नील स्वर्ग

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प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Wednesday, December 31, 2014

ईमानदार बेईमान - एक लघु कथा


वास्तव में उसकी बहुत ऊंची पहुँच थी। अब सबको अपने बच्चे का दाखिला कराना होता है किसी अच्छे स्कूल में।  बच्चा कितना भी मेधावी क्यों न हो , आखिर स्कूल में सीटें तो सीमित ही होती हैं।  उसमे से फिर सिफारिशी कोटे में आधी तो यूँ ही निकल जाती है। इसलिए जो समझदार और पैसे वाले माँ बाप होते हैं वो खोजते हैं कोई ऐसा शख्श जो कुछ ले दे कर उनका काम पक्का करवा दे। थोड़ी बहुत पूछ ताछ के बाद वो पहुँच जाते थे - गुरुदेव के पास।

न, वो कोई शिक्षक नहीं था ; वो तो था एक बिचौलिया जिसकी ऊपर तक जान पहचान थी। हर व्यक्ति उसके पास जाता था क्योंकि वो ईमानदार था।  उसक पक्का नियम था - वो एक लाख रुपैये लेता था , वो भी अड्वान्स में। उसकी गारण्टी होती थी , की वो दाखिला करवा ही देगा ; लेकिन किसी कारण  से अगर वो दाखिला नहीं हुआ तो पूरा पैसा बिना किसी काट छांट के लौटा देगा।  वो अपनी बात का धनी था।  आज तक एक भी उदहारण ऐसा नहीं था , जहाँ उसने किसी का पैसा काम न होने पर नहीं लौटाया हो।

बात शिक्षा विभाग में ऊपर तक पहुँच गयी। विभाग ने एक इन्क्वायरी बिठाई।  इन्क्वायरी करने वाले इन्स्पेक्टर ने गुरुदेव को बुलाया और पूछा , कि  वो विभाग में किसे पैसे देता है। गुरुदेव ने कहा - किसी को नहीं। इन्स्पेक्टर उसके उत्तर से संतुष्ट नहीं था।  उसने फिर पूछा - फिर बच्चों का दाखिला कैसे होता है ? गुरुदेव ने कहा - प्रभु कृपा से ! इन्स्पेक्टर ने कहा - मतलब ?

गुरुदेव ने कहा - मैं जो भी केस हाथ में लेता हूँ , उसके लिए मंदिर में सवा रुपैये का प्रसाद चढ़ा देता हूँ।  जिनका दाखिला हो जाता है , उनके पैसे रख  लेता हूँ , जिनका नहीं होता ,उस बच्चे के माँ बाप को पैसे लौटा देता हूँ।

इन्स्पेक्टर सोचता रहा - ये शख्श  ईमानदार है या बेईमान !

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