नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Saturday, March 7, 2015

भारत की बेटी - विवाद क्यों ?


इंग्लैंड की बीबीसी टेलीविजन चैनल कम्पनी ने एक फिल्म बनाई है - इंडियाज डॉटर यानि भारत की बेटी। फिल्म एक डाक्यूमेंट्री है - निर्भया बलात्कार काण्ड के विषय में।  इस  फिल्म को लेकर पूरे देश में बहुत बड़ा विवाद खड़ा हुआ है। इस विवाद का प्रमुख कारण है , फिल्म निर्देशक द्वारा तिहाड़ जेल में लिया गया एक इंटरव्यू - छह में से एक बलात्कारी का। बलात्कारी अपने अपराध का कारण निर्भया जैसी लड़कियों को मानता है , जो की रात नौ बजे के बाद अपने बॉय फ्रेंड के साथ सड़कों पर निकलती है।

पूरे देश का बुद्धिजीवी वर्ग दो भागों में बंटा  हुआ है - एक का मानना है कि ऐसी फिल्मों को दिखाए जाने पर अंतर्राष्ट्रीय बैन लगना चाहिए , दूसरे  का कहना है की वाणी की स्वतंत्रता पर कभी भी प्रतिबन्ध नहीं लगना चाहिए। प्रतिबन्ध के पक्ष में जो कारण है वो कुछ ऐसे है -

१. एक बलात्कारी को अपनी बात एक पब्लिक प्लेटफॉर्म से कहने की छूट नहीं होनी चाहिए। समाज को एक गलत मनोवृति मिलती है।

२. बलात्कार की शिकार लड़की का नाम फिल्म ने उजागर कर दिया , जो सामाजिक उसूलों के विरुद्ध है।

३. ये फिल्म अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक गलत तस्वीर प्रस्तुत करती है।

मैंने आज होली के दिन ये फिल्म यू ट्यूब  पर देखी। मेरी पत्नी के कहने पर देखी। अब  फिल्म पर मेरी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार है -

१. मीडिया पर इस तरह  बहस से फिल्म का प्रचार प्रसार ही हुआ है। जैसे मैंने मेरी पत्नी के कहने से ये फिल्म यू ट्यूब पर देखी , मेरा ख़याल है की लाखों लोगों ने देखी होगी ; जो शायद कभी यू ट्यूब पर फिल्म  देखते ही नहीं हैं।

२. पूरी की पूरी फिल्म विभिन्न लोगों के साक्षात्कार पर आधारित है , जिसमे शामिल हैं - मुख्य रूप से निर्भया के माता पिता और एक युवा शिक्षक।  इसके अलावा - दिल्ली पुलिस के अधिकारी , हस्पताल के डॉक्टर , बचाव पक्ष के दो वकील , विभिन्न सरकारी अधिकारी , कई अपराधियों के माता पिता और पत्नी ,दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित तथा एक बलात्कारी ! किसी विषय पर इससे अच्छी डॉक्यूमेंट्री नहीं सकती।

रही बात बलात्कारी के इंटरव्यू की ! मैं समझता हूँ की ऐसा इंटरव्यू जहाँ एक अपराधी की मानसिकता को दिखाता है , वहीँ एक आम आदमी को उसकी सोच से दूर करता है। मेरे विचार में अपराधी के मनोविज्ञान से ज्यादा खतरनाक सोच उन्हें बचाने वाले वकीलों की है।  ये वकील उन अपराधियों की बात का समर्थन करते हुए कहते हैं की भारत  संस्कृति बहुत महान है , क्यूंकि इसमें नारी के लिए कोई स्थान नहीं है।  घिन आ रही थी जब मैं बचाव  पक्ष के वकील की दलील को सुन रहा था। क्या ऐसे वकील बिना रोकटोक इस देश में प्रैक्टिस कर सकते हैं।

२. फिल्म में लड़की के माता पिता कहते हैं की हमें कोई शर्म महसूस होती है  कहते हुए की हमारी बेटी का नाम था ज्योति सिंह। उन्होंने कहा  उसके बलिदान ने कम से कम नारी  सुरक्षा जैसे विषय को  भारत ही नहीं अंतरर्रष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा मुद्दा बना दिया।  इसके बाद नाम उजागर करने के विरोध में  तर्क  नहीं बचता।

३. ये  सच है की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी होगी। लेकिन सच को दबा कर ये बदनामी कब तक रुकेगी। फिल्म  के अंतिम भाग मे भारत होने वाली कन्या भ्रूण हत्या के आंकड़े बताये गए है। इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि आज भी हमारे देश में एक बहुत बड़ा वर्ग है जो कन्या अपने घर में नहीं चाहता।

बलात्कार की घटनाएँ इतनी अधिक बढ़ चुकी है की इन ख़बरों से बचा नहीं जा सकता।  शुतुरमुर्ग की तरह अपनी  गर्दन रेत में छुपा लेने से या कबूतर की तरह अपनी आँख बंद कर लेने से खतरा टाला  नहीं जाता।

