नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, September 14, 2012

राम नाम की लूट है ...........

ऐसा लगता है की देश की सर्कार बहुत जल्दी में है . बहुत जल्दी है सर्कार को अपने आप को  समाप्त करने की . वर्ना ऐसे वक़्त में जब कि  सर्कार घिरी पड़ी है कोल गेट के विवादों में , एक नया पिटारा डीजल के दामों को बढ़ा  कर खोलने की क्या जरूरत थी . वो भी एक साथ साढ़े तेरह प्रतिशत ! अगस्त में की गयी बढ़ोतरी को भी जोड़ दें तो दो महीने में अंतर हो गया 16% का !  ये अच्छा है ! घुट घुट कर मरने से अच्छा है एक साथ  ही शहीद हो जाएँ . 

मिडिया पूछती फिर रही है की इससे कीमतों पर या असर होगा . भई , क्या असर होगा ये बताने के लिए हमारे प्रधानमंत्रीजी की तरह कोई बहुत बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरूरत नहीं . सीधा उत्तर है की हर चीज की कीमत बढ़ेगी . किस अनुपात में बढ़ेगी , ये सोचने का प्रश्न है . आइये एक उदहारण लेते हैं .

सूती कपडा बनाने के लिए कपास की जरूरत  होती है . कपास मिलता है खेतों से ; कपास का मूल्य बढ़ जाएगा क्योंकि खेतों में पैदा होने वाली हर चीज का मूल्य बढेगा ? नहीं समझे - बीज, खाद , ट्रैक्टर , सिंचाई की मोटर - हर वास्तु ही तो महँगी होगी न ?

कपास को मीलों तक ले जाने वाले परिवहन की कीमत बढ़ेगी . कपास से धागा बनाने वाली हर वास्तु महँगी होगी . धागे को जब कपडा बनाने वाली लूमों तक भेजा जाएगा तो वो परिवहन महंगा होगा . कच्चे कपडे को प्रोसेस करने वाली फैक्ट्रियों में भेजा जाएगा - यानि और महंगाई ! कपडा जाएगा सिलाई वाली फैक्ट्रियों में - उच्च और महंगाई . फैक्ट्रियों से वितरक और वितरक से विक्रेता तक पहुँचते पहुँचते कीमत में क्या बढ़ोतरी होगी , इसकी कल्पना आप करें . हर स्तर पर लगने वाले ट्रांसपोर्ट के मूल्य में करीब 10% बढ़ा  देवें - बस अंतर समझ में आ जाएगा . सर्कार को क्यों नहीं आता , पता नहीं !

विपक्ष का इस स्थिति में लाभ लेना तो समझ में आता है , लेकिन सर्कार की सहयोगी पार्टियाँ किस ख़ुशी में घडियाली आंसू  बहा रही है ? बंगाल की टी एम् सी मोर्चा निकालेगी . डी  एम् के मिडिया के सामने सर्कार को गरिया रही है . ये सब तमाशा किस लिए ? भाव बढाने का काम सर्कार ने किया है न की कोंग्रेस पार्टी ने ! एक मिली भगत है - हम भाव बढ़ा  देते हैं , आप लोग शोर शराबा करो , हम फिर एकाध रुपैया कम कर देंगे ; इस तरह से भाव भी बढ़ जायेंगे , विपक्ष की जगह सहयोगी दलों की मूछ ऊंची हो जायेगी , और सर्कार की दयालुता का एक नमूना बन जाएगा . 
 
ये सर्कार समझती है की पब्लिक बेवकूफ है ; लेकिन सर्कार ये नहीं समझ पा रही की वो इस वक़्त सिंहासन पर नहीं बल्कि ऐसे ज्वालामुखी पर बैठी है , जो अंगार बन कर देश की  जनता के दिलों में धधक रहा है ;   फूटेगा - उस दिन ये सारा तंत्र उसके लावा में मिल कर भस्म हो जाएगा .   


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