लोगों को कौन समझाए की अगर वो खाना उसने दो तीन दिन खा लिया तो उसे शायद जिंदगी में खाना खाने की जरूरत ही ना पड़े .

गुरुबक्श सिंह की दुकान पर चाय पीते हुए भिखारी ने कहा - " सरदार जी ! हम गरीबों का क्या होगा ? ना मंदिर में भीख मिलती है ना मस्जिद में ! " सरदारजी ने कहा - " गुरूद्वारे पर जाकर बैठ जा . सिख बहुत खुले हाथ के होते हैं , तेरा गुजारा चल  जाएगा , ५-७ दिन भिखारी गुरूद्वारे पर भी बैठ लिया . खाना , प्रसाद वैगरह  का जुगाड़ तो हो जाता था लेकिन पैसे नहीं मिलते .

एक शराबी मिला ; नशे की पिनक में पूछा - " क्यों बुड्ढे ? इतना दुखी क्यों है ? भिखारी ने कहा - " लोगों की कंजूसी  से दुखी हूँ . मंदिर ,मस्जिद , गुरुद्वारा- हर जगह बैठ कर देख लिया , कोई भी आदमी भिखारी के लिए जेब में हाथ नहीं डालता" . शराबी बोला - " तू स्स्साला बैठाइच गलत जगह पर है . अरे किसी दारू के ठेके के बाहर बैठ ; लेकिन हाँ माँगना उनसे जो बाहर निकाल रहें हैं ; फिर देख लाइफ का मजा . "

भिखारी ने सोचा ये भी कर के देख लिया जाए . अँधेरी के एक बहुत बड़े बिअर बार के बाहर अड्डा जमाया . भिखारी ने गुहार लगाना शुरू किया - " लालाजी, मियांजी , सरदारजी ! बहुत बढ़िया लग रहें हैं , जरूर आज बहुत खुश हैं आप ; बन्दे का भी जुगाड़ कर देवें " 

और लो ! पैसे बरसने लगे . पहले दिन ही रात के अढाई बजे जब बार बंद हुआ तो भिखारी ने हिसाब लगाया . कुल कमाई - ५७५   रुपैये   और तीन आधी से ज्यादा खाली बोतल दारू की . सबसे बड़ा नोट १०० रुपैये का , ५ नोट ५० ५० के . भिखारी गदगद हो गया . पैसे संभाल के रखे. अलग अलग बोतल की दारू पीकर टुन्न हो गया . 

लडखडाता हुआ बार के दरवाजे पर आया और हाथ जोड़ कर कहा - " हे भगवान , अल्लाह , गोड, वाहे गुरु वैगरह वैगरह . तूने आज मेरी सुन ली . .......................लेकिन एक बात बता , पता  तूने कहीं और का  दे रखा  हैं और रहता तू कहीं और है ...............ये क्या चक्कर है ! खैर जो भी है ठीक है भगवान , आखिर सही जगह भी तूने ही पहुंचा दिया ."  



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