कन्हैया और अनुपम ! व्यंजन और स्वर - दोनों प्रकार के अक्षरों का प्रथम अक्षर - क और अ ! किसी शब्द के पहले क या क की कोई मात्रा दीजिये , तो बन जाता है एक अपशब्द - जैसे कुरूप , कुशासन , कुदृष्टि और क की जगह अ लगा दें तो बन जाता है अति सुन्दर जैसे की - अद्वितीय , अप्रतिम, अनुपम ! खैर ये तो थी एक अलंकारात्मक तुलना ; लेकिन दोनों की तुलना भी कुछ इसी प्रकार की बैठती है।
कन्हैया बिहार के गाँव से आकर जेएनयु में पढ़ने के लिए दाखिला लेता है , लेकिन कैंपस की राजनीति में हिस्सा लेकर बन जाता है छात्र नेता। देश की खैरात के ऊपर चलने वाले जे ऍन यु में देश को ही गालियां देने वाले लोगों सरगना बन जाता है।
अनुपम उन कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधि है , जिन्हे कश्मीर से रातों रात विस्थापित कर दिया गया था। अनुपम ने अपने जीवन में संघर्ष किया और अपने लिए एक स्थान बनाया भारत के चलचित्र जगत में।
कन्हैया अंग बन जाता है उस सोच का जो देश को बर्बाद कर देना चाहती है। वो गुट जो अफजल गुरु और मकबूल बट्ट जैसे देश द्रोहियों को अपना आदर्श मानता है। अफजल गुरु की शहादत को मनाने के लिए वाईस चांसलर पर दबाव डालता है। देशद्रोहियों के साथ मिल कर नारे लगाता है -' भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी ', 'अफजल हम शर्मिंदा है , तेरे कातिल जिन्दा है '. इतना ही नहीं इस देश से आजादी के नारे लगाता है। ये अलग बात है , की जब पुलिस द्वारा पकड़ लिया जाता है तो बहाने बाजी करता है। अपने कहे हुए नारों को नकारता है। नए फर्जी नारे बनाये जाते हैं। आजादी - गरीबी से , आजादी - बेरोजगारी से। कन्हैया जरा ये बताये की गरीबी से आजादी पाने के लिए अफजल गुरु की शहादत का क्या सम्बन्ध है ?
अनुपम कश्मीर से पंडितों के विस्थापन दिवस को मनाने के लिए एक अपना वक्तव्य जारी करता है। पूरे देश द्वारा वो सुना जाता है ; कश्मीरी पंडितों की समस्या पर पूरी चर्चा होती है। अनुपम का एक नया रूप देश के सामने आता है।
कन्हैया को जेल से निकलने के लिए जमानत बनती है दस हजार रुपैयों और बहुत सारी शर्तों पर जो किसी सामान्य अपराधी पर लागू होती है ; लेकिन कन्हैया को हीरो बनाने वाले, इसे कन्हैया की विजय मान लेते हैं। कन्हैया जेल से निकल कर फिर एक बार जे एन यू में भाषण देता है। एक निरर्थक भाषण - जिसमे मोदी को कोसने के अलावा कुछ नहीं था। गरीबी के लिए जिम्मेवार पार्टियां - कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी कन्हैया को अपना हीरो बना लेते हैं। बिकी हुयी मिडिया कन्हैया को बुला कर उसका लम्बा लम्बा इंटरव्यू लेती है ; जिसे कन्हैया अपनी नयी नयी बनी पहचान का इनाम समझ कर चटखारे लेता है। मतलब साफ़ है - कन्हैया ने राजनीति में घुसने का रास्ता बना लिया है।
कुछ दिनों पहले टेलीग्राफ अखबार ने देश में बढ़ती हुयी तथाकथित असहिषुण्ता पर एक चर्चा का कार्यक्रम रखा। जस्टिस गांगुली और कांग्रेस के सुरजेवाला ने जी भर कर असहिष्णुता के गीत गाये , मोदी सरकार को कोसा। लेकिन जब अनुपम ने उनकी बातों का स्पष्ट और सीधा उत्तर देना शुरू किया तो सबके तोते उड़ गए। ७-८ मिनट के अपने बेबाक और निर्भीक भाषण से अनुपम देश की सोच पर छा गया।
