दो तीन दिन पहले की बात है . हमारे मकान के दरवाजे के पास कोई व्यक्ति एक छोटा सा पालतू कुत्ता बाँध के चला गया . हम सब आते जाते उसे देखते और सोचते शायद किसी पडोसी ने पाल लिया होगा .देर रात तक वो कुत्ता वहीँ बंधा रहा लेकिन उसके मालिक का कोई अता पता नहीं था . रात को मेरे बेटा पराग उसकी रस्सी खोल कर उसे हमारे घर (पहली मंजिल ) पर ले आया . उसे दरवाजे के बाहर सीढ़ियों के बीच की लैंडिंग पर बिठा दिया . घर में आकर अपनी मां से कहा की ये छोटा सा कुत्ता है, सारे दिने से बिल्डिंग के बाहर बंधा हुआ था ; इसे खाने को कुछ दे दीजिये . वैसे मेरी पत्नी रेणु कुत्तों से बहुत डरती है और उसी डर के कारण कुत्तों को पास नहीं फटकने देती; लेकिन उसे भी उस छोटे से कुत्ते को देख कर दया आ गयी और उसने एक बड़े से प्याले में दूध और एक तश्तरी में डबल रोटी के कुछ स्लाइस रख कर बेटे को दे दिए . पराग उसे बड़े प्यार से खिलाने बैठ गया . भूखा जानवर आनन फानन में सब कुछ खा गया .हम सब ने सोचा की कल तक या तो इस कुत्ते का मालिक इसे ढूंढता हुआ आ जाएगा या कोई और व्यवस्था करेंगे .
(हमारी कथा का मुख्य पात्र - हवा हवाई )
मेरी धर्मपत्नी जी एक मिश्रित मूड में थी . एक तरफ था उनका कुत्तों के प्रति स्वाभाविक डर और उस डर से जन्य उनका घृणा भाव , और दूसरी तरफ था - उनका नैसर्गिक करुणामय ह्रदय . इस परिस्थिति से खुद को बाहर करने के लिए उन्होंने एक पुरानी पारिवारिक घटना को याद किया , जो किसी ज़माने में मेरी दादी जी ने उन्हें बताई थी . उस घटना के अनुसार कई पीढ़ियों पहले हमारे गाँव में हमारे घर में एक साधू आ कर ठहरे थे , जिनके प्रति सभी घर वालों की बड़ी श्रद्धा हो गयी थी . उन्होंने उस समय की परिवार की कुछ बड़ी मुसीबतों का निवारण करने के लिए कुछ सलाह दी थी . उसमे दो मुख्य बातें थी - पहली कि तुन्हारे घर में कोई मेहमान आये तो उसका समुचित सत्कार करो, क्योंकि कौन जाने कभी स्वयं भगवान ही तुम्हारे द्वार पर आ जाये ; और ये जरूरी नहीं कि भगवान मनुष्य के रूप में ही आये, हो सकता है कि वो किसी जानवर के रूप में जैसे कि गाय , कुत्ता या किसी पक्षी के रूप में ही आ जाये . और दूसरी मुख्य बात थी कि हर वर्ष दिवाली के दिन चूरमा बना कर सबको खिलाना और गोसाई जी (अतिथि साधू ) को याद करके एक दिया अलग जलाना.
हालाँकि हमारा परिवार बिलकुल आर्य समाजी परिवार है और किसी किस्म के अंध विश्वास में यकीन नहीं करता है , लेकिन दिवाली पर चूरमा बनाने और गोसाई जी का दिया जलाने का निरंतर पीढ़ी दर पीढ़ी पालन होता आया है , शायद अपने पीढ़ियों पहले किये हुए एक वादे का निर्वाह करने की भावना के कारण .खैर, फिलहाल गोसाई जी का वो कथन हमारी इस वार्ता के नायक उस नन्हे से कुत्ते के लिए वरदान सिद्ध हुआ .
हालाँकि हमारा परिवार बिलकुल आर्य समाजी परिवार है और किसी किस्म के अंध विश्वास में यकीन नहीं करता है , लेकिन दिवाली पर चूरमा बनाने और गोसाई जी का दिया जलाने का निरंतर पीढ़ी दर पीढ़ी पालन होता आया है , शायद अपने पीढ़ियों पहले किये हुए एक वादे का निर्वाह करने की भावना के कारण .खैर, फिलहाल गोसाई जी का वो कथन हमारी इस वार्ता के नायक उस नन्हे से कुत्ते के लिए वरदान सिद्ध हुआ .
