नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Wednesday, July 15, 2015

असली सेक्युलर ! - एक लघु कथा



बड़ा विचित्र किस्म का भिखारी था वो। सुबह सुबह उठ कर गले में एक रुद्राक्ष की माला डाल  कर शिव मंदिर के सामने बैठ जाता था। आते जाते लोग उसकी चटाई पर कुछ छुट्टे कुछ रुपैये डाल देते  थे। दोपहर में  गुरूद्वारे के पास  बैठ जाता था ,  सिखों वाली पगड़ी पहन कर।  लोग काफी  पैसे दे जाते थे।  कई बार  वहीँ लंगर में खाना खा लेता था।  शाम को इबादत की  सफ़ेद जाली की टोपी पहन किसी मस्जिद बाहर बैठ जाता था , वहां  भी अच्छी कमाई हो जाती थी। रमजान के दिनों में बिना रोजा रखे शाम के खाने का जुगाड़ हो जाता था। रविवार के दिन  चर्च  के बाहर ईसाई क्रॉस की माला काम आती थी। सबसे बड़ी मौज तो ये थी की उसके दान दाता उसके सभी ठिकानों में से सिर्फ  एक पर जाते थे , इसलिए किसी को उसके मजहब पर कोई शक नहीं होता था। 

एक दिन उसके एक प्रोफ़ेसर  पडोसी ने उससे पुछा - तुम ये अलग अलग भेष बना कर लोगों को और उनके भगवान को ठगते हो ; तुम्हे ऐसा नहीं लगता की भगवान किसी दिन तुमसे बहुत नाराज हो जाएंगे ?

उसने हँसते हुए उत्तर दिया - मैं कहाँ ठगता हूँ ? ठगते तो वो लोग हैं जिन्होंने  भगवान की   अपनी  मनचाही कल्पना से सूरत बना दी ; अपने आपको भक्त दिखाने  के लिए अजीब अजीब वस्तुएं बना ली - जैसे की रुद्राक्ष , इबादत की टोपी और क्रॉस की माला। यहाँ तक की सभी जगह व्यापक निराकार भगवान के रहने के भी घर बना दिए - जैसे की मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च।  क्या भगवान  यही सब देखते हैं ? ये सारा दिखावा अपने आप के लिए ही तो होता है। मैं भी वही करता हूँ जो उनको अच्छा लगता है। मेरा गुजारा हो जाता है ; उनकी दान दक्षिणा पूरी हो जाती है। फर्क इतना है की वो दूसरे  धर्मों के लिए बुरा भला कहते हैं , मैं सबका सन्मान करता हूँ, सबको आशीर्वाद और दुवाएँ देता हूँ । अब बताइये की भगवान किससे ज्यादा खुश होंगे , उनसे ये मुझसे !

प्रोफ़ेसर साहब निरुत्तर थे। 




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