हमेशा की तरह घर पहुँच कर उसने बीवी के हाथ में अपनी महीने भर की पगार रख दी और बोला - ' ये लो दस हजार रुपैये !' उसकी पत्नी छूटते ही बोली - ' दस हजार रुपैये ? क्यों ? तुम्हारी पगार तो पंद्रह हजार है ?'
उसने सफाई दी - ' हाँ , है तो पंद्रह ही , लेकिन सुबह माँ का फोन आया , कहने लगी बहुत तंगी है , दवाओं का खर्च बढ़ गया है ; सो मैंने पांच हजार उनको भेज दिए !'
बीवीजी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। बिफर कर बोली -' किसी तरह से तुम्हारी पगार में घर का खर्च चला रही हूँ। इसमें से भी अगर तुम दान पुन में लग जाओगे तो मेरे बस का नहीं ये घर चलाना ! जिस लाड़ले बेटे के पास रहती है वही क्यों नहीं खर्च उठाता ? नहीं उठाता तो फिर ये हमारी जिम्मेवारी कैसे बन गयी ? '
उसने उसी नरमी से कहा - ' ये सच है की वो उसका खर्च नहीं दे रहा , इसी लिए तो मेरे पास फोन आया था। जहाँ तक जिम्मेवारी का सवाल है , तो दामाद भी बेटे की तरह ही होता है , उस हक़ से उन्होंने फोन किया और उसी हक़ से ये हमारी जिम्मेवारी बनती है। '
बीवी जी को तो काटो तो खून नहीं। आँखों से झड़ने वाली चिंगारी तरल आंसू बन कर झरने लगी। कुछ क्षणों के लिए पतिदेव की आँखों में देखा और फिर गिर गयी उनके चरणों में।
उसने सफाई दी - ' हाँ , है तो पंद्रह ही , लेकिन सुबह माँ का फोन आया , कहने लगी बहुत तंगी है , दवाओं का खर्च बढ़ गया है ; सो मैंने पांच हजार उनको भेज दिए !'
बीवीजी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। बिफर कर बोली -' किसी तरह से तुम्हारी पगार में घर का खर्च चला रही हूँ। इसमें से भी अगर तुम दान पुन में लग जाओगे तो मेरे बस का नहीं ये घर चलाना ! जिस लाड़ले बेटे के पास रहती है वही क्यों नहीं खर्च उठाता ? नहीं उठाता तो फिर ये हमारी जिम्मेवारी कैसे बन गयी ? '
उसने उसी नरमी से कहा - ' ये सच है की वो उसका खर्च नहीं दे रहा , इसी लिए तो मेरे पास फोन आया था। जहाँ तक जिम्मेवारी का सवाल है , तो दामाद भी बेटे की तरह ही होता है , उस हक़ से उन्होंने फोन किया और उसी हक़ से ये हमारी जिम्मेवारी बनती है। '
बीवी जी को तो काटो तो खून नहीं। आँखों से झड़ने वाली चिंगारी तरल आंसू बन कर झरने लगी। कुछ क्षणों के लिए पतिदेव की आँखों में देखा और फिर गिर गयी उनके चरणों में।