नील स्वर्ग

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प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, May 25, 2017

पीपल , गंगा और गाय


पीपल , गंगा और गाय

कई बार मन में आता है ; क्यों महत्व है इन सब का हिन्दुओं के जीवन में ! यूँ तो महत्व बहुत सारी  वस्तुओं का है , लेकिन क्यों कुछ वस्तुओं या जीवों का विशेष महत्व है ? इस चिंतन में मन में एक बात आयी। हम जीवन पर्यन्त संसार की जिस सामग्री का उपयोग करते हैं , उनका हम किसी न किसी रूप में मूल्य चुकाते हैं।  मसलन हमने एक ग्वाले से दूध खरीदा तो उसे दूध का मूल्य दिया , जिससे वो अपनी गायों के लिए चारे की व्यवस्था करता है।  यानी अपरोक्ष रूप से हमने गाय को उसके दूध का पूरा नहीं तो आंशिक मूल्य चुकाया। अगर हम अपने बाग़ से फल तोड़ कर कहते हैं , तो हम उस बाग़ की रख रखाव का दायित्व निभाते हैं।


लेकिन मृत्यु के बाद क्या ? विदेशों में आजकल एक नयी व्यवस्था निकली हुई है। ऐसी ऐसी कम्पनियाँ खुल गयी हैं , जो एक ऐसी सेवा बेचती है , जिसका उपयोग खरीदने वाला व्यक्ति मरणोपरांत ही कर पाता है। वह सेवा है मनचाहा अंतिम संस्कार ! ये कम्पनियाँ अपने ग्राहक से पूछती हैं - १. किस कब्रिस्तान में उसे दफनाया जाय। २. उसकी कब्र कैसी हो ? ३. क्या उस कब्र पर कोई मकबरा बनाया जाय ? ४. उसके शव को कैसा सूट और टाई पहनाई जाए। ५. उसका ताबूत कैसा बनाया जाय।६. उसकी शोक सभा के लिए किस किस को बुलाया जाय। इत्यादि।  हर वस्तु की फोटो दिखाकर उसका मॉडल नंबर लिख कर कॉन्ट्रैक्ट तैयार कर लिया जाता है। उन सेवाओं का जो भी मूल्य होता है वो उस व्यक्ति को कॉन्ट्रैक्ट बनने के समय चुकाना होता है।  सम्भवतः कोई व्यक्ति इन सब चीजों के भविष्य में सुचारु और इच्छानुसार किये जाने के लिए गवाह भी नियुक्त होता होगा।

भारत के परिपेक्ष्य में अगर हम सोचें तो इस हद की मानसिकता हमारे देश में नहीं है ; क्योंकि हम परिवारवादी लोग हैं। बेटे कितने भी नालायक क्यों न हों , मरणोपरांत रीति रिवाज जग दिखावे के लिए ढंग से पूरे करते हैं।  लेकिन सवाल रीति रिवाज का नहीं है।  सवाल है , उस कर्ज का जो हमारे शव के साथ जुड़ा है। आर्य समाज की अंतिम संस्कार पद्धति के अनुसार एक सामान्य मनुष्य के शव के दाह कर्म के लिए १० मन (३७३ किलो) लकड़ी और ४ मन (१५० किलो घी ) की आवश्यकता होती है। शव के पूरी तरह जल जाने के बाद उसकी अस्थियां गंगा या किसी अन्य नदी में बहा दी जाती है।

इस प्रकार हमारे ऊपर मृत्योपरांत तीन कर्ज होते हैं - पेड़ का कर्ज , गाय का कर्ज और गंगा (नदी) का कर्ज। हर व्यक्ति को ये कर्ज अपने जीवन काल में अग्रिम भुगतान के रूप में चुका देने चाहिए।

१. जीवन में एक पेड़ अवश्य लगाएं।

२. एक गाय को जीवन पर्यन्त पालने की व्यवस्था करें।

३. नदियों को दूषित न करें। और आज के समय में तो हम प्रधान मंत्री मोदी के गंगा सफाई अभियान में भी भाग ले सकते हैं।

जीवन के ये चिंतन हमें प्रेरित करते हैं समाज , देश और प्रकृति के प्रति अपने दायित्व का वहन करने की !

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