नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, March 5, 2015

राम का चक्कर - एक संस्मरण



होली के अवसर पर जीवन के  सबसे मूर्खता पूर्ण अनुभव की तलाश में था।  तब ये घटना याद आ गयी।

बात है १९८२ की। मैं , मेरी पत्नी रेणु , बहन सविता और बहनोई अशोकजी  एक साथ नैनीताल गए थे। तीन दिन वहां रहने के बाद हमने सोचा क्यों न एक दिन के लिए जिम कॉर्बेट पार्क चलें। टूरिज्म विभाग के दफ्तर में पैसे भर कर  वहां के सरकारी बंगले में हमने बुकिंग करवा ली। सुबह एक गाडी ली और चल पड़े।  वहां पहुँचने का रास्ता अशोकजी ने होटल के मैनेजर से समझ लिया , इस लिए ड्राइवर को निर्देश देने का काम उनका था।

बताने वाले ने उन्हें रास्ता यूँ बताया था - रामनगर जाने वाली सड़क पकड़ो,  जाते जाओ।  डेढ़ -दो घंटे में रामनगर आएगा , वहां से एक रास्ता जिम कॉर्बेट पार्क के लिए मुड़ेगा , उस रास्ते को पकड़ कर  चले जाओ।  डेढ़ दो घंटे में पार्क पहुँच जाओगे।  निर्देश इतने आसान थे की हमने कोई नक्सा वैगरह लेने की कोशिश ही नहीं की।

शुरू में हम लोग अपनी ही मस्ती में बढ़ते रहे। बाद में जब सड़क के किनारे लगे मील के पथ्थर देखने शुरू किये तो हमें दिखने लगा रामपुर जो की ७००-८०० किलोमीटर था। अशोकजी ने कहा की शायद उनको समझने में कोई गलती हुई होगी। जाना तो रामपुर होकर ही है।  इस  प्रकार अनजाने में रामनगर का स्थान रामपुर ने ले लिया। जैसे जैसे दिन बीतता गया हमें अपने निर्णय पर गुस्सा आने लगा।  अच्छा भला नैनीताल में मौज कर रहे थे ; मतलब यहाँ गर्मी में धक्के खा रहे थे। अशोकजी बेचारे सबको समझा बुझा कर रामपुर तक ले जा रहे थे।

खैर साहब , किसी तरह १० घंटो की यात्रा के बाद हम रामपुर पहुंचे। वहां पहुँच कर एक ढाबे में चाय पी।  फिर किसी समझदार आदमी से पूछा - ' भाई साहब , यहाँ से जिम कॉर्बेट जाने का कौन सा रास्ता है , और कितना समय लगेगा ?

भले आदमी ने हमारी तरफ देखा और पूछा - दिल्ली से आएं हैं क्या ?

अशोकजी ने कहा - फिलहाल तो नैनीताल से आ रहें हैं।

 अब उस आदमी के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी।  बोला - तो साहब यहाँ रामपुर तक क्यूँ आये हैं।  आप तो रास्ता बहुत पीछे छोड़ आये हैं , जो रामनगर से मुड़ता है।

अब जीजाजी के चेहरे का रंग देखने लायक था। उन्हें जैसे काटो तो खून नहीं। हम सभी उन पर बरस पड़े।  सब ने कह दिया - अब कहीं नहीं जाएंगे , यहाँ से सीधा दिल्ली चलो।

अशोकजी  सबको अनुरोध किया - देखो पैसे भरे हुये हैं।  हमें वापस जाना चाहिए ;  जीवन में फिर यहाँ आना हो या न हो। हार कर सबने उनकी बात मान ली , और चल पड़े वापस एक १० घंटे की यात्रा पर - जिम कॉर्बेट पार्क जाने के लिए। 

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