नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, January 3, 2014

मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल



वैसे मैं आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल का प्रशंसक हूँ। अरविन्द ने एक बहुत अलग रास्ता दिखाया है देश की जनता को। जब देश की  राजनैतिक पार्टियां अरविन्द को ताने मार रही थी- देश के लिए निर्णय सड़कों  पर बैठ कर नहीं होते , उसके लिए चुनाव जीत कर संसद में आना होता है, अरविन्द ने उस चुनौती को स्वीकार किया और आम आदमी पार्टी को जन्म दिया।  अन्ना बिना किसी वजह के अरविन्द से अलग हो गए।  निर्णय अन्ना  का गलत था , अरविन्द का नहीं।

चुनाव की  भारी  सफलता के लिए भी अरविन्द बधाई के पात्र हैं।  दिल्ली के लोगों ने उनमे विश्वास जताया।  अरविन्द ने बहुत खुले शब्दों में ऐलान किया कि वो किसी भी पार्टी को न तो समर्थन देंगे और न ही लेंगे। इससे उनकी छवि और भी सुधरी। ऐसी घोषणा करते वक़्त शायद अरविन्द ने सोचा होगा की उनकी १५-१६ सीटें आएँगी और शायद किसी भी एक पार्टी को उनके सहयोग की  जरूरत पड़ेगी। लेकिन परिस्थितियां  कुछ अलग रंग लेकर आयी।

जब बी जे पी ने सर्कार बनाने से इंकार कर दिया , इसके बाद अरविन्द कि परीक्षा कि घडी आयी।  यहाँ से मैं अरविन्द के निर्णयों से सहमत नहीं हूँ। उन्होंने जनता से पूछने का एक नाटक किया - क्या उन्हें सर्कार बनानी चाहिए।  अरविन्द भाई , जनता अपना निर्णय चुनाव के माध्यम से दे चुकी होती है।  जिन्होंने आपको वोट दिया वो सर्कार बनाने के लिए ही दिया था, लेकिन तब जब आप के पास पर्याप्त बहुमत होता ।  एक बार जब जनता आप को चुन लेती है तो फिर निर्णय लेने का अधिकार जनता आप के हाथ में सौंप देती है। आपको हर निर्णय के लिए फिर जनता के पास जाने की  जरूरत नहीं होती।

आप अपने दिल से ही पूछ लेते कि जिस  कांग्रेस के विरुद्ध आप  जहर उगल उगल कर जनता के चहेते बने थे , क्या उसी की  बैसाखियों पर आप खड़ा होना चाहते हैं। क्या जनता के एस एम् एस निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।  एस एम् एस का कोई नाम नहीं होता।  कोई भी कहीं से कितने भी एस एम् एस भेज सकता है।  सर्कार बनाना कोई टेलीविजन का रियलिटी शो नहीं है जिसका फैसला जनता के एस एम् एस के आधार पर हो सके।  फिर आप को तो दिल्ली के लोगों से पूछना था , एस एम् एस तो पूरे देश से आते हैं।

कल आपने विधान सभा में एक बार फिर विश्वास प्राप्त करने का नाटक खेला।  क्या आपके पास कोई उत्तर था हर्षवर्धन के तीखे सवालों का ? आपका लिखा लिखाया भाषण अच्छा तो था लेकिन सच्चा नहीं था।  आप बात बात में ये कहते हैं कि आप को किसी का सहयोग नहीं चाहिए , दिल्ली की  जनता को चाहिए। ऐसा था तो फैसला दिल्ली की  जनता पर ही छोड़ते कि दोबारा चुनाव करवा के वो किस तरफ मुड़ेगी - इसका फैसला करती ।

अरविन्द आप मुख्य मंत्री तो जरूर बन गए लेकिन कहीं न कहीं आप लोगों के दिलों की  गद्दी से  नीचे उतर गए।  काउन्ट डाउन शुरू हो चूका है आपकी इस सर्कार के गिरने के लिए।  बचने की  एक ही सूरत है - या तो आप कांग्रेस  बन जाओ या  फिर कांग्रेस को अपने जैसा बना लो।  दूसरी बात तो होने से रही , पहली बात का डरहै , क्योंकि उस दिशा में पहला कदम आप ले चुकें हैं।

मेरी शुभकामनाएं अरविन्द !


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