लोकपाल एक ऐसे फुटबाल मैच का रूप ले चूका है जो कभी ख़त्म ही नहीं होता .लोकपाल बिल उस गेंद की तरह से है जिसे एक तरफ सर्कार ठोकर मारती है तो दूसरी तरफ विपक्ष . मजे की बात ये है की इन दोनों के खेल में गोल होता है हमेशा जनता के ऊपर !
लोकसभा का एक सत्र और निकल गया - लोकपाल पर बकवास के एक और दिन के पश्चात . इस
बार भी सर्कार ने चुने अंतिम दिन इस विषय पर बहस के लिए . सर्कार जानती है की अंत
के एक दो दिन इस विषय को टालने के लिए ज्यादा आसान हैं . बिल पास हो या न हो , अगली
तारीख तो मिल जाती है सर्कार को. और इस तरह ये यु पी ऐ सर्कार अपना कार्यकाल पूरा
करना चाहती है .
ये ड्रामा पहले हुआ था २९ दिसंबर को जब लोकसभा द्वारा पारित किया हुआ लोकपाल
बिल फंस गया राज्यसभा की मझदार में . सर्कार के पास पूरा समर्थन नहीं था अपने
द्वारा पेश किये हुए लोकपाल बिल को पास करवाने का . अच्छा ही था , नहीं तो एक लचर
सा बिल जनता के मुंह में ठूंस दिया जाता , जो किसी काम का नहीं था . राज्यसभा में
इस बिल में सुधार प्रस्तावों का अम्बार लग गया ; जिसमे कुछ प्रस्ताव तो सही मुद्दों
पर आधारित थे और बाकी स्थिति को जटिल रूप देने के लिए लाये गए थे . सर्कार ने उस
दिन छुट्टी ली ये कह कर की अगले सत्र में इस बिल को पूरे सुधारों के साथ पास
किया जाएगा .
वो अगला सत्र भी आ गया . पूरा सत्र निकल गया . कल जब सत्र का अंतिम दिन से
पहले वाला दिन था तो सर्कार ने निकाला अपना लोकपाल बिल - बिल में से ! मजे की बात
ये थी की इस बार के बिल में लोकसभा में पास किया गए बिल की कई बातें नदारद थी .
लोकायुक्त के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस ने , जो की यु पी ऐ का ही एक घटक दल है ,
अपना मत सर्कार के विरोध में दिया था , इसलिए इस मुद्दे को ही निकाल दिया सर्कार ने
. पारलियामेंत्री अफयेर्स के राज्य स्तर के मंत्री वी
नारायणस्वामी ने बिल को पेश करने की औपचारिकता की . इस बार तो हद हो गयी ; लोकसभा
के पास इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात करने का भी मन और समय नहीं था . समाजवादी दल
के नेता नरेश अग्रवाल ने एक नया तुर्रा छोड़ दिया एक नया मोशन ला कर के - ' इस बिल
को चुनिन्दा समिति ( सेलेक्ट कमिटी ) के पास भेज दिया जाए ; और समिति अपनी रिपोर्ट
तीन महीने में पेश करे .'
समाजवादी पार्टी ने तो ऐसे प्रस्ताव रख दिया मानो वो ही सर्कार हो . दरअसल इस
विषय पर वो सर्कार नहीं तो सर्कार का मोहरा जरूर थी . चोर चोर मौसेरे भाई !भारतीय
जनता पार्टी ने इसका पुरजोर विरोध किया . अंततः बिल को फिर वापस बिल में डाल दिया
गया तीन महीनों के लिए . मजे की बात ये है की अगले सत्र यानि मानसून सत्र में भी
समिति की रिपोर्ट पेश की जायेगी सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन . यानी की जितना
खींच सको खींच लो भैया !
इस चुनिन्दा कमिटी में विबिन्न दलों के प्रतिनिधि के रूप में १५ सदस्य है . ये
समिति जिन मुद्दों पर निर्णय लेगी उनमे से महत्व पूर्ण हैं - लोकायुक्त लोकपाल
के अंतर्गत हो या नहीं , सरकारी मदद हासिल करने वाले एन जी ओ लोकपाल के दात्रे
में हो या नहीं , लोकपाल की नियुक्ति में सर्कार के हाथ में विशेष अधिकार हो या
नहीं , सी बी आई लोकपाल के अंतर्गत हो या नहीं , भ्रष्टाचार के मुद्दे किसी विशेष
अदालत में सुने जाय या लोकपाल के सामने - इन सारे मुद्दों पर सहमति बनाए का काम
करना है इस समिति को . और वो सहमति कभी बननी नहीं ; न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी और फिर से एक बार हाथ झाड़ कर
सर्कार अपनी मजबूरी बता देगी मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह में . यानि की एक्सन
रिप्ले !
जनता ये फुटबाल मैच झेलती रहेगी और सर्कार और विपक्ष अपना ये खेल खेलते रहेंगे .
क्या प्रजातंत्र का अर्थ ये है की जनता बार बार उन्ही लोगों को चुनके भेजती रहे जो
संसद में बैठ कर इस तरह का तमाशा करते हैं . प्रजातंत्र के नाम पर ये धोखे का खेल
चल रहा है १९६८ की संसद से . तब से लेकर अब तक ये बिल हर संसद में लाया गया और
हटाया गया . धृतराष्ट्र सा अँधा ये राष्ट्र , गांधारी की तरह अपनी आँखों पर पट्टी बांधे इस देश की जनता - अपने ही पैदा किये इन कौरवों की ये द्युत क्रीडा देखती रहती है , लेकिन टाइम पास की बहस से अधिक कुछ नहीं करती . अन्ना हजारे जैसे विदुर की आवाज भी नक्कारखाने में तूती की तरह ही है ! ऐसे में भारत अब महाभारत बन चुका है .
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