नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, March 20, 2014

मयंक गांधी से बातचीत

कल सुबह बड़ा मजा आया।  मैं अपनी सुबह की  सैर के लिए जुहू जॉगर्स पार्क पहुंचा , तो देखा कि वहाँ आम आदमी पार्टी के कुछ कार्यकर्त्ता पार्क के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर पर्चे पकड़ा रहे थे और आने वाले चुनाव के लिए प्रचार कर रहे थे। सभी लगाये हुए थे आप कि चिर परिचित टोपियां ! मैं रुक गया। एक चेहरा था आप की  मुम्बई इकाई के मुख्य नेता और आगामी चुनाव में मुम्बई उत्तर पश्चिम के प्रत्याशी श्री मयंक गांधी का । मयंक को कई बार मैंने सुना है टाइम्स नाऊ के वाद विवाद कार्यक्रमों में। बहुत संयत व्यक्ति हैं।  बोलने के लिए अपनी बारी की  प्रतीक्षा करते हैं। तीखे कटाक्षों को सुनकर भी मुस्कुराते रहते हैं।

मैंने मयंक से कहा - मयंक भाई , जब आप लोगों ने इंडिया अगेंस्ट करप्सन का अभियान शुरू किया था , तब मैं भी अन्ना  की  टोपी पहन कर अँधेरी स्टेशन से शुरू होने वाले जुलुस में शामिल होने गया था।  मेरे मन भी भ्रष्टाचार के विरोध में वही भाव था , जो आप सब के मन में था। जब अरविन्द ने राजनैतिक दल बनाया तो भी मैं अरविन्द के साथ था , और अन्ना के विरोध को मैं गलत समझता था। आप के दिल्ली के चुनाव प्रचार के समय भी मैं मन से आपके साथ था ; लेकिन चुनाव के बाद जब आपने कांग्रेस की  मदद से अपनी सर्कार  बनायीं तो मैं बिलकुल चौंक गया था। दिन रात शीला को गालियां देकर चुनाव में २८ सीटें प्राप्त करने वाली आपकी पार्टी ३७  के आंकड़ें तक पहुँचने के लिए उसी भ्रष्ट  कांग्रेस की  मदद लेने को तैयार हो गयी।

साथ में श्रीमतीजी भी पूरी तैयार तैयार थी , बोली - सर्कार बनाने के बाद कहाँ गए आप के सभी आरोप जिसके आधार पर आप शीला को अंदर करने वाले थे ?

हिम्मत कर के मयंक ने कहा - बिना प्रभावी लोकपाल ले हथियार के ये सम्भव नहीं था , इसलिए हम  जन लोकपाल वाला बिल लाये।

मैंने फिर मेरा प्रश्न दागा - तो आप क्या ये सोच कर लाये थे कि ऐसा लोकपाल बिल आपकी सहयोगी पार्टी कोंग्रेस पास होने देगी ? और अगर आप ये जानते थे तो इसका अर्थ ये हुआ , कि आप इस तरह गलत सहारे की  सर्कार से छूट कर भग्न चाहते थे।

फिर मैंने उनका दिया हुआ चुनावी परचा हाथ में लिया।  उसमे नारों के अलावा जो वाडे थे वो इस प्रकार थे -
1. Reduction of domestic power tariff by 50% ( Less Than 300 units consumed)
2. Providing alternate housing before a slum is demolished.
3. Construction of SRA schemes by MHADA, not private builders.
4. A free home measuring 450 sq. ft. (carpet area) for slum dwellers.
5. Generating opportunities for employment and reshaping policy.
6. New schools and health care units.

मैंने पूछा - भाई साहेब , आप राज्य का चुनाव लड़ रहे हो या संसद का ? ये तमाम बातें तो मुम्बई से जुडी हैं। देश के लिए आपकी क्या योजना है इसका तो कहीं नामोनिशान नहीं है।

मयंक तो कुछ नहीं बोले लेकिन उनके एक साथी ने कहा - ये सब तो चुनाव में लिखना पड़ता है !

मैंने फिर घेरा - ये सब बातें तो आपने दिल्ली के विधान सभा चुनाव में भी कही थी न ; क्या हुआ
उन सब का ?

उनके पर्चे में आगे लिखा था -

I Promise-
1. I will not avail of any VIP perks or security.
2. If I am found guilty of corruption, you will have the right to penalise me..
3. To seek the opinion of my electorate before a parliament session.
4. I will do my bestand usher in 'Swaraj'.

