नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Friday, July 26, 2013

पांच रुपैये में खाना

अगर दिमागी दिवालियेपन  की कोई गरीबी रेखा होती तो कांगेस के बहुत सारे नेता उसके नीचे होते। कल दो बिलकुल ताजा उदहारण सामने आये. घूम फिर कर कांगेस पार्टी में पहुंचे हुए राज बब्बर का कहना है की मुंबई जैसे शहर में कोई भी व्यक्ति बारह रुपैये में भर पेट खाना खा सकता है . इतना ही नहीं उन्होंने बारह रुपैये में मिलने वाले भोजन का पूरा मेनू तक बता दिया - ढेर सारा भात , ढेर सारी दाल और साथ में सब्जी के भी टुकड़े . उनके दूसरे पुराने नेता श्री रशीद मसूद एक कदम और आगे हैं . उनके अनुसार दिल्ली में जामा मस्जिद के बाहर पांच रुपैये में भर पेट खाना मिलता है .

पहले मुंबई की बात करें . मैं एक सामजिक संस्था के साथ जुड़ा हूँ - जिसकी एक प्रमुख गतिविधि है अन्न क्षत्र ! मुंबई के दो मशहूर हस्पताल हैं - जे जे हॉस्पिटल और सेंट जोर्ज हॉस्पिटल . दोनों हस्पतालों के अहाते में धर्मशाला बनी हुई है . इन दोनों में व्यवस्था है कमरों की - दुसरे  शहरों से आने वाले बीमारों के साथ आने वाले परिवार जनों के लिए . पहले इनका नियम ये था की रहने वाले आगंतुकों को अपने भोजन की व्यवस्था खुद करनी पड़ती थी . हर कमरे में एक स्टोव और कुछ बर्तन  थे . हमारी संस्था ने दोनों जगहों पर रसोई और भोजन कक्ष बनाये . रहने वाले लोगों के लिए सुबह का नाश्ता , दोपहर का भोजन और रात का खाना बनाने के लिए ठेकेदार नियुक्त किये . साधारण लेकिन शुद्ध और  ताजा भोजन पूरे दिन की कीमत आती है - ७० रुपैये . आधी कीमत पर हमारी ये संस्था रहने वाले मेहमानों को भोजन करवाती है . बाकी आधी कीमत संस्था अपने संसाधनों से भरती है . ये कीमत तब है जब की जगह का कोई भाडा नहीं ; पानी और बिजली मुफ्त में है , ठेकेदार मामूली मुनाफे पर काम करता है . पूरे हफ्ते का मेनू बोर्ड पर लिखा हुआ है . हम सभी अधिकारीयों में से कोई न कोई हर हफ्ते वहां बिना सूचना के पहुँच जाता है , और सामान्य भोजन करते हैं - जिससे भोजन की गुणवत्ता कभी नहीं गिरती

मेरा अनुरोध है श्री राज बब्बर साहब से की हमें वो १२ रुपैये में भोजन खिलने वाले रसोइये से मिलवा देवें . हमारी संस्था का न केवल पैसा बचेगा बल्कि मेहमानों के लिए कीमत और भी बहुत कम हो जायेगी .

जहाँ तक श्री रशीद मसूद साहब के दावे का सवाल है - मैं कभी जामा मस्जिद नहीं गया ; लेकिन मुंबई में महिम से आते जाते माहिम मस्जिद के बाहर बने ३-४ ढाबों को जरूर देखता हूँ , जिनके दरवाजे पर हर समय २०-३० भिखारी बैठे होते हैं . मस्जिद में आने वाले मुस्लिम धर्मात्मा ढ़ाबे वाले को अपनी क्षमता के अनुसार निर्देश और पैसे दे देते हैं . ढाबे वाले एक छड़ी से गिन गिन कर भिखारियों को अन्दर बुलाते हैं . अगर इसी तरह की किसी व्यवस्था का जिक्र मसूद साहब कर रहें हो तो ये संभव है ।

बात पूरी करने के पहले फिर एक बार जिक्र करूंगा , रांची शहर के रिम्स नामके सरकारी हस्पताल के बाहर  सस्ती रोटी का , जिसके बारे में   मैंने पहले   भी एक लेख यहाँ लिखा था . ये सस्ती रोटी साफ़ सुथरे अलुमिनिम के डब्बे में गरम गरम दी जाती - ७ रोटियां और भरपूर मात्रा में आलू की स्वादिष्ट सब्जी . सिर्फ दस रुपैये में . हस्पताल ने रसोई की जगह दे राखी है जहाँ एक रसोइया गरम गरम भोजन बनाता रहता है और ४-५ महिलाएं रोटी बेलती रहती हैं . दस रुपैये में तो शायद वो अलुमिनियम फोयल का डिब्बा ही आता होगा ; कीमत भरते हैं रांची के समाज सेवी श्री शत्रुघ्नलाल गुप्ता और उनकी पत्नी श्रीमती सुशीला देवी गुप्ता . सिर्फ पैसा ही नहीं बल्कि अपना समय देते हैं - पूरी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलने में .
[ http://mahendra-arya.blogspot.in/2012/07/blog-post_07.html ]

