कल शिवाजी पार्क में उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना ने दशहरा मनाया। शिवाजी पार्क और दशहरा तो हर साल की तरह ही था ; लेकिन उद्धव ठाकरे की परिस्थतियाँ बदली हुई थी। उनका सारा भाषण केंद्रित था , एकनाथ शिंदे और उनके शिव सेना से निकले सभी बाग़ी विधायकों के विरुद्ध ! अगर एक शब्द में इस भाषण का कोई शीर्षक देना हो तो मैं दूँगा बौखलाहट !
रावण की जगह उन्हें एकनाथ शिंदे नजर आ रहा था। रावण के दस सिरों की जगह शिंदे के ४० विधायकों के सर नजर आ रहे थे। उन्हें शिंदे का बागपन तो नजर आ रहा था , लेकिन उन्होंने जो चुनाव में जीतने के बाद बीजेपी के साथ किया , वो नजर नहीं आ रहा था। सारे हिंदुत्व को छोड़ वो जा मिले अवसरवादी शक्तियों ले साथ , जहाँ सेक्युलर के नाम पर पालघर में साधुओं की हत्या किये जाने पर भी मौन था।
सबसे घटिया बात थी , बाला साहेब ठाकरे को अपनी बपौती बताना ! बाला साहेब बाप तो जरूर थे उद्धव के , लेकिन बपौती नहीं ! जिस व्यक्ति को हमेशा हिन्दू ह्रदय सम्राट कहा जाता हो , वो एक व्यक्ति की बपौती कैसे हो सकता है ? ये तो कुछ ऐसा हुआ जैसे की महात्मा गांधी के बेटे पूरे देश द्वारा उन्हें बापू कहे जाने पर ऐतराज करें ! रही सही कसर निकल गयी जब आधा ठाकरे परिवार नजर आया कल ही शाम को एकनाथ शिंदे के मंच पर , जहाँ वो भी अपनी दशहरा रैली निकल रहे थे ; एक अभूतपूर्व समूह के समक्ष !
न मेरा व्यक्तिगत विरोध है उद्धव से और न ही विशेष लगाव है एकनाथ से ; लेकिन राजनीति में बौखलाहट के लिए कोई जगह नहीं होती।