मेरी बेटी पल्लवी ने सुबह दफ्तर के लिए निकलने से पहले कुत्ते जी के लिए कुछ नाश्ता पेश किया, और जब तक वो नाश्ता उसने पूरी तरह खा नहीं लिया वो वहां से नहीं हिली . मैं दफ्तर के लिए निकला तो वही विदाई समारोह हुआ . श्रीमतीजी ने दोपहर में भी उसे चावल और कुछ सब्जी वैगरह का भोजन परोसा. दोपहर में दोनों बच्चों ने दफ्तर से फोन कर के अपनी मम्मी से कुत्ते का हाल चाल पूछा. शाम को एक मुश्किल हो गयी . कुत्ते ने वो काम कर दिया जो हर कुत्ता कभी न कभी करता ही है - यानि की शौच . सीढ़ियों में उसकी गंदगी और उससे होने वाली दुर्गन्ध ने पड़ोसियों को भी इस सिलसिले में शामिल कर लिया . उन्होंने विरोध किया इस तरह से एक कुत्ते को शरण देने का . धर्मपत्नीजी ने बहुत अच्छी तरह से स्थिति को संभाला . उन्होंने उनसे सीधा कह दिया कि हम इस कुत्ते को कहीं से लेकर नहीं आये हैं, ये अपने आप आया है . इसे भोजन दे रहें हैं क्योंकि ये भूखा था , अगर आप सब के पास इस का कोई अच्छा विकल्प हो तो आप वो कर लें.
इस नयी परिस्थिति से दोनों बच्चे भी थोडा परेशान हुए . दोनों को पता था की इस कुत्ते को घर में रख कर पालना हमारे लिए संभव नहीं था क्योंकि कुत्ते के रख रखाव के लिए जो योग्यता और इच्छाशक्ति होनी चाहिए वो हम दोनों पति पत्नी में बिलकुल नहीं है . इसलिए श्रेयस्कर ये ही होगा की कुत्ते की किसी सुरक्षित स्थान पर रहने की व्यवस्था की जाए . पराग ने इन्टरनेट पर अपने फेसबुक मेसेज पर अपने सभी चाहने वालों को ये सन्देश दिया - " मेरे पास एक कुत्ता है, जो कहीं से आ गया है पाठक सलाह देवें कि मुझे क्या करना चाहिए ."
एक और दिलचस्प बात हुई पराग ने कुत्ते को एक सुन्दर सा नाम दे दिया - हवा हवाई .और थोड़ी ही देर में उसके पास ढेरों लोगों के सन्देश आने शुरू हो गए . एक कुत्ते को क्या चाहिए इस विषय पर सारी जानकारी एकत्र हो गयी . किसी ने कहा की उसे आप दूध वैगरह न देकर थोडा चिक्कन या अंडे खिलाएं ( सॉरी, हम खुद शुद्ध शाकाहारी हैं , तो कुत्ते की खातिर कैसे करें ), किसी ने कुत्तों के डाक्टर का नंबर दिया की उसे एक बार डाक्टर को जरूर दिखा लेवें . किसी ने उसकी नस्ल जाननी चाही तो किसी ने हमारा फोन नंबर माँगा . और ये रहा फेसबुक पर आये हुए कुछ संदेशों की झलकी -
उधर मेरी बेटी पल्लवी ने भी अपने फेसबुक वाल पर अपना एक सन्देश प्रेषित किया जिसमे उसने अपने मित्रों और पाठकों से एक अपील की - कोई इस भटके हुए कुत्ते हवा हवाई को पालना चाहे तो संपर्क करे .बड़े दिलचस्प उत्तर आये लोगों के . प्रस्तुत है फेसबुक की एक झलकी -
फेसबुक से बहुत ज्यादा मदद तो नहीं मिली लेकिन किसी एनिमल लवर संस्था www.saveourstraysmumbai.org की वेबसाइट मिल गयी जिसके माध्यम से पल्लवी की बात हुई बात हुई शर्ली अडवाणी से . उन्होंने हमारे घर की लोकेसन जान कर पास ही रहने वाली एक सदस्या ईशा से बात की .ईशा ने हमें फोन कर के बताया की वो इस वक़्त कहीं दूर हैं और वो रात को करीब ९-१० बजे तक हमारे यहाँ आएगी.
ईशा अपने दिए गए समय पर आयी. उसने हमसे मिलने के बाद हवा हवाई से भी बात की . वो अपने साथ कुछ विशेष किस्म के बिस्कुट लायी थी जो हमारे मेहमान कुत्ते ने बहुत ही स्वाद लेकर खाए . ईशा ने बताया की कुत्ते का स्वस्थ्य बिलकुल ठीक है और उसकी जाति एक मिश्रित जाति है - कोकर-स्पनिअल और स्ट्रे- डोग का मिश्रण . धर्मपत्नी जी ने उससे अनुरोध किया की वो इस कुत्ते को अपने घर ले जाए और फिर उसके लिए कोई स्थाई व्यवस्था कर दे . ईशा ने कहा - आंटी , मेरा एक बेडरूम और एक किचन वाला छोटा सा घर है जिसमे मेरे परिवार के सात सदस्य रहतें हैं , और इस वक़्त उसके यहाँ पांच कुत्ते भी शरणागत हैं ; इसलिए उसके पास बिलकुल जगह नहीं है कि एक और कुत्ते को ले जा सके . उसने वादा किया की वो अगले दिन जरूर कोई न कोई व्यवस्था कर देगी . इस प्रकार कुत्ते का हमारी सीढ़ियों में रहना जारी रहा उस रात भी .