आज कन्हैया और अनुपम दोनों ही शायद एक राजनैतिक जीवन के दो विपरीत छोरों से अपनी शुरुवात कर रहे हैं, लेकिन दोनों के स्तर में वही अंतर है जो राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी में है।
कन्हैया बिहार के गाँव से आकर जेएनयु में पढ़ने के लिए दाखिला लेता है , लेकिन कैंपस की राजनीति में हिस्सा लेकर बन जाता है छात्र नेता। देश की खैरात के ऊपर चलने वाले जे ऍन यु में देश को ही गालियां देने वाले लोगों सरगना बन जाता है।
अनुपम उन कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधि है , जिन्हे कश्मीर से रातों रात विस्थापित कर दिया गया था। अनुपम ने अपने जीवन में संघर्ष किया और अपने लिए एक स्थान बनाया भारत के चलचित्र जगत में।
कन्हैया अंग बन जाता है उस सोच का जो देश को बर्बाद कर देना चाहती है। वो गुट जो अफजल गुरु और मकबूल बट्ट जैसे देश द्रोहियों को अपना आदर्श मानता है। अफजल गुरु की शहादत को मनाने के लिए वाईस चांसलर पर दबाव डालता है। देशद्रोहियों के साथ मिल कर नारे लगाता है -' भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी ', 'अफजल हम शर्मिंदा है , तेरे कातिल जिन्दा है '. इतना ही नहीं इस देश से आजादी के नारे लगाता है। ये अलग बात है , की जब पुलिस द्वारा पकड़ लिया जाता है तो बहाने बाजी करता है। अपने कहे हुए नारों को नकारता है। नए फर्जी नारे बनाये जाते हैं। आजादी - गरीबी से , आजादी - बेरोजगारी से। कन्हैया जरा ये बताये की गरीबी से आजादी पाने के लिए अफजल गुरु की शहादत का क्या सम्बन्ध है ?
अनुपम कश्मीर से पंडितों के विस्थापन दिवस को मनाने के लिए एक अपना वक्तव्य जारी करता है। पूरे देश द्वारा वो सुना जाता है ; कश्मीरी पंडितों की समस्या पर पूरी चर्चा होती है। अनुपम का एक नया रूप देश के सामने आता है।
कन्हैया को जेल से निकलने के लिए जमानत बनती है दस हजार रुपैयों और बहुत सारी शर्तों पर जो किसी सामान्य अपराधी पर लागू होती है ; लेकिन कन्हैया को हीरो बनाने वाले, इसे कन्हैया की विजय मान लेते हैं। कन्हैया जेल से निकल कर फिर एक बार जे एन यू में भाषण देता है। एक निरर्थक भाषण - जिसमे मोदी को कोसने के अलावा कुछ नहीं था। गरीबी के लिए जिम्मेवार पार्टियां - कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी कन्हैया को अपना हीरो बना लेते हैं। बिकी हुयी मिडिया कन्हैया को बुला कर उसका लम्बा लम्बा इंटरव्यू लेती है ; जिसे कन्हैया अपनी नयी नयी बनी पहचान का इनाम समझ कर चटखारे लेता है। मतलब साफ़ है - कन्हैया ने राजनीति में घुसने का रास्ता बना लिया है।
कुछ दिनों पहले टेलीग्राफ अखबार ने देश में बढ़ती हुयी तथाकथित असहिषुण्ता पर एक चर्चा का कार्यक्रम रखा। जस्टिस गांगुली और कांग्रेस के सुरजेवाला ने जी भर कर असहिष्णुता के गीत गाये , मोदी सरकार को कोसा। लेकिन जब अनुपम ने उनकी बातों का स्पष्ट और सीधा उत्तर देना शुरू किया तो सबके तोते उड़ गए। ७-८ मिनट के अपने बेबाक और निर्भीक भाषण से अनुपम देश की सोच पर छा गया।
आज कन्हैया और अनुपम दोनों ही शायद एक राजनैतिक जीवन के दो विपरीत छोरों से अपनी शुरुवात कर रहे हैं, लेकिन दोनों के स्तर में वही अंतर है जो राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी में है।