समाज में भोजन जैसी जरूरी व्यवस्था को लेकर ये दो रूप हैं सामने - एक है राज बब्बर और रशीद मसूद जैसों की संवेदनहीन घटिया बयान बाजी का , दूसरा है गुप्ता दम्पति जैसे निःस्वार्थ भाव से  भूखों को भोजन कराने  वालों का . एक सिर्फ वोटों की राजनीति कर रहा है और दूसरा  परदे के पीछे रहते हुए लोगों का अज्ञात आशीर्वाद पा रहा है .

Saturday, July 13, 2013

बैंड पार्टी : एक लघु कथा

एक बारात जा रही थी . घोड़ी पर  दुल्हे मियां सेहरा पहन कर शान से बढ़ रहे थे . घोड़ी के सामने बैंड पार्टी जोश में बैंड बजाते हुए चल रही थी . बैंड के आगे दुल्हे के दोस्त नाचने में व्यस्त थे . अच्छे अच्छे सूट  पहन कर पसीने में लथपथ सारे नवयुवक ऐसे नाच रहे थे जैसे जीवन में नाचने का ये अंतिम मौका हो . दुल्हे के ख़ास रिश्तेदार जैसे की जीजा , भाई , मामा नोटों की गड्डी हवा में लहरा रहे थे , और बीच बीच में नोटों को निकल कर हवा में उछाल रहे थे . बैंड पार्टी के नियुक्त एकदो व्यक्ति नोटों को उठा रहे थे .
युवक थे की आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे . परिवार के बुजुर्ग उन्हें समझा बुझा कर आगे बढ़ने को कहते थे , कुछ नरम दिल युवक मान जाते , लेकिन एक दो ऐसे थे की सब को रोकते रहते और बोलते - अंकल , ऐसा मौका कब कब मिलता है , थोड़ी देर और प्लीज़ ! ख़ास कर काले कपड़ों में हीरो सा दिखने वाला एक लड़का , जो बहुत अच्छा नाच रहा था , वो आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा था . वो बीच बीच में अपनी जेब से नोट निकल कर दुल्हे के सर पर वार  कर बैंड  वालों को भी दे रहा था .

आखिर परेशान होकर दुल्हे के पिता ने दुल्हे से धीरे से कहा - बेटा , मुहूर्त निकल जा रहा है , तुम्हारे ये दोस्त आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहे हैं - ख़ास कर वो काले कपड़ों वाला . दुल्हे ने कहा - उसे तो मैं जानता ही नहीं . दुल्हे की पिता ने दुल्हे के एक दो और दोस्तों से पूछा ; उन्होंने भी कहा की उन्हें पता नहीं की वो कौन है ,बल्कि वो लोग सोच रहे थे की उनके दोस्त का कोई रिश्तेदार है .

दुल्हे के पिता ने धीरे से हाथ पकड़ के उस लड़के को बारात से बाहर किया और पुछा - भैया , तुम हो कौन और किस नाते से यहाँ हो ? वो लड़का घबरा गया - अंकल ......अंकल .......मैं तो दुल्हे का दोस्त हूँ . पिता ने कहा - ऐसी एकतरफा दोस्ती तो हमने देखी  नहीं; साफ़ बताओ की कौन हो वर्ना पुलिस में दे दूंगा .

लड़का घबरा गया ; बोला - अंकल पुलिस को मत बुलाइये .मैं कोई चोर उचक्का नहीं हूँ . मैं तो इस बैंड पार्टी का हिस्सा हूँ . मुझे ये लोग तैयार कर के साथ में लाते हैं . हमारी आपस की अंडर  स्टेंडिंग  ये है की जिस बरात में पैसे अच्छे  लुटा रहें हो वहां बारात को बिलकुल धीरे धीरे आगे बढ़ाये और जहाँ माल न मिले वहां औरों को भी जल्दी जल्दी आगे बढ़ाये . आप के यहाँ तो नोटों की बरसात हो रही है . बीच बीच में मुझे भी अपनी जेब से निकाल  कर नोट लुटाने होते हैं , ताकि बाकि सभी को भी जोश आ जाए . बाद में हम सभी अपना अपना हिस्सा पाती बाँट लेते हैं .

