नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Monday, January 5, 2015

टूटे पुतले - एक कहानी


मुन्नी अपनी नयी गुड़िया  बहुत खुश थी।  वो अपनी गुड़िया को नए नए कपडे  पहनाती , उसके बाल  बनाती और उसे अपने पास सुलाती। इतना ही नहीं उसने अपनी सहेली के गुड्डे के साथ उसका ब्याह ही रचा डाला। अपने सुख दुःख की बाते गुड़िया से करती। कभी गुस्सा आता तो वो गुड़िया को  डांट  भी देती ; हाँ , बाद में उसे सॉरी बोल देती।

एक दिन ग़जब हो गया।  छोटे भाई बबलू ने नाराज़ होकर उसकी गुड़िया तोड़ दी। मुन्नी के दुःख और क्रोध  ठिकाना नहीं रहा।  वो बबलू पर चिल्लाई।   इतने से उसका मन शांत नहीं हुआ तो एक  चांटा बबलू  को रसीद कर दिया। बबलू रोते  रोते मां के पास गया। माँ ने मुन्नी को धमकाया और उसके कान खींचे।  मुन्नी ने कहा बबलू ने उसकी प्यारी गुड़िया तोड़ दी ,  उसे कुछ कहने की जगह उसे क्यों डांटा जा रहा है। माँ ने कहा गुड़िया तोड़ दी , उसके लिए उसे डांट मिलनी ठीक थी , लेकिन उसे इतनी  छोटी  गलती पर चांटा नहीं मारना चाहिए।  गुड़िया का क्या है , बाजार  से  खरीद कर लाये थे , दूसरी आ जायेगी ! बात रफा दफा  हो गयी।

५ -७   साल बाद की एक घटना !  दादी अपने पूजा घर में बैठ कर भगवान जी की पूजा कर  रही थी। दादीजी दिन में कम से कम ८-१० घंटे पूजा घर में बिताती।   दिनचर्या शुरू होती भगवान जी को सुबह जगाने से लेकर।  फिर वो भगवानजी को स्नान  करवाती , धुले हुए कपडे पहनाती , नाश्ते का भोग लगाती , झूला झुलाती।  दोपहर का भोजन खिला कर भगवान जी को सुला   देती।

 उस दिन यही भगवान जी के सोने का समय था। बबलू बाहर से क्रिकेट खेल कर लौटा।  उसके हाथ में क्रिकेट का बल्ला और भारी वाली गेंद थी। खेल की मस्ती में उसने गेंद को बल्ले से  मार दिया।  फिर कुछ ऐसा हुआ जिससे घर में एक तूफ़ान खड़ा हो गया।  बबलू की गेंद सीधी पूजा घर में गयी और भगवान जी की मूर्ति से टकराई।  गेंद की चोट से मूर्ति का सर टूटकर अलग हो गया।  दादीजी बिलकुल पगला गयी। बुरी  तरह चिल्लाने लगी - ' आज मेरी जीवन भर की तपस्या नष्ट हो गयी।  मेरे ही घर में मेरे भगवान जी को चमड़े की गेंद से खंडित कर दिया।  मैं कहाँ जाऊं।  लड़के ने मेरे लिए नर्क के द्वार खोल दिए। '

माँ ने ये सब देखा तो अपना आपा खो दिया।  लगी बुरी तरह बबलू को पीटने। बबलू डर के मारे सहमा हुआ  तो था ही , माँ के इस आक्रमण से रोने लगा।  उधर से पापा आ गए , उन्होंने जब सारा दृश्य देखा तो उनका भी पारा चढ़ गया।  उन्होंने भी बबलू को २ तमाचे लगा दिए।

ये सारा दृश्य मुन्नी देख रही थी।  उससे नहीं रहा गया। उसने बीच में पड़  कर बबलू को बचाया। उसे अपने पीछे छुपा कर जोर से बोली - ' क्यों पीट रहे हैं आप इसको ? क्या बिगाड़ा है इसने ?'

दादी चिल्लाई - ' तुम्हे  दिख नहीं रहा ,  इसने भगवान जी को तोड़ दिया ! फिर भी पूछती है  बिगाड़ा है ?'

