सेठजी मंदिर में पहुंचे . भगवन की प्रतिमा को दंडवत किया . उसके बाद पुजारी जी से कहा - पुजारीजी , आज मेरे बेटे का जन्मदिन है , आशीर्वाद दीजिये .पुजारीजी ने प्रतिमा के चरणों से एक फूल उठाया और सेठजी को दे दिया . सेठजी ने दान पात्र में डालने के लिए जेब से हजार हजार के पांच नोट निकाले ; पुजारी जी ने रोका - ये शुभ दिन का चढ़ावा है , ईश्वर की मूर्ति पर ही रहेगा पूरे दिन ; यह कह कर पुजारी जी ने इश्वर की प्रतिमा पर पैर के नीचे सरका दिए . सेठ जी कृत कृत हो गए . प्रणाम कर के बाहर निकल गए . पुजारी जी ने नोटों का पुलिंदा धीरे से जेब में डाल लिया .
मंदिर के बाहर सेठजी अपनी गाडी में बैठने जा रहे थे , तभी एक भिखारिन बुढिया ने पुकार दी - बेटा , तेरे बेटे पोते सौ साल जियें , इस गरीब बुढिया की दवा के लिए पैसे दे जाओ . सेठजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए गाडी का दरवाजा बंद किया और बोले - सब साले नौटंकी करते हैं .
ईश्वर देख रहा था मंदिर के अन्दर की नौटंकी और बाहर की पीड़ा !
मंदिर के बाहर सेठजी अपनी गाडी में बैठने जा रहे थे , तभी एक भिखारिन बुढिया ने पुकार दी - बेटा , तेरे बेटे पोते सौ साल जियें , इस गरीब बुढिया की दवा के लिए पैसे दे जाओ . सेठजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए गाडी का दरवाजा बंद किया और बोले - सब साले नौटंकी करते हैं .
ईश्वर देख रहा था मंदिर के अन्दर की नौटंकी और बाहर की पीड़ा !