दुल्हे के पिता ने हंस कर उसे छोड़ दिया !

Saturday, July 6, 2013

हाइवे का ड्राइवर : सच्ची कहानी

एक था ट्रक ड्राइवर - चंद्रू ! एक ट्रांसपोर्ट कंपनी के लिए ट्रक चलाता  था। ट्रांसपोर्ट कंपनी का मालिक ट्रक पर अपने ग्राहकों के कारखानों से माल लदवा  देता था और रस्ते के खर्च के पैसे देकर चंद्रू को भेज देता था लम्बे लम्बे हाइवे  के लम्बे लम्बे सफ़र पर . ट्रक ड्राइवर की जिंदगी में ट्रक ही उसका घर होता है , जहाँ वो रहता हैं उन तमाम दिनों में जब वो अपने परिवार से दूर रहता है . ट्रक में परिवार की तस्वीर देख देख कर उनके पास होने को महसूस करता है .

ऐसी ही एक यात्रा में चंद्रू अपने ट्रक में किसी दवा  कंपनी का कीमती माल भर के ले जा रहा था . दावा के हलके हलके छोटे छोटे कार्टून भी लाखों रुपैये के होते हैं . माल के ऊपर बंधा होता है मजबूत रस्सियों के नीचे एक मोटा सा तिरपाल , जो माल को बरसात और चोरों से सुरक्षित रखता है . सूरज ढलने के बाद बढ़ चले अँधेरे का समय था . चंद्रू अपनी मस्ती में अपना ट्रक भगाए जा रहा था . हाइवे का एक सुनसान पहाड़ी हिस्सा था . एक मोटर साईकिल पीछे से आई और उसने आगे बढ़ कर ट्रक का रास्ता रोक लिया . उसपर बैठे दो लोगों में से एक उतर कर चंद्रू के कैबिन में घुस गया . उसने अपने कम्बल से एक खतरनाक चाकू निकाला और चंद्रू को धमकी दी - चुपचाप चलते रहो . सामने मोटर साईकिल जा रही थी जिसके कारन चंद्रू धीमी गति से ट्रक को चला पा रहा था . अचानक चंद्रू को आभास हुआ की ट्रक के ऊपर भी कुछ लोग चढ़ गए हैं , लेकिन वो मुड  के कुछ देखने की कोशिश करता , उसके साथ बैठे गुंडे ने चाकू को उसकी गर्दन पर रख दिया और बोला - ज्यादा होशियारी की तो मारे जाओगे . आधे घंटे के बाद उस गुंडे ने ट्रक रुकवाया . उतरते उतरते उसने फिर चंद्रू को धमकी दी - पुलिस में जाने की गक्ति मत करना वर्ना तुम्हारा और हमारा रोज का रास्ता यही है .सारे चढ़े हुए गुंडे उतर गए . चंद्रू ने देखा की पीछे पीछे एक पिक अप वें आ रही थी . उसे समझ में आ गया की गुंडों ने रस्सी काट कर कुछ माल उतार  लिया है . लेकिन वो इतना डरा हुआ था की अगले आधे घंटे तक वो चुपचाप ट्रक चलाता रहा . फिर किसी ढाबे के पास उसने ट्रक खड़ा किया . ट्रक पर चढ़ कर देखा तो पाया की ट्रक के ऊपर के मोटे रस्से को तथा फिर उसके नीचे के तिरपाल को किसी तेज हथियार से काट दिया था , और उसके बीच खाली  जगह से पूरा गड्ढा बना हुआ था . उसने अंदाज लगाया की कम से कम २० कार्टून गायब थे .

उसने ट्रांसपोर्ट के मालिक को फोन किया और सारा  किस्सा बताया . पहले तो ट्रांसपोर्ट के मालिक ने मोटी  मोटी  दस बीस गालियाँ सुनाई और कहा की वो क्या सो रहा था , की उसको माल निकलने का पता नहीं लगा . आखिर मालिक ने कहा की नजदीक के पुलिस स्टेसन पर जाओ और ऍफ़ आई आर दर्ज करवाओ .

चंद्रू पहुंचा पुलिस स्टेसन ! वहां एक हवलदार बैठा हुआ ऊंघ रहा था . चंद्रू ने उसे जगाया और कहा की रपट लिखनी है . उसने कहा - सवेरे आओ , अभी साब बाहर दौरे पर गए हैं . अन्दर से किसी की आवाज आई - " कौन है बे ". हवलदार ने उत्तर दिया - सर कोई ट्रक वाला है . अन्दर से फिर आवाज आई - ठीक है , बोलो सवेरे आये . सवेरे का मतलब १० बजे !

