नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Wednesday, August 22, 2012

क्या कहना है , क्या सुनना है

आखिर कांग्रेस ने चैन की सांस ली . अन्ना एंड कंपनी हार मान कर चले गए . जाते जाते ये धमकी दे गए की अब अगला मुकाबला चुनाव के मैदान में होगा . फिर आये बाबा रामदेव . उन्होंने अपनी सभा पहले कांग्रेस को निमंत्रित कर के शुरू की . बाबा भी जानते थे की कांग्रेस जैसी अहंकारी पार्टी के कानों पर जूं  भी नहीं रेंगेगी . उनका अगला दांव था , अन्य सभी राजनैतिक दलों को अपने मंच पर दावत देना . और लोग आये . खूब जम कर आये और जम कर बोले . कांग्रेस को कहने को एक बात मिल गयी की बाबा तो बी जे  पी के ही आदमी हैं . बाबा भी जोरदार गर्जना के साथ हरिद्वार चले गए .

कांग्रेस ने सुख की सांस ली . वो ये समझती है कि  खतरा टल  गया. उनका ये सोचना उस कबूतर की सोच की तरह है जो आँखें बंद कर के कल्पना करे कि  बिल्ली उसके सामने से हट गयी . कांग्रेस का खतरा अन्ना या बाबा नहीं , बल्कि स्वयं कांग्रेस है . एक के बाद एक घोटाला ! कोमनवेल्थ  ! टू  जी ! एअरपोर्ट की जमीन ! और अब कोयला कांड ! सारे एक से बढ़ कर एक ! लाख करोड़ अब भ्रष्टाचार की एक छोटी इकाई बन चुकी है . बतीस रुपैये की कमाई  को गरीबी रेखा की उपरी सीमा  बताने वाले देश में एक एक मंत्री लाख करोड़ की लूट मचा रहा है . और अब तो पानी सर से ऊपर जा चुका  है . पहले के सारे घोटाले तो अलग अलग मंत्रियों की देख रेख में संपन्न हुए थे , और विपक्ष तक भी प्रधानमंत्री को एक विफल लेकिन इमानदार प्रधानमंत्री मानता था . लेकिन इस बार तो सारे छलावे  समाप्त हो चुके हैं  . कोयला विभाग सीधा सीधा मनमोहन सिंह जी के अंतर्गत रहा है . कोयला खानों के सारे आबन्टन  उनके ही हस्ताक्षर से हुए हैं . ऐसे में कोई क्या कहे और क्या सुने . कपिल सिब्बल पालतू मंत्री की तरह कह रहें हैं की हमारे प्रधानमंत्रीजी कुछ भी गलत नहीं कर सकते हैं ; जिसका सीधा सीधा मतलब ये निकलता है की बाकी सारे मंत्री तो कुछ भी गड़बड़ कर सकते हैं लेकिन प्रधानमंत्री जी नहीं .

अन्ना और बाबा अपना अपना आन्दोलन कर के चले  गए - ऐसा कांग्रेस समझती है . आन्दोलन कोई आयोजन नहीं है ,जो 3-4 दिनों के लिए रामलीला मैदान या जंतर मंतर पर होता है . आन्दोलन एक वृक्षारोपण है , जो एक बीज को मिटटी में डालने से शुरू होता है . आन्दोलन उसी ख़ामोशी से आगे बढ़ता है जिस ख़ामोशी से मिटटी के नीचे दबा हुआ बीज अंकुरित होता है  और पनपता है . वो नजर तब आता है जब वो एक ऐसे विशाल पेड़ का रूप धारण कर लेता है , जो कठोर से कठोर तूफानों में भी सर उठाये खड़ा होता है . भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना और बाबा का आन्दोलन भी ऐसे ही एक बीज के रूप में प्रत्येक भारतीय के ह्रदय में पनप रहा है . और इसका विशाल रूप दिखाई देगा जब अगले चुनाव में पूरे देश का जनादेश इस भ्रष्ट सर्कार के खिलाफ दिखाई देगा .

ऐसे में याद आती एक गीत की पंक्तियाँ - ' कुछ न कहो , कुछ भी न कहो ; क्या कहना है , क्या सुनना है ; हमको पता है , तुमको पता है ,समय का ये पल थम सा गया है !'

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