दिसंबर २२, २०११ का दिन भारत के इतिहास में इस लिए महत्वपूर्ण रहेगा , क्योंकि इस दिन संसद में सरकार ने अपना लोकपाल बिल पेश किया . लोकपाल बिल - जो पूरी तरह देश की जनता के आन्दोलन के कारण सरकार को लाना पड़ा . ऐसा नहीं है की सरकार लोकपाल बिल लाना नहीं चाहती थी ; दरअसल सरकारी लोकपाल तो बहुत पहले बन चूका था लेकिन फिर अन्ना हजारे के आन्दोलन ने उस बिल की धज्जियाँ उड़ा दी. तब से इस देश में क्या कुछ नहीं हुआ - अन्ना का उपवास , पूरे देश में आन्दोलन , संसद का अन्ना को विश्वास पत्र , स्टैंडिंग कमिटी की अपनी मीटिंगें और फिर उसकी विवादस्पद रिपोर्ट , राजनैतिक दलों की उस रिपोर्ट से असहमति वैगरह . आखिर में यू पी ऐ सरकार ने सभी दलों को विश्वास में लेकर एक मसौदा बनाना चाहा. कल पेश किया गया बिल उसी मिली जुली प्रतिक्रिया का एक साकार रूप होना था . लेकिन ऐसा हुआ नहीं . सरकार अभी भी गिरगिट की तरह रंग बदल रही है .
सरकार द्वारा पेश किये गए बिल की शुरुवात ही असंवैधानिक है . लोकपाल एक ऐसी स्वतंत्र संस्था बननी है जिसमे ८ सदस्य और एक उसका प्रधान या चेयरमैन होगा . इस नौ सदस्यों की टीम को बनाने के लिए उसमे समावेश कर दिया गया - " कम से कम ५०% आरक्षण अनसूचित जाति , जनजाति , महिलाएं एवं ओ बी सी (Other Backward Classes ) के लिए . " और उसके बाद लालू यादव , मुलायम सिंह यादव और अन्य मुस्लिम नेता कूद पड़े की जब इतने लोगों का आरक्षण है तो माइनोरिटी ( वोट बैंक की दृष्टि से सीधा मतलब मुस्लमान ) का आरक्षण क्यों नहीं . भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने कहा की ये कोई सरकारी नौकरियों की व्यवस्था तय नहीं की जा रही है , ये तो एक ऐसी संस्था का निर्माण हो रहा है , जिसका काम भ्रष्टाचार से लड़ना है . बस साहब , संसद बन गया एक जातिवाद का अखाडा .
कांग्रेस पार्टी ने अपना वोट बैंक खिसकते देखा तो एक सुधारनमा पेश करते हुए - आरक्षण की फेहरिस्त में माइनोरिटी शब्द जोड़ दिया. उसके बाद क्या था - संसद एक फ्री स्टाइल भाषण का अखाडा बन गया .
ये तो था वो दृश्य जो नजर आ रहा था देश को , क्योंकि संसद का सीधा प्रसारण उपलब्ध है . लेकिन अन्दर की बात जो नजर आती है वो है एक गंभीर साजिश - लोकपाल बिल को फिर एक बार अटका कर छोड़ देने की साजिश . लालू यादव और कांग्रेस के प्रेम संबंधों को कौन नहीं जानता . कांग्रेस ने जान बूझ कर आरक्षण को मुद्दा बनाया . लालू यादव पूर्व नियोजित तरीके से संसद के मध्य में प्रदर्शन करने लगे - माइनोरिटी के मुद्दे को लेकर . मुलायम सिंह यादव के लिए इस मुद्दे पर नाचना लाजिमी था - क्योंकि यु पी के चुनाव सामने है .
सच्चाई ये है की आरक्षण का ये मुद्दा पूरी तरह गलत है - क्योंकि संविधान इस तरह की इजाजत नहीं देता . इलेक्शन कमीशन , सी ऐ जी आदि स्वतंत्र संस्थाएं हैं जिनमे ऐसे किसी आरक्षण का प्रावधान नहीं है . लोकपाल का स्वरुप भी कुछ वैसा ही है . ये बात सभी राजनैतिक दल भी जानते हैं , लेकिन फिर भी ये मुद्दा संसद का कीमती वक्त ले डूबा - क्योंकि ज्यादा तर दल चाहते हैं की ये सत्र इसी तरह फिजूल के विषयों पर खर्च हो जाए , चाहे उसे तीन दिन के लिए बढ़ा क्यों न दिया गया हो .
संसद में पूरे देश के सामने राजनैतिक दलों के झूठ के आवरण का नंगा नाच हो रहा है . अन्ना अगर अनशन न करें तो जाएँ कहाँ ? अगर अन्ना मर भी जाएँ तो भी ये पार्टियाँ उनके जन लोकपाल मसौदे को पास नहीं होने देंगी . राजनैतिक पार्टियाँ स्वयं भ्रष्टाचार हैं और अन्ना स्वयं लोकपाल - युद्ध जारी है !
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