मेरे व्यक्तिगत विचार में यह फिल्म किसी भी तरह सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन नहीं करती।  ऐसी फिल्म को सामान्य जनता को दिखाने से समाज के अंदर ऐसे अपराध के विरुद्ध रोष ही बढ़ेगा , जो ऐसी घटनाओं को रोकने में सहायक होगा।

Thursday, March 5, 2015

राम का चक्कर - एक संस्मरण



होली के अवसर पर जीवन के  सबसे मूर्खता पूर्ण अनुभव की तलाश में था।  तब ये घटना याद आ गयी।

बात है १९८२ की। मैं , मेरी पत्नी रेणु , बहन सविता और बहनोई अशोकजी  एक साथ नैनीताल गए थे। तीन दिन वहां रहने के बाद हमने सोचा क्यों न एक दिन के लिए जिम कॉर्बेट पार्क चलें। टूरिज्म विभाग के दफ्तर में पैसे भर कर  वहां के सरकारी बंगले में हमने बुकिंग करवा ली। सुबह एक गाडी ली और चल पड़े।  वहां पहुँचने का रास्ता अशोकजी ने होटल के मैनेजर से समझ लिया , इस लिए ड्राइवर को निर्देश देने का काम उनका था।

बताने वाले ने उन्हें रास्ता यूँ बताया था - रामनगर जाने वाली सड़क पकड़ो,  जाते जाओ।  डेढ़ -दो घंटे में रामनगर आएगा , वहां से एक रास्ता जिम कॉर्बेट पार्क के लिए मुड़ेगा , उस रास्ते को पकड़ कर  चले जाओ।  डेढ़ दो घंटे में पार्क पहुँच जाओगे।  निर्देश इतने आसान थे की हमने कोई नक्सा वैगरह लेने की कोशिश ही नहीं की।

शुरू में हम लोग अपनी ही मस्ती में बढ़ते रहे। बाद में जब सड़क के किनारे लगे मील के पथ्थर देखने शुरू किये तो हमें दिखने लगा रामपुर जो की ७००-८०० किलोमीटर था। अशोकजी ने कहा की शायद उनको समझने में कोई गलती हुई होगी। जाना तो रामपुर होकर ही है।  इस  प्रकार अनजाने में रामनगर का स्थान रामपुर ने ले लिया। जैसे जैसे दिन बीतता गया हमें अपने निर्णय पर गुस्सा आने लगा।  अच्छा भला नैनीताल में मौज कर रहे थे ; मतलब यहाँ गर्मी में धक्के खा रहे थे। अशोकजी बेचारे सबको समझा बुझा कर रामपुर तक ले जा रहे थे।

खैर साहब , किसी तरह १० घंटो की यात्रा के बाद हम रामपुर पहुंचे। वहां पहुँच कर एक ढाबे में चाय पी।  फिर किसी समझदार आदमी से पूछा - ' भाई साहब , यहाँ से जिम कॉर्बेट जाने का कौन सा रास्ता है , और कितना समय लगेगा ?

भले आदमी ने हमारी तरफ देखा और पूछा - दिल्ली से आएं हैं क्या ?

अशोकजी ने कहा - फिलहाल तो नैनीताल से आ रहें हैं।

 अब उस आदमी के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी।  बोला - तो साहब यहाँ रामपुर तक क्यूँ आये हैं।  आप तो रास्ता बहुत पीछे छोड़ आये हैं , जो रामनगर से मुड़ता है।

अब जीजाजी के चेहरे का रंग देखने लायक था। उन्हें जैसे काटो तो खून नहीं। हम सभी उन पर बरस पड़े।  सब ने कह दिया - अब कहीं नहीं जाएंगे , यहाँ से सीधा दिल्ली चलो।

अशोकजी  सबको अनुरोध किया - देखो पैसे भरे हुये हैं।  हमें वापस जाना चाहिए ;  जीवन में फिर यहाँ आना हो या न हो। हार कर सबने उनकी बात मान ली , और चल पड़े वापस एक १० घंटे की यात्रा पर - जिम कॉर्बेट पार्क जाने के लिए। 

Tuesday, March 3, 2015

गुटखा तम्बाकू - एक लघु कथा


मैं इंटरव्यू ले रहा था , एक स्टेनो सेक्रेटरी के पद के लिए। अगला प्रार्थी थी एक दक्षिण भारतीय महिला।  सामान्य प्रश्नोत्तर के दौरान मैंने पूछा - आप के पति क्या करते हैं ?

उसने जरा बुझे से स्वर में कहा - उसका डेथ हो गया। कैंसर था।

न चाहते हुए भी मैं पूछ बैठा - बहुत यंग रहे होंगे ; ऐसा कैसे ?

उसने कहा - उसको गुटखा तम्बाकू बहुत खाता था।

मन में हंसी आई उसकी दक्षिण भारतीय हिंदी सुन कर ; लेकिन अगले ही क्षण मन  में आया - भले ही उसका व्याकरण गलत था , लेकिन अनजाने ही उसकी बात सही थी।  हम समझते हैं की गुटखा तम्बाकू हम खाते हैं , लेकिन वास्तविकता ये है की गुटखा तम्बाकू हमें खाता है।