चंद्रू ने बहुत विनती करने की कोशिश की , लेकिन हवलदार बात करने के मुड  में बिलकुल नहीं था . चंद्रू ने अपने मालिक को फोन किया . मालिक ने फिर १० - २० मोटो मोटी  गालियाँ दी आयर फिर सलाह दी की रात भर गाडी के पास पहरा दो और सुबह पुलिस स्टेसन पर जाओ . चंद्रू बेचारा रात भर जाग कर पहरा देता रहा ; न रात का खाना खाया और न एक पल को सोया . सुबह रात भर का जाग उनींदा चंद्रू पहुंचा पुलिस स्टेसन . हवलदार तरोताजा बैठा था . पहले सारी  कहानी सुनी फिर बोला - हम्म्म ! किस्सा तो अछ्छा है, लेकिन साहब को पसंद नहीं आएगा . कोई सस्ता मन्द माल होता तो शायद सस्ते में काम पट जाता। लेकिन इसमें हाथ नहीं डालेंगे . चंद्रू की समझ में कुछ नहीं आया .

डेढ़ घंटे बैठने के बाद सब इन्स्पेक्टर ने बुलाया और बोला - बताओ ? चंद्रू विस्तार से पूरी बात बताने लगा ; एक वाकया बोल भी नहीं था , की सब इन्स्पेक्टर गुस्से में बोला - पूरी रामायण मत सुनाओ , बस बताओ कितने का माल है ? चंद्रू बोल - साहब २० -२२ कार्टून गए हैं , पंद्रह  बीस लाख का तो जरुरे होगा . साल सब की मिली भगत है .

साला , किसको मालूम तुम्हारा स्टोरी कितना सच्चा है ? तुम्ही किया होगा तो ? खैर ये बताओ की किसने किया ?

सर मुझे क्या मालूम ? मैं किसी को नहीं जानता . हाँ , जो मेरे साथ ट्रक में बैठा था उसे पहचान सकता हूँ .

अबे , चोरी किसने की ? वो जो ट्रक के ऊपर चढ़े थे . पहचानना तो उनको पड़ेगा न ? खैर, जाने दो . ये घटना कहाँ हुई ?

सर, मैं इतना डर गया था, की उनके उतरने के बाद आधी घंटा मैं गाडी भगा कर यहाँ आया हूँ . मुझे लगता है कम से कम २० - २५ किलोमीटर के पहले !

सब इन्स्पेक्टर ने जोर से रजिस्टर बंद किया और बोला - साले , भाग यहाँ से ! यहाँ क्या लेने आया है ?

सर, तो मैं क्या करूँ ?

गंगा जी में छलांग लगा दो .

हवलदार जोर जोर से हंसा - सर आपका वो क्या कहते हैं न - हूमर ऑफ़ सेन्स बहुत बढ़िया है .

सब इन्स्पेक्टर - सेन्स ऑफ़ हूमर !

चंद्रू गिडगिडाया - साहब , मेरी मदद करो , मैं गरीब आदमी कहाँ जाऊं ?

सब इन्स्पेक्टर - साल तुम लोगों का प्रोब्लम ये है की तुम लोगों को कोई कानून कायदा मालूम नहीं ; और लेकर निकल पड़ते हो लाखों करोड़ों का माल . अगर तुम्हारा माल चोरी हुआ बीस पच्चीस किलोमीटर पहले तो तुम्हे जाना पड़ेगा चांदपुर पुलिस स्टेसन , क्योंकि हमारे पुलिस स्टेसन की हद तो पिछले दस किलोमीटर से शुरू होती है . अब यहाँ से चलते नजर आओ !

निराश चंद्रू  ने फिर अपने मालिक को फोन किया और फिर वही मोटी  मोटी  गालियों का सन्देश . थका  मांदा , भूखा प्यासा , डरा सहमा , अपमानित चंद्रू वापस गाडी को लेकर पहुंचा चांदपुर पुलिस स्टेसन में . वहां फिर उसका वैसा ही स्वागत हुआ . एक अंतर था - वहां के सब इन्स्पेक्टर ने उसकी कहानी सुनने के पहले २ -४ थप्पड़ रसीद कर दिए . चंद्रू कुछ समझ नहीं पाया .

