कमाल का देश है हमारा ! नरेंद्र मोदी के निरंतर चल रहे एक के बाद एक देश के उत्थान के कार्यक्रम न मिडिया को दिखते हैं न विपक्ष को ; लेकिन एक बेमतलब के बेकार से गुजरे हुए इतिहास ललित मोदी की एक एक ट्वीट हेडलाइन बन रहा है।
वो कांग्रेस जो भ्रष्टाचार के कारनामों के नीचे दब कर मर चुकी है ; आज बेमतलब के आरोप लगाते नहीं थकती। देश के प्रधानमंत्री के लिए अभद्र शब्दों का प्रयोग करना उन्होंने दिनचर्या बना लिया है। खीज उठती है जब प्रगति के हर काम में वो रोड़ा अटका रहें हैं। देश के जीवन के मूल्यवान साठ साल उनके परिवारवाद की भेंट चढ़ गए। हम दुनिया की रफ़्तार के सामने निरंतर पिछड़ते चले गए। अब जब एक नया प्रशासन देश को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है , तब उनके पास एक ही काम बचा है - वर्तमान सरकार को नीचा दिखाने के लिए ऊल -जुलूल बाते करना।
ललित मोदी प्रकरण को ही लेवें। पूरी दुनिया में क्रिकेट खेलने वाले देश जानते है , कि कैसे ललित मोदी ने क्रिकेट के खेल को एक पैसा छापने वाली मशीन 'आई पी एल' के नाम से बनायीं। ललित मोदी इसके कमिश्नर के रूप में देश के हीरो बन गए। इनके साथ सहयोग कर रहा था , कांग्रेस सरकार का पूरा तंत्र। बहुत से मंत्रियों ने इसका आर्थिक लाभ उठाया। शशि थरूर अगर ज्यादा पैसे बनाने के चक्कर में अपनी एक अलग टीम नहीं बनाते , तो शायद कहानियां नहीं खुलती।
शायद ललित मोदी ने किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को नाराज कर दिया , जिसके कारण वो अपनी अति शक्तिशाली अवस्था से हटा दिए गए। उसके बाद शुरू हो गया उनके खिलाफ आरोपों का सिलसिला। धीरे धीरे सब पल्ला झाड़ने लगे। ललित देश छोड़ कर लन्दन जा बैठे। वो सारे नेता जिनके ललित से सम्बन्ध थे , देश में उसका विरोध करते लेकिन लन्दन में उनसे मिलकर सहानुभूति करते थे।
अब लीजिये सुषमा स्वराज और वसुन्धरा राजे का प्रकरण। सुषमा ने कहा की ललित को वो जानती थी और वो उनकी पत्नी की बीमारी के समय ललित की इतनी मदद कर रही थी की वो पुर्तगाल जाकर अपने पत्नी से मिल सके। वसुंधरा राजस्थान से हैं और उनकी पारिवारिक मित्रता मोदी परिवार से रही है ; उस मित्रता के निमित उन्होंने उस समय ललित की मदद करने के लिए सिफारिश की जब वो राजस्थान की मुख्यमंत्री नहीं थी। दोनों देवियों ने सच्चाई देश के सामने रख दी। लेकिन कांग्रेस को इनका इस्तीफा चाहिए क्योंकि उन्होंने बकौल कांग्रेस एक अपराधी की मदद की है। पहली बात तो ये की क्या ये मदद अपराध की श्रेणी में आती है ? और अगर आती भी है तो क्या इसका दंड पदत्याग है।
अब जरा कांग्रेस अपनी मदद का इतिहास देखे -
१. मायावती पर बहुत आरोप थे आर्थिक और राजनैतिक भ्रष्टाचार के , क्या कांग्रेस ने उनके साथ सौदेबाजी कर के उनकी मदद नहीं की।
२. मुलायम सिंह के खिलाफ बहुत कुछ था , क्या वही सौदेबाजी उनके साथ नहीं हुई।
३. चारा घोटाले के सबसे बड़े अपराधी लालू यादव को तो कांग्रेस ने गोद ही ले रखा है।
५ . कांग्रेस के तो बहुतेरे मंत्री ही दागदार हैं , उनका क्या ?
ये सारे उदहारण तो सौदे बाजी के हैं लेकिन क्या सोनिया गांधी ने अपने पति की हत्यारिन के लिए सिफारिश कर उनकी फांसी को आजीवन कारावास में नहीं बदलवाया ? उनका तर्क भी यही था की मानवता के नाते उन्होंने उसकी मदद की। क्या मानवता के लिए इतने जघन्य अपराध के अपराधी की मदद तो उनकी महानता है , लेकिन उसी मानवता के लिए अगर सुषमा या वसुंधरा ने किसी सामान्य आर्थिक अभियोगी की मदद बिना किसी व्यक्तिगत लाभ इ लिए कर दी तो अपराध हो गया ?
गलती और अपराध में एक महीन दूरी है। सुषमा और वसुंधरा के कृत्य उनके राजनैतिक कद को देखते हुए गलती तो कहला सकती है लेकिन कोई अपराध नहीं। उनकी ये गलती उतनी ही बड़ी गलती है जितनी दिग्विजय सिंह का अंतरराष्ट्रीय अपराधी ओसामा को ओसामाजी कहना। ऐसी गलतियों की सजा उनकी जग हंसाई तो हो सकती है लेकिन इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं।
कुछ टीवी चैनेल तो आजकल चिता पर भी रोटियां सेकने का प्रयास करते हैं। उनका उद्देश्य है उनका व्यक्तिगत लाभ यानी टी आर पी ! उन्हें उनका लाभ तो जरूर मिल रहा है लेकिन वो लोग देश का बहुत बड़ा नुक्सान कर रहें हैं। पत्रकारिता के चोले में एक डिक्टेटर जैसा रूप अपना कर बैठे हैं ऐसे लोग। समय ही ऐसे लोगों का हिसाब किताब करेगा।