नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Monday, May 30, 2011

फ़रिश्ते ऐसे होते हैं !

एक शख्स रोज सुबह जल्दी उठ कर सड़क पर निकल जाता है . नौ बजे तक घर लौट आता है , और फिर तैयार होकर अपने व्यापार के लिए निकल जाता है . शाम को लौट कर रात का खाना खाकर फिर २-३ घंटों के लिए बाहर चला जाता  है . उसकी बीवी को भी नहीं पता की वो रोज जाता कहाँ है.  ऐसे में जो ख्याल मन में आते हैं वो बुरे ही होते हैं , पता नहीं क्या चक्कर है ? रोज रोज कहाँ जाता है ? कुछ बताता क्यों नहीं ? आखिर एक दिन उसकी बीवी को पता लग ही गया की वो कहाँ जाता है और क्या करता है .

उस शख्स का नाम है प्रवीण गुप्ता और वो उड़ीसा के भुवनेश्वर  शहर में रहता है . उसका अपना बहुत बड़ा व्यापार है , अपार धन सम्पति है . वो रोज सुबह निकलता है , सड़क पर सो रहे गरीब भिखारियों के बीच जाता है . उनसे बात करता है . उनके जीवन की कहानी सुनता है . हर भिखारी के जीवन में कोई बहुत बड़ा कारण उसे मिलता है जिसके कारण वो इस प्रकार का जीवन जीने के लिए बाध्य हुआ . प्रवीण ऐसे एक व्यक्ति को अपने साथ लेकर अस्पताल में जाता है , जहाँ उस भिखारी को नहला धुला कर , उसके बालों को कटवा कर एक साफ़ सुथरा इंसान बनाया जाता है . फिर होता है उसका पूरा मेडिकल चेक अप . अक्सर उनके शरीर में इतने गहरे और पुराने  घाव होते हैं , जो बिना इलाज के सड़ने की नौबत तक पहुँच जाते हैं . प्रवीन उनके घाव अपने हाथों से साफ़ करता है . उनकी मरहम पट्टी करता है .उन्हें पेट भर भोजन खिलाता है . दवा और इलाज शुरू करता है . उनसे उनके रिश्तेदारों की पूरी जानकारी लेने की कोशिश करता है . 

दिन में फोन से , या कोई आदमी भेज कर उस भिखारी के घर वालों की तलाश करता है . कुछ अता पता न मिलने पर उडिया अखबार में विज्ञापन देता है . कुल मिला कर उसके घर के लोगों को खोज कर उनसे मिलाना उसका उद्देश्य बन जाता है .  घर वाले न मिलने तक वो भिखारी प्रवीण की सेवा  शुश्रूषा  में रहता है . रात के भोजन के बाद वो जाकर उनकी खबर लेता है . उन्हें सांत्वना और साहस देता है . उन्हें एक नए सिरे से अच्छी जिंदगी शुरू करने की प्रेरणा देता है . प्रवीण अब तक ऐसे ८५ लोगों  को सड़क से उठा कर उनके घर की चार दिवारी में सुख से जीवन  काटने के लिए भेज चुका है .जो उसे  जानते हैं- ख़ास कर अस्पताल और पुलिस के लोग , वो उसे भगवान ही मानते हैं और उसकी पूरी मदद करते हैं . 

प्रवीण अपने कार्यों की न कहीं चर्चा करता है , न उसे किसी से शाबासी  या प्रसिद्धि चाहिए. जो व्यक्ति अपनी पत्नी तक को अपने सत्कार्यों के बारे में नहीं बताता , उसे क्या कहेंगे आप . एक आम आदमी के रूप में ऐसे लोग फ़रिश्ते के सिवा क्या हो सकते हैं ?  


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