नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, May 24, 2011

सोशल सर्विस


मैं जहाँ सुबह की सैर के लिए जाता हूँ , वहां देखता हूँ एक सज्जन को जो नित्य वहां आते हैं , धोती और कुरता पहने होते हैं . सर पर एक टोपी भी लगाते हैं . वो जब आते हैं तो उनके हाथ में एक थैला होता है , जिसमे भरी होती है हरी हरी पत्तियां . सबसे पहले वो वहां लगे एक पीने के पानी के नल पर जाकर उन पत्तियों को अच्छी तरह धोते हैं ; फिर थैले को लेकर अपनी सैर पर निकल जाते हैं . जो लोग उनसे पहले मिल चुके होते हैं , वो सभी उन्हें राम राम कह कर अभिवादन करते हैं . बहुत से लोग चलते चलते उनसे मुट्ठी भर पत्तियां लेते हैं , और आगे निकल जाते हैं .

एक दिन मैंने भी उनके पास जाकर कहा - राम राम ! उन्होंने  बड़े प्यार से उत्तर दिया - राम राम बेटा ! मैंने पूछा - बाबूजी , ये पत्तियां आप लेकर घूमते हैं तथा लोगों को बांटते  हैं , ये क्या है ? उन्होंने मुझसे पूछा - क्या तुम्हे डाईबिटिज का रोग है ? मैंने कहा - नहीं ! उन्होंने कहा - ये पत्तियां नीम की पत्तियां है जो मैं रोज सुबह एक पेड़ से तोड़ कर लाता हूँ . आजकल बहुत बड़ी मात्रा में ये रोग लोगों को  है ; ये पत्तियां चीनी की मात्रा को संतुलित करती हैं , लोग जानते तो हैं , लेकिन हर जगह नीम के पेड़ नहीं मिलते . इसलिए मैं ये सब के लिए ले आता हूँ . मैंने पूछा - बाबूजी ये काम तो आप बहुत अच्छा करते हैं ; जो पत्तियां बच जायेंगी उनका आप क्या करेंगे ? उन्होंने कहा - जाने के पहले मैं बची हुई पत्तियां वहां एक कुर्सी पर छोड़ देता हूँ . देर से आने वाले लोग वहां से अपने आप लेकर खा लेते हैं . 

मेरा मन उस सज्जन के लिए श्रद्धा से भर गया . निष्काम और निःस्वार्थ सेवा का एक अनुपम उदहारण था ये ! लोग कहते हैं , सोशल सर्विस या तो बहुत सारे पैसे खर्च कर के होती है या फिर बहुत सारा समय . इस टोपी वाले सज्जन ने मुझे सिखा दिया कि समाज सेवा के लिए सिर्फ ह्रदय में इच्छा होने की जरूरत है , बाकि कुछ हो या न हो !

मेरा प्रणाम उस समाज सेवक को ! 

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