सब इन्स्पेक्टर बोला - तुम लोग सब साले मिले हुए हो . तुम तुम्हारा ट्रांसपोर्ट और वो दवा  वाला . सबको झूठा ऍफ़ आई आर चाहिए , क्योंकि सेठ लोग को इन्सुरेंस से पैसा मिल जाएगा . तुमको बक्शीश मिल जायेगी , और तुम्हारा ये ऍफ़ आई आर पड़ा रहेगा हमारे गले  में - हमारा रेकोर्ड बिगाड़ने  को ! फोन कर के सेठ से बात कर लो की ऍफ़ आई आर चाहिए तो ५ पेटी लगेगा .

चंद्रू की आँखें फटी की फटी रह गयी . बोला - साहब मैं किस मुंह से इतना पैसा के लिए बोलूं सेठ को ; उसका तो पहले ही कितना नुक्सान हो गया है .

सब इन्स्पेक्टर -सुन बे , सेठ के पैसों की इतनी फ़िक्र है तुझे तो वहीँ जा, यहाँ हमारा टेम  ख़राब न कर !

चंद्रू - साब ! मेरी एक बात मानेंगे ? मैं फोन लगा के देता हूँ , आप ही सेठ से बात कर लो !
चंद्रू अपने मोबाईल फोन से सेठजी का नंबर लगाता  है और बोलता है - सर, चांदपुर पुलिस टेसन से बोल रहा हूँ . यहाँ के बड़े साब आपसे बात करना चाहते हैं .

ये कह कर चंद्रू ने अपना मोबाईल फोन सब इन्स्पेक्टर के हाथ में दे दिया . सब इन्स्पेक्टर ने कहा - देखिये सेठजी , इस तरह के झूठे कम्प्लेन  हमारे पास रोज आते हैं . ये ट्रक ड्राइवर लोग खुद ही माल बेच खाते हैं और फिर चले आते हैं यहाँ शिकायत लिखाने ! बताएं हम क्या करें ?

थोड़ी देर बाद जब बात ख़तम हो जाती है तो सब इन्स्पेक्टर कहता है - हाँ भैया , अब बताओ क्या करें ?

चंद्रू ने डरते डरते पुछा - क्या कहा सेठजी ने ?

सब इन्स्पेक्टर ने कहा - तुम्हारे सेठ ने बोला  की अगर ड्राइवर पर डाउट हो तो साले के मार मार के खाल उधेड़ दो , लेकिन एक ऍफ़ आई आर लिख कर दे दो .

चंद्रू सहम गया . बोला - साहब , आपको मेरे ऊपर डाउट है ?

सब इन्स्पेक्टर थोडा नरम पड़ा - भई , बात ये है - सब को अपनी पड़ी है . जैसे तुम्हारे सेठजी के अपने ऍफ़ आई आर के सामने तुम्हारी कोई कीमत नहीं , तुम्हे अपनी नौकरी के लिए ऍफ़ आई आर चाहिए , वैसे ही हम लोगों को भी अपने प्रोमोसन के लिए हमारा रेकोर्ड क्लीन चाहिए . रही बात लुटेरों की ; तो वो तो ये काम रोज करते हैं . हम सब को जानते भी हैं , लेकिन उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते . लूट का आधा  हिस्सा इस एरिया के एम पी का है .एम पी की भी मजबूरी है , ये इलाका इतना गरीब है , की चुनाव लड़ने का चंदा  कहाँ से आये !

चंद्रू रोते रोते बोला - साब मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊं ?

सब इन्स्पेक्टर ने कहा - इस फालतू नौकरी को छोड़ो , अपने गाँव जाओ , फॅमिली के साथ रहो . चाहे मेहनत  मजदूरी कर  लो . ऐसे सेठ की नौकरी करके क्या फायदा !

चंद्रू को इन्स्पेक्टर की बात समझ में आ गयी . उसने उसी समय निर्णय ले लिया की उस क्षण के बाद वो कभी किसी ट्रक को नहीं चलाएगा , और न ही उसका बेटा  या पोता  ये काम करेगा .

[ ये संकेतिक कथा है हाइवे पर ट्रक चलने वाले ट्रक ड्राइवरों के जीवन की दुर्दशा के बारे में . उनका जीवन खतरों से भरा होता है . परिवार से दूर बुरे से बुरे मौसम में वो अपने ट्रक से जूझता है . सन्मान या आत्म सन्मान नाम की चीज उसके जीवन में नहीं . इसका परिणाम ये है की आज देश में हर १० ट्रकों के पीछे सिर्फ ८ ड्राइवर उपलब्ध हैं . ये संख्या निरंतर घट रही है . ड्राइवरों की अगली पीढ़ी कभी भी इस पेशे में नहीं आएगी .]