यानि एक बार फिर वही थोथी बातें जो अरविन्द और उनके आप के साथियों ने दिल्ली में कही थी और किसी बात पर सच्चे नहीं उतरे थे।  मुम्बई का वोटर बहुत जागरूक है।  ऐसी हलकी चुनावी बातों के झांसे में वो आने वाला नहीं है।  अगर आप ने   पूरे मुम्बई शहर के लिए ऐसे ही झूठे वादों कि दावत तैयार कि है तो आप विश्वास रखें यहाँ से आम आदमी को किसी भी आम आदमी का वोट नहीं मिलेगा।

तब तक दो चार व्यक्ति और जुड़ गए थे।  एक सज्जन ने बड़ा ही तीखा प्रश्न किया - अगर आप की  लड़ाई कांग्रेस के साथ थी , तो आप बेमतलब नरेंद्र मोदी के खिलाफ क्यों प्रचार कर रहें हैं ? अगर आप चाहते हैं कि देश में सर्कार न कांग्रेस की   और न बीजेपि कि तो क्या देश में ऐसी ही अस्थिरता बनी रहे ? देश नरेंद्र मोदी का समर्थन कर रहा है , ऐसे में आपकी पार्टी उनके  वोटों को काट कर कांग्रेस की  ही मदद कर रही है। जब आप जानते हैं कि आपकी  से ज्यादा नहीं आने वाली तो फिर आप इस तरह बेमतलब की  कवायद क्यों कर रहें हैं ?

इसका जो उत्तर मयंक ने दिया वो शायद उनका सबसे सच्चा और जोरदार उत्तर था।  मयंक ने कहा - मित्रों , जैसे कंप्यूटर में एक होता है ऑपरेटिंग सिस्टम और दूसरा होता है एंटी -वायरस ; उसी तरह हम  भी जानते हैं कि हम  ऑपरेटिंग सिस्टम तो नहीं बन सकते , लेकिन एंटी वायरस का काम तो जरूर कर सकते हैं।

मैंने बात ख़त्म की - मयंक भाई , मैं आपके दल को वोट तो नहीं दे सकता लेकिन आपकी साफगोई के लिए आप को शुभकामना जरूर दे सकता हूँ ; ईश्वर आपका और देश का भला करे !


Sunday, March 2, 2014

बाजी नरेंद्र मोदी के हाथ !

देश में चुनाव का मौसम पूरे शबाब पर है। माहौल कुछ ऐसा चल रहा है , जैसे कि इस बार का चुनाव किसी भी पार्टी के लिए जीत कर सत्ता में आने के लिए नहीं है ; बल्कि नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनने  से रोकने के लिए है।  कितनी विचित्र बात है , जिसे देश की जनता अपना नेता मान चुकी है , उसे रोकने के हथकंडे बाकी सारे दल खुले आम कर रहें हैं।

कांग्रेस बिलावजह प्रचार में करोड़ों रूपया फूंक रही है। दस साल के असफल शासन के बाद किस मुंह से ये पार्टी वादे कर रही है। एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसके मुंह में जुबान नहीं है वो नेतृत्व कहाँ कर रहा है ; वो तो ऐसा लगता है किसी की नौकरी बजा रहा है। कम से कम देश की  तो नहीं।

और उनका युवा नेता ! जिसने इन दस सालों में किसी भी योग्यता का एक भी परिचय नहीं दिया ; जिसका संसद में होना न होना एक सा था ; जो व्यक्तिगत इंटरव्यू में एक रटे  रटाये तोते की  तरह बात करता है ; जिसने अपने राजनैतिक जीवन में कोई भी मंत्रालय कभी नहीं सम्भाला - ऐसे व्यक्ति को देश की  जनता क्या प्रधानमंत्री पद के लिए चुनेगी ?