अगले दिन भी सुबह का नाश्ता और दोपहर का भोजन कराया गया . लेकिन धर्मपत्नीजी का सब्र का घड़ा भरने लगा था . दुखी होकर उन्होंने बिल्डिंग के दरवान और हमारे ड्राईवर से कहा कि इस कुत्ते को किसी पार्क में ले जाकर छोड़ आओ . उसके बाद शुरू हुई लुका छिपी . कुत्ता किसी तरह भी यहाँ से जाने को तैयार नहीं था . कभी सीढ़ियों में ऊपर भाग जाता, कभी किसी गाडी के नीचे चुप जाता . अपने चारों पंजों से उसने धरती को कस कर पकड़ लिया ताकि कोई उसे हिला न सके .बड़ी मुश्किल से तीन लोगों ने उसे पकड़ कर गाडी में बिठाया और ले गए घर से थोडा दूर- एक पार्क में छोड़ने . वहां से जब छोड़ कर आये तब तक श्रीमतीजी का ह्रदय अपराध बोध से उद्वेलित हो चुका था . बच्चों के फोन आये तो उन्हें झूठ बोलना पड़ा कि पता नहीं कुत्ता बिना कुछ बताये कहीं चला गया , दोनों की नाराजगी स्वाभाविक थी . उनका ये कहना था कि इतने छोटे से बच्चे को आपने इस तरह जाने कैसे दिया . श्रीमतीजी ने ड्राईवर को फिर दौड़ाया कि ढूंढ के लाओ , उसे वापस. ड्राईवर को तो वो नहीं मिला लेकिन दरवान ने बताया कि वो कुत्ता वापस अपने आप दरवाजे पर आ गया है . श्रीमतीजी ने चैन की सांस ली. उन्होंने प्रायश्चित स्वरुप कुत्ते के लिए कुछ नाश्ता परोसा . कुत्ते की नाराजगी भरपूर थी . उसने कुछ भी खाने से इनकार कर दिया और श्रीमतीजी की तरफ देखने को भी तैयार नहीं था - एक रूठे हुए बच्चे की तरह . श्रीमतीजी का भी दिल भारी हो गया .
उधर पल्लवी ने दिन भर लोगों से बात करके संस्था के माध्यम से हवा हवाई के लिए एक परिवार की तलाश कर ली . संस्था की सुसज्जित गाडी कुत्ते को लेने को आयी . एक बार फिर वही ह्रदय विदारक विदाई का दृश्य उत्पन्न हुआ . पत्नी और बच्चों ने ढेर सारी बातें की उस प्यारे मेहमान को विदा करने के समय . कुत्ता बिलकुल तैयार नहीं था हम से अलग होने के लिए . किसी तरह उसे भेजा गया , लेकिन इस बार पूरे प्यार दुलार और उसके एक अच्छे भविष्य की तैयारी और कामना के साथ .
इस पूरे प्रसंग में मैंने अपनी कोई भूमिका नहीं बताई आपको . दर असल मैंने अपने आप को इस पूरी घटना में कुत्ते से दूर रखा ; इसलिए नहीं की मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी , बल्कि इसलिए की मैं भी घर के बाकी सदस्यों की तरह उस अबोध जीव के प्रेम में नहीं पड़ना चाहता था . जब ये पता ही था की उसे यहाँ से जाना है तो क्यों मन की भावुकता को आड़े आने दिया जाए . फिर भी मन में कहीं न उस कुत्ते ने अपनी जगह बना ली थी . आज भी जब सुबह की सैर के लिए निकलता हूँ तो आँखें उस तरफ चली जाती है जहाँ हवा हवाई ने करीब तीन दिनों तक अपना आसन जमा लिया था .हवा हवाई मुझे कुछ बातें सिखा गया - १. एक जानवर का प्रेम मनुष्य के प्रेम से कहीं अधिक गहरा होता है . २. जानवर अपने प्रति किये हुए उपकार को जल्दी नहीं भूलता और ३. मेरा ये सोचना था की ये सब एनिमल लवर संस्थाएं सिर्फ आधुनिक समाज की चोंचलेबाजी है - ये अवधारणा बिलकुल गलत है . शर्ली अडवानी और ईशा जैसे लोग बधाई के पात्र हैं , जिन्हें सेवा करने के लिए किसी मनुष्य के धन्यवाद की जरूरत नहीं .
इस कहानी का समापन सुखद रहा . पल्लवी ने अपने फेसबुक सन्देश में इस खुश खबरी का प्रसारण किया . आप ही पढ़ लीजिये लोगों की प्रतिक्रिया -