कोलकाता में कल एक बहुत बड़ी दुर्घटना हो गयी . अमरी ( ऐ एम् आर आई ) नाम के एक वातानुकूलित हस्पताल के तहखाने में एक ऐसी आग लगी , जिसने धीरे धीरे पूरी बिल्डिंग को चपेट में ले लिया . बंद बिल्डिंग में धुआं नीचे से ऊपर तक भरता चला गया . हस्पताल ज्यादा बड़ा था , इसलिए उसके अन्दर मरीज , डोक्टर , कार्यकर्ता तथा अन्य लोग भी थे . लोग आग में झुलसने की बजाय जहरीले धुंए में घुट कर मर गए . अंतिम गणना तक 90 मृत घोषित हो चुके थे . बहुत से लोग अभी भी अन्दर फंसे हुए हैं - जिन्दा या मुर्दा ये पता नहीं . बहुत से लोगों को आसमानी सीढियां लगा कर बचाया गया . कुल मिलकर एक विभीषिका , एक कहर !
जैसा की ऐसी दुर्घटनाओं के बाद होता है , कारण की तलाश शुरू हुई . सबसे आसान काम पश्चिम बंग सरकार के पास था वो ये कि उसने हस्पताल के ६ डिरेक्टोरों को गिरफ्तार कर लिया गया , जिसके फलस्वरूप कोलकाता शहर के कई नामी उद्योगपति इस हस्पताल में पूँजी निवेश करने के जुर्म में बंदी बना लिए गए . अमरी हस्पताल की वेबसाईट देखें तो पता चलता है की ये हस्पताल पश्चिम बंग सरकार के साथ एक साझा प्रकल्प है . इस बात की चर्चा न तो मीडिया कर रही है और न ही सरकार . मुख्य मंत्री ममता बनर्जी घटना स्थल पर जाकर लोगों को मिल कर सांत्वना दे रही थी . अगर हस्पताल के मालिक ही इस घटना के लिए जिम्मेवार है तो सरकार के मुखिया होने के नाते ममता जी को भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए .
आखिर ये जिम्मेवारी है किसकी ? ये जिम्मेवारी है भारत की सड़ी गली सरकारी व्यवस्था की , जहाँ हर गैर कानूनी बात संभव है , पैसे देकर . ऐसा नहीं है की जो बात कानूनी है वो बिना पैसे दिए हो जाती है . देश का बच्चा बच्चा जानता है कि भारत के हर शहर का ये अनलिखा कानून है कि किसी भी निर्माण के लिए बहुत सारी सरकारी आज्ञाएँ लेनी होती है , जो बिना अच्छा खासा पैसा खर्च किये संभव नहीं है . चाहे हस्पताल हो या होटल ,स्कूल हो या अपना घर - मुनिसिपल कोर्पोरेसन में पैसे दिए बिना नक्शा पास नहीं होता . यही कारण है की भारत के हर शहर में बिल्डिंगों के दाम दो होते हैं - चेक का अलग और कैश का अलग . अगर कोई पूरा चेक देकर फ्लैट खरीदना चाहे , तो ये उसके लिए असंभव है . काले का पैसा काले कानूनों के लिए अलग से लेना पड़ता है . सबसे मजे की बात ये है की ये सच्चाई देश का हर नागरिक जानता है , लेकिन सरकारी हिसाब किताब में ये भ्रष्टाचार की सीमा में नहीं आता . ऐसी व्यवस्था में जरूरी बचाव और सुरक्षा की बातें सबसे पहले गौण हो जाती हैं , क्योंकि उनकी कमी किसी को नहीं खलती , जबतक कोलकाता जैसी दुर्घटना न घट जाए .
बहरहाल समय के साथ लोग इस दुखद घटना को भूल जायेंगे , जैसे की दिल्ली के उपहार सिनेमा काण्ड को भूल चुके हैं . लेकिन वो लोग जिन्होंने किसी अपने को खोया है , वो जिंदगी भर नहीं भूल पायेंगे इस हादसे को , जिसमे जीवन की तलाश में भर्ती प्रियजन मौत की घाट उतर गए .
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