कांग्रेस के साथी ऐसे गायब हो गएँ हैं , जैसे डूबते जहाज के चूहे।  एक मात्र लालू यादव बचे हैं , जो अब कांग्रेस को सीटों के बंटवारे पर आँख  दिखा रहें हैं।

आम आदमी ! दिल्ली के चुनाव में जिस प्रकार के जन समर्थन के साथ ऊपर आयी ; जितने बड़े बड़े वादे  जनता से किये - वो तो उसी दिन आधी हो गयी थी, जिस दिन उसने उस कांग्रेस पार्टी का , जिसको निरंतर दिन रात गालियां देकर वो चुनाव जीत कर आये थे ; उसी का समर्थन स्वीकार कर के सर्कार बना बैठे। यहाँ से उनके पतन का ऐसा दौर शुरू हो गया ; जो उनकी सर्कार के इस्तीफे के साथ ख़त्म हुआ।  न तो सर्कार बनाने का कोई औचित्य था , और न ही इस्तीफे का। सारे वादे खोखले साबित हो गए। ऐसी पार्टी किस मुंह से लोकसभा के लिए समर्थन मांगेगी ? उनका एक ही तरीका है - दूसरों को गालियां देते रहो , अपने आप ही जीत जाओगे।  बेसिरपैर के आरोप लगा देना उनकी फितरत है। शीला दीक्षित उनके आरोपों से अब मुक्त हो गयी है , क्योंकि उसे तो हरा दिया है।  अरविन्द केजरीवाल एक अजीब दुविधा में हैं ; पार्टी के लोग जोर डाल  रहें हैं कि वो सीधे नरेंद्र मोदी से टक्कर लें।   अरविन्द जानते हैं कि होना क्या है ! मोदी कोई शीला दीक्षित नहीं है , बी जे  पी दिल्ली वाली कांग्रेस नहीं है ; और सबसे बड़ी बात खुद अरविन्द केजरीवाल वो दबंग पाक साफ़ छवि वाले नेता नहीं रहें हैं।  लोकसभा चुनाव के बाद आम आदमी का नया नाम होगा - नाकाम आदमी !

और फिर वो एक समूह दिवास्वप्न देखने वालों का ! तीसरा मोर्चा - एक ऐसा अद्भुत प्रयास जिसका न कोई नेता है , न कोई आधार। हर नेता सिर्फ प्रधानमंत्री है। इन सभी पैबंदों को सिलने के लिए जिस सुई का प्रयोग किया जा रहा है उसका नाम है - सेकुलरिज्म या धर्म निरपेक्षता ! नरेंद्र मोदी की  लोकप्रियता कि तलवार से लड़ने के लिए इसी सुई का प्रयोग करते हैं।  सभी हारे हुए जुआरी हैं ! मुलायम , नितीश , जयललिता - तीनों अपने मन में प्रधानमंत्री बने हुए हैं।  बचे कम्युनिस्ट - उनके अजेंडे में प्रधानमंत्री बनना तो कभी था ही नहीं , बल्कि ज्योति बासु जैसे नेता को जब मौका मिला था तो उसे बनने  से रोकना था। लेकिन नियति इन चारों में से तीन की  तो स्पष्ट है - मुलायम पिछले विधानसभा की  चुनावी सफलता के बाद निरंतर लुढ़कते जा रहे हैं ; नितीश अपना दांव गलत जगह खेल कर हार चुके हैं  और बंगाल में ममता बनर्जी के सामने कम्युनिस्ट कहीं टिकने वाले नहीं।  बची जयललिता - वो कब अपना पलड़ा बदल लें ये कोई नहीं जानता।  जबकि करूणानिधि एड़ी चोटी  का जोर लगा रहें हैं - नरेंद्र मोदी की विरुदावली  गा  कर ; नरेंद्र मोदी इंतजार कर रहे हैं अपनी पुरानी  मित्र जयललिता के लौटने का .

जयललिता की  तरह और तीन चार  दल समय का इन्तजार कररहे हैं - तृणमूल की  ममता , ओड़िसा की  बीजेडी के नवीन  पटनायक , यु पी में बीएसपी की  मायावती और असाम में असम गण परिषद। चुनाव इस बार नरेंद्र मोदी को करना है कि किसे साथ रखें किसे नहीं।

पूरा  देश आशा भरी नजरों से देख रहा है - नरेंद्र मोदी की  और।  नरेंद्र मोदी के सिवा कोई भी नजर नहीं आता जो देश को इसकी खोयी हुई अंतर्राष्ट्रीय शाख दिल सके . देश कि त्रस्त  जनता महंगाई के थपेडों  से दुखी हैं ; ऐसे में सेकुलर और कम्युनल का झुनझुना कानों को नहीं सुनायी देने वाला।  ये बाजी नरेंद्र मोदी के हाथ ! शुभकामनायें !