मेरे पिताजी श्री गजानंद जी आर्य , ८२ वर्षीय वृद्ध , कुछ दिनों पहले एक यात्रा पर अजमेर गए . हाथ में एक छड़ी लेकर चलते हैं . ह्रदय रोग के लिए बाई पास सर्जरी , मेरुदंड की सर्जरी इत्यादि के अलावा बहुत सारे इलाज हो चुकें हैं आँखों के , कानों के वैगरह. एक कान से बिलकुल नहीं सुनता , दूसरे से यन्त्र लगा कर काम चल जाता है ; एक आँख बिलकुल अन्धकार में है , दूसरी से थोडा दीखता है .
इस अजमेर यात्रा के दौरान एक दुर्घटना हो गयी . वो कुर्सी से उठ कर चले तो अचानक गिर गए . संभल नहीं पाए और शरीर के दायें तरफ नीचे गिर गए ; फलस्वरूप उनके दाहिने पैर की जांघ की हड्डी और दाहिने कंधे की एक हड्डी टूट गयी. उन्हें तुरंत हस्पताल पहुँचाया गया . डाक्टर ने उन्हें हर समय बिस्तर पर बिना करवट लिए सोने की सलाह दी . दाहिने पैर को हिलाना तक मना हो गया .इस अवस्था को बनाये रखने के लिए उनके दाहिने पंजे से बाँध कर एक अढाई किलो का वजन लटकाया गया . दाहिने हाथ को हिलाने डुलाने की आज्ञा नहीं है, उसे एक प्लास्टर लगा कर पूरी तरह बाँध दिया गया है . इस प्रकार पिताजी पिछले ६ दिनों से बिस्तर पर लेटें हैं.
उनकी ये अवस्था देख कर हम सब परिवार वाले बहुत दुखी हैं . मैंने उनसे पूछा - पिताजी ! आप बहुत कष्ट में हैं , देख कर बहुत तकलीफ हो रही है . जो उत्तर उन्होंने मुझे दिया वो सुनकर मुझे जीवन के लिए एक बहुत बड़ा ज्ञान मिला . उन्होंने कहा - बेटा ! तुम्हे ये देखना चाहिए कि ईश्वर कितना दयालु है . मेरी आँखें ख़राब हुई , तो उसने फिर भी एक आँख ऐसी रखी जिससे मैं देख पाता हूँ . जब कानों में खराबी आई तो भी उसने मेरे एक कान को इतना स्वस्थ रखा कि मैं काम चलाने लायक सुन सकूं . अब जब ये दुर्घटना हुई तो भी उसने एक पैर और एक हाथ बचा कर रखा जिससे मैं थोड़ी बहुत खुद की मदद कर सकूं . इसलिए हमें तो ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि तुमने बहुत कृपा की .
किसी मनुष्य की सोच किस कदर सकारात्मक हो सकती है , इसका एक अनुभव हुआ . उससे भी बड़ा अनुभव ये हुआ की कष्ट के समय में एक साधारण व्यक्ति अपनी पीड़ा के लिए रो रो कर सभी लोगों को और अधिक निराश व उदास करता है , लेकिन ऐसा सकारात्मक मस्तिष्क रखने वाला अपने घोर दुःख की घड़ियों में भी अपने आप को कैसे खुश रख सकता है ! जब सब कुछ बुरा होता है तब भी ईश्वर मन के लिए कितना बड़ा सहारा बन जाता है !
मुझे गर्व है ऐसे पिता पर !
No comments:
Post a Comment