नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, September 25, 2012

मूर्तिपूजा का व्यापार


मुंबई शहर में आजकल गणेश पूजा की धूम धाम है . पूजा के दिन के बहुत पहले ही इन मूर्तियों का निर्माण करने वालों की दुकाने सज जाती हैं . इन दुकानों पर लोग अपने घरों , कारखानों और मुहल्लों के लिए मूर्तियों का मोल भाव करते हैं . यानि की छोटे गणेश कम दाम में और बड़े गणेश अधिक दाम में उपलब्ध होते हैं . आजकल कुछ समाज सुधारकों ने एक और नया नारा दिया है -  आप इको फ्रेंडली (पर्यावरण अनुकूल ) गणेश ही लाइएक्योंकि जब मुंबई के सभी गणेशों  को समुद्र में विसर्जित किया जाता है तो  उससे  पर्यावरण  का  बहुत अधिक ह्रास होता है .  

प्रायः हर मोहल्ले में गणेश जी की छोटी बड़ी प्रतिमाएं लगायी जाती हैउन प्रतिमाओं का भव्य  शृंगार किया जाता हैबेशुमार पैसे चंदे से इकट्ठे कर के इन प्रतिमाओ को सजाया जाता हैबड़े बड़े  पांडाल  बनते हैं . उन पंडालों की सजावट भी एक से बढ़ कर एक होती हैपंडालों के अलावा संगीत, प्रसाद, झांकियां आदि पर भी बहुत पैसा खर्च किया जाता है . लाखों लोग इन पंडालों में घूम फिर  कर आनंद लेते हैं .  

पिछले कई सालों से कई स्पर्धाएं शुरू हो चुकी हैं , जिसमें एक निर्णायक मण्डली चुनाव करती है की सबसे सुन्दर गणेश कहाँ के हैं . कई अलग अलग मापदंडों पर इसका आकलन होता है . बड़े बड़े पारितोषिक दिए जाते हैं - विजेता गणेश की प्रतिमा को .

मुंबई के लाल बाग़ नाम के इलाके की मूर्ति बहुत ही भव्य होती है ; पूरा लाल बाग़ का इलाका एक मेले के रूप में बदल जाता है . बेशुमार चढ़ावा आता है . करोड़ों रुपैये का खर्च और आमद होती है . इस पूजा के आयोजक - गणेश गली गणेशोत्सव के पदाधिकारी अपने गणेश को २००४ वर्ष से  'मुंबई का राजा'  कहते हैं .

२००८ में एक सज्जन श्री किशोर शर्मा ने एक वेबसाईट का निर्माण किया , जिसका नाम उसने रखा - मुंबई का राजा ( मराठी में मुंबई चा राजा ). इस वेबसाईट के माध्यम से उसने एक स्पर्धा शुरू की जिसमें गणेशोत्सव में जाने वाले लोग अपना मत डाल सकते हैं की उन्हें कौन सी गणेश प्रतिमा और पंडाल  पसंद आये . लोगों के मतों के आधार पर ये वेबसाईट ये फैसला करती है की मुंबई का राजा कौन  से गणेश हैं .पिछले सालों में कौन से गणेश विजेता या उपविजेता रहें हैं और कौन सिर्फ संत्वना पुरष्कार प्राप्त कर सके - ये सारे विजेता गणेश आपको सचित्र इस वेबसाईट पर नजर आयेंगे . आप स्वयं देख सकते हैं- इस वेबसाईट पर - www.mumbaicharaja.com

कुछ दिनों पहले लाल बाग़ वाली संस्था ने मुंबई हाई कोर्ट में इस वेबसाईट के विरुद्ध एक याचिका दर्ज करायी . उनका दावा था कि लालबाग के गणेश को ये पद हमेशा से प्राप्त है , इसलिए इस वेबसाईट को कोई अधिकार नहीं कि वो इसका फैसला करे कि मुंबई का राजा कौन सा गणेश बने . हाई कोर्ट ने अपना निर्णय सुना दिया कि किशोर शर्मा की वेबसाईट ने किसी के अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं किया है . इस प्रकार हाई कोर्ट ने लालबाग के गणेश आयोजकों का दावा अस्वीकार कर दिया . अब मुंबई के किसी भी क्षेत्र के गणेश को ये पदवी जीतने का अधिकार  है .

मूर्ती पूजा के पक्षधर लोगों का ये दावा होता है कि साधारण मनुष्य अमूर्त ईश्वर को समझ नहीं पाता इसलिए उसमें अपनी आस्था नहीं ला पातालेकिन जब वो उसी ईश्वर की प्रतिमा को देखता है तो उसे ईश्वर की भक्ति में खो जाने का भाव प्राप्त होता है . लेकिन क्या वास्तव में ईश्वर की मूर्ती किसी प्रकार की भक्ति का विषय है ? मुंबई में चल रही गणेशोत्सव की प्रतिस्पर्धा और कारोबार से तो यह लगता है कि मूर्ती पूजा  एक सम्पूर्ण व्यापार का रूप हैआम आदमी इस पूरे मेले में एक मनोरंजन को प्राप्त करता है ; आयोजक इसके नाम पर अच्छी खासी धनराशी जुगाड़  कर पाते हैं . और जब इस कारोबार की स्पर्धा और इर्ष्या बहुत अधिक बढ़ जाती है तो लोग कोर्ट कचहरी तक चले जाते हैं . इसे पर्यावरण के ह्रास का कारण अब स्वयं मूर्तिपूजक मानने लगे हैं .