नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Sunday, January 15, 2012

विद्वान अनपढ़

 पिछले हफ्ते मैं और मेरी पत्नी एक संक्षिप्त अवकाश के लिए कर्नाटक में मैसूर के पास स्थित एक खूबसूरत रम्य स्थान पर गए - जिसका नाम है  औरेंज काउंटी कबीनी ! वहां पहुँचने के लिए बैंगलोर से कार की यात्रा है करीब पांच घंटे की . कबीनी वहां एक नदी का नाम है .

 हमने भी एक कार ली . कार का ड्राइवर  नन्दीश हिंदी अच्छी  तरह समझता और बोलता था . और इतना ज्यादा बोलता था की सारे रस्ते या तो हम उसकी बात सुनते रहे , या फिर उसे हमारी बातों में भी हिस्सा लेने की इजाजत देनी पड़ी . एक खास बात ये थी की वो व्यक्ति हर विषय पर अच्छी जानकारी रखता था . मसलन जब मैंने अपने ब्लैक बेरी फोन में भरे हुए गीत बजाने  शुरू किये  तो उसने मुझसे अनुरोध किया कि , क्या मैं ये गीत उसके सेल फोन में भेज सकता हूँ . मैंने टालने के लिए कहा की मेरा फोन ब्लैक बेरी है इसलिए इसमें सामान्य तरीके से संगीत नहीं भेजा जा सकता . उसने छूटते  ही कहा तो आप ब्लू टूथ से भेज दीजिये .

रस्ते में एक जगह हमने कुछ नाश्ता करने के लिए गाडी रोकी . वो हमारे पास की टेबल पर बैठ कर नाश्ता कर रहा था . मैंने वेटर से कहा , की हमारे ड्राइवर का बिल भी हमें ही दे देवे . हम बिल का पेमेंट कर के गाडी में आ गए . नन्दीश ने  गाड़ी स्टार्ट कार दी . वो पूछने लगा - साहब आपने  मेरा कितना बिल चुकाया . मैंने कहा - जाने दो क्या फरक पड़ता है , ये तुम्हारे हिसाब में नहीं पकड़ा जाएगा . उसने फिर भी जोर दे पूछा . मैंने कहा की सिर्फ बयालीस रुपैये . उसने तुरत गाडी के ब्रेक लगा दिया . मैंने पूछा - भाई क्या हुआ ? उसने कहा - साहब होटल वाले ने ज्यादा पैसे ले लिए . मैंने उठने के पहले उससे पूछा था की मेरा कितना बिल हुआ तो उसने पच्चीस रुपैये बताया था ; उससे ज्यादा हो भी नहीं सकता था क्योंकि मैंने जो डोसा  मंगाया था , उसका मूल्य पच्चीस रुपैये ही था . उसने कहा - साहब ज्यादा दूर नहीं आये , गाडी घुमा लूँ क्या ? मैंने कहा - नहीं भाई , सत्रह रुपैये के लिए हमें वहां जाकर बात करने की जरूरत नहीं , ये समझ लेंगे की सत्रह रुपैये वेटर को टिप दे दी . उसने कहा - साहब बात सत्रह रुपैये की नहीं , बात उसूलों की है . आप अपनी  मर्जी से किसी को चाहे हजार रुपैये दे देवें , लेकिन गलत तरीके से कोई आपसे पैसे क्यों लेवे ? उसकी बात में दम था , लेकिन मैंने समय बचाने के लिए उसे आगे बढ़ने का आदेश दिया .

यात्रा के अंतिम दस किलोमीटर का रास्ता बहुत ख़राब था . उस ख़राब रास्ते के बीच अचानक एक आधे किलोमीटर का रास्ता जो एक गाँव से होकर गुजरता था , वहां रास्ता काफी ठीक मिला . मैंने यूँ ही कहा - कमाल है - इस छोटे से टुकड़े को ठीक कर दिया लेकिन बाकी सारा रास्ता इतना ख़राब . नन्दीश अपने एक्सपर्ट कोमेंट देने में कहाँ चूकने वाला था . उसने कहा - साहब , हमारे देश का संविधान लिखा था बाबा साहब अम्बेडकर ने . उन्होंने अपने संविधान में पिछड़ी जातियों के लिए विशेष प्रावधान किये थे . अब ये गाँव पिछड़ी जातियों का गाँव था ; इसलिए और कहीं सड़क बने या न बने, यहाँ जरूर बन जाती है .

मैंने पूछा - नन्दीश , तुम कितना पढ़े लिखे हो ? उसने कहा - दूसरी क्लास तक . मुझे विश्वास नहीं हुआ . मैंने कहा - भाई मुझे तो नहीं लगता की तुम ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हो . उसने कहा - साहब मैं सच कह रहा हूँ , मैं सिर्फ दूसरी तक ही पढ़ा हूँ , लेकिन मेरी पत्नी एक ग्रजुएट है . मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा . मैंने पूछा - नन्दीश, तुम्हारी पत्नी ने तुमसे शादी  करने के लिए हाँ कैसे कर दी . उसने बताया - साहब इसकी भी एक कहानी है ; मेरे घर के लोग पहले लड़की देखने गए थे , उन्हें लड़की पसंद आ गयी , फिर उन्होंने मुझसे कहा की तुम जाकर लड़की से मिल लो और रिश्ता पक्का कर आओ . मुझे पता चला की उन्होंने मेरे अनपढ़ होने की बात वहां बताई नहीं थी . जब मैं वहां गया तो मैंने सबको साफ़ साफ़ बता दिया की मैं सिर्फ दूसरी क्लास तक पढ़ा हूँ और पेशे से टैक्सी ड्राइवर हूँ . उन्होंने पूछा की कमाते कितना हो , तो मैंने कह दिया की कभी सौ रुपैये तो कभी पांच सौ रुपैये , और कभी कभी कुछ भी नहीं . मैंने लड़की को भी बता दिया की मेरे घर में कोई ऐशोआराम नहीं है , लेकिन तुम मुझे पसंद हो , अगर मैं भी तुम्हे पसंद हूँ तो फिर हम शादी कर सकते हैं , वर्ना कोई मजबूरी नहीं . मैंने उसके घर वालों से कह दिया - की अगर आपकी हाँ हो तो मुझे शादी में एक पैसा नहीं चाहिए , बस आपकी बेटी ही चाहिए . उसके घर वालों ने न कर दिया . तीन महीने बाद मुझे समाचार मिला की लड़की कहती है की वो सिर्फ मुझसे ही शादी करेगी और किसी से नहीं . और इस तरह हमारी शादी हो गयी . हम लोग बहुत खुश हैं साहब .

मेरा मन किया की मैं इस विद्वान अनपढ़ को एक जोरदार सलाम करूँ , लेकिन फिर मेरा साहब होना आड़े आ गया . मैंने उसे उसके भाड़े के अलावा और भी इनाम दिया और शुभकामनायें दी .

क्यों नहीं हमारे पढ़े लिखे नौजवानों में ऐसी सच्चाई और साफगोई नजर आती है !

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