मुन्नी ने कहा - ' इसने सिर्फ  एक पुतले को तोडा है , और वो भी जान बूझ कर नहीं। '

माँ ने कहा - ' मुन्नी ,  देखती नहीं दादीजी रोज कितने प्यार से भगवान जी को तैयार करती है , भोग  लगाती है और उनकी पूजा करती है।  भगवानजी को एक पुतला कह के तुम उनका अपमान कर रही हो !'

मुन्नी ने अपने उसी तेवर में कहा - '  आखिर क्या फर्क है , दादीजी के भगवानजी में और मेरी गुड़िया में ? दोनों ही बाजार से खरीद कर लाये गए थे , दोनों ही टूटने वाली वस्तु से बने थे। जितना मैं मेरी गुड़िया से प्यार करती  थी उतना ही दादी अपने भगवानजी से करती थी।  दोनों ही बबलू   के हाथों टूट गयी।  लेकिन दोनों बातों में इतना फर्क क्यों ? मेरी गुड़िया मेरे लिए दादीजी के भगवान  से कम नहीं थी , लेकिन फिर भी आप मुझ  पर नाराज हुए  जब मैंने बबलू को तमाचा मारा। आपका कहना सही था , एक गुड़िया थी उसकी जगह दूसरी आ जायेगी।  फिर आज आप सभी की सोच क्यों बदल गयी ? क्योंकि आपने इस पुतले को भगवान का नाम दे दिया। और अगर यही भगवान थे तो फिर अपनी रक्षा क्यों नहीं कर पाये एक मामूली गेंद की चोट से ! और एक मामूली चोट से बिखर भी गए।  ये तो आम इंसान से भी कमजोर निकले।  ऐसे भगवान जी की प्रार्थना से हमें क्या मिलेगा ?

पापा ने प्यार से कहा - बेटी , बात तो तुम्हारी ठीक है , लेकिन इसमें दादीजी की आस्था का सवाल है !

मुन्नी  ही प्यार से कहा - पापा, दादीजी की  आस्था और मेरी बचपन की आस्था में कोई अंतर नहीं है।  मैंने अपनी गुड़िया से  भावनात्मक रिश्ता जोड़ लिया था , वैसे ही दादीजी ने अपने भगवान की मूर्ति से भावनात्मक रिश्ता जोड़ लिया था।  दोनों के लिए ये एक मनोरंजन था।

दादी ने कहा - मुन्नी , तू सचमुच कितनी बड़ी हो गयी है। ये  बातें कई बार मेरे दिमाग में भी  आती है ; क्या मैं सचमुच भगवान की पूजा   कर रही हूँ , या  बुढ़ापे में अपना मन बहला रही हूँ।  मेरे पास समय बिताने के लिए कोई काम नहीं है। मुझे लगता है की मैं जैसे बचपन में तेरे पापा को प्यार से नहलाती धुलाती , खाना खिलाती , सुलाती - वैसा ही एक अनुभव मैंने इस मूर्ति के साथ शुरू कर दिया।  लेकिन ये सारा अनुभव एकतरफा था ; मूर्ति की तरफ से कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी।

बबलू रुआंसा होकर बोला - दादी माँ ! मुझे माफ़  कर दीजिये।  आज के बाद मैं कभी कोई  तोड़ फोड़ नहीं करूंगा।  कभी भी आपके भगवानजी को कोई चोट नहीं लगने दूंगा।

दादी ने प्यार से बबलू को अपने पास खींचा।  बोली- , बेटा , भगवान  को चोट तुमने नहीं पहुंचाई ,  बल्कि हम सबने पहुंचाई है।  तुम्हारी एक छोटी सी गलती पर हम सबने तिल का  ताड़ बना दिया।  आज के बाद यहाँ कोई भगवान जी नहीं  आएंगे।  मेरे भगवान हो तुम सब।   मेरा प्यार अब मैं एक  मूर्ति पर नहीं लुटाऊंगी।   मेरा प्यार हैं मेरे  पोते और पोती के लिए।

दादी ने परिवार के सभी सदस्यों को अपनी बाँहों में भर लिया।




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