आखिर श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को भारत सरकार ने भारत रत्न से विभूषित कर दिया। और अगर न भी करते तो क्या ? क्या अटल जी का मूल्यांकन घट जाता ? क्या उनका अद्वितीय नेतृत्व , उनकी महान भाषण शैली , उनकी उदारवादी सोच और उनका विश्व से मैत्रीभाव रखने का दृष्टिकोण अपना प्रभाव खो देता ? सच्चाई ये है की अटल जी किसी ऐसे पुरष्कार की प्रतीक्षा नहीं कर रहे थे , बल्कि पूरा देश प्रतीक्षा कर रहा था कि कब तक कोंग्रेसी सरकार निर्लज्जता से अटल जी के इस राष्ट्रीय सन्मान से बचेगी। कांग्रेस की सरकार विलुप्त हो गयी ; आखिर भारत रत्न कहे जाने वाले पुरष्कार का उचित सन्मान हुआ।
नोबेल पुरष्कार देने वाली सभा आज तक महात्मा गांधी को शांति के लिए नोबेल पुरष्कार न दिए जाने की गलती पर खेद व्यक्त करती है।
२ जनवरी १९५४ को जब देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने इस सर्वोच्च सन्मान की स्थापना की , तो शायद उन्होंने नहीं सोचा होगा की भविष्य में यह सन्मान किस प्रकार कांग्रेस के नेताओं की बपौती बन कर रह जाएगा। यहाँ सब सन्मान प्राप्त लोगों की चर्चा कर के मैं उनके देश के प्रति समर्पण को छोटा नहीं बनाना चाहता , हाँ उन लोगों की चर्चा जरूर करना चाहूंगा जिनका नाम आज तक इस सन्मान के लिए क्यों नहीं लाया गया।
देश को आजादी दिलाने वाले शहीदों की पूरी जमात इस सन्मान से वंचित रखी गयी है - वर्ना चंद्रशेखर आजाद , भगत सिंह , राजगुरु, सुखदेव छूट जाते ? १९९२ में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को भारत रत्न सन्मान से सन्मानित किया गया किया गया , लेकिन बाद में उनकी मृत्यु के रहस्य को लेकर उनके मरणोपरांत पुरष्कार की गुत्थी को लेकर पुरष्कार स्थगित कर दिया गया। क्या ये पुरष्कार उनके जिन्दा या मुर्दा होने से सम्बंधित था ? या उनके कार्यकलापों के लिए ?
ये सच है कि हर व्यक्ति को पुरष्कार नहीं दिया जा सकता ; लेकिन ये भी सच है की अगर कामराज , एमजीआर और गुलजारी लाल नंदा भारत रत्न हैं तो श्री अटल बिहारी वाजपेयी उनसे कहीं बहुत अधिक भारत रत्न हैं ! और एक अंतिम प्रश्न ! नेल्सन मंडेला भारत रत्न कैसे हो गए ? न उनका जन्म भारत में और न ही कार्यक्षेत्र भारत - फिर भारत कैसे उनपर अपना रत्न होने का दावा कर सकता है ?
कांग्रेसी राज में रत्नों का चुनाव भी कांग्रेसी पैमानों पर ही होता रहा है।
No comments:
Post a Comment