नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, January 31, 2012

मुंबई में कोर्पोरेसन के चुनाव

मुंबई में कोर्पोरेसन के चुनाव होने वाले हैं . हमेशा की तरह सभी राजनैतिक दल , जैसे कि कोंग्रेस , बी जे पी , शिव सेना , एन सी पी  आदि मैदान में है . खास बात ये है कि एक और नया दौर चल पड़ा है - नागरिक आन्दोलन का दौर  . मुंबई की जागरूक जनता ने ये मान लिया है कि सभी राजनैतिक दल बेकार हैं . किसी को चुन लो एक बार इलेक्सन जितने के बाद कोई भी नजर नहीं आता . 

जनता की इस जागरूकता का परिणाम है - नए नए चुनावी दल ! सभी का कहना है कि वो लोग कोई राजनैतिक दल नहीं हैं , लेकिन स्वच्छ छवि वाले लोगों को मुंबई कोर्पोरेसन की सत्ता में लाने के लिए वो सही लोगों का चयन कर रहें हैं .  तीन प्रमुख नाम सुनने में आ रहें हैं - मुंबई नागरिक सत्ता ( mumbainagriksatta.com ) , मुंबई  227 (www.mumbai227.com ) और लोकसत्ता (www.loksatta.org) . 

उद्देश्य कितने ही अच्छे हों , लेकिन जब सवाल सत्ता का आता है तो सभी दल राजनैतिक ही कहलायेंगे . राज करने की भूख का ही तो नाम राजनीति है . और धीरे धीरे ये बातें सामने भी आ रही हैं . बीस सीटों पर  मुंबई नागरिक सत्ता और मुंबई  २२७ - दोनों के ही उमीदवार खड़े हैं - जो कि आपस में बँट कर  सीधा फायदा पहुंचाएंगे किसी न किसी राजनैतिक दल को . दोनों दलों का ये भी आरोप है की लोकसत्ता तो नागरिक दल है ही नहीं क्योंकि वह एक राजनैतिक दल के रूप में रजिस्टर्ड है . यानि की अब राजनीति में आने के लिए राजनैतिक दल होना एक बुराई है . 

समस्याएं इस तरह सुलझने वाली भी नहीं हैं . बल्कि उलझनों में उलझाने के लिए और नए नाम आयेंगे . जिसे टिकट नहीं मिला वो उल्टा बोलेगा , जिसे मिल गया उस पर जीतने की धुन सवार हो जायेगी और फिर वो उन सभी हथकंडों को अपनाएगा जो राजनीति में होते हैं . और पता नहीं कौन सा गैर राजनैतिक दल कब अन्दर ही अन्दर किसी राजनैतिक दल का भागीदार बन बैठे . बहरहाल ये नया दौर शुरू हो चुका है .

आगे आगे देखिये होता है क्या ! 


Monday, January 30, 2012

राष्ट्र भाषा हिंदी

एक दिलचस्प तस्वीर ! हमारी सरकार की मुख्य पार्टी की अध्यक्ष एक भाषण दे रही हैं एक कागज से पढ़ कर ! कागज से पढने में कोई खास बात नहीं है , खास बात ये है की कागज पर हिंदी भाषा को भी रोमन लिपि में लिखा गया है . 

सब कुछ तस्वीर में ही है इस लिए विशेष बताने की आवश्यकता नहीं है . 

जय भारत ! जय हिंदी !  


Saturday, January 21, 2012

देश की नाक

पिछले रविवार को भारत की क्रिकेट टीम आस्ट्रेलिया से तीसरा मैच भी बुरी तरह हार गयी . हार हमें बर्दाश्त नहीं . हमारे सारे हीरो जिन्हें हमने विश्व कप विजय के बाद आसमान पर बिठा रखा था , सभी अब जीरो हो गए . देश की सारी मिडिया का  पूरा का  पूरा प्राइम टाइम और हेड लाइन इस शर्मनाक हार के बखान में लग गयी . किसी ने इसे देश का सबसे शर्मनाक समय कहा तो किसी ने देश की नाक काटने का आरोप लगा दिया . 

उसी दिन एक और खबर छपी - शायद चौथे या पांचवें पन्ने के एक छोटे से कोलम में - कोलकाता में उषा तांती नाम की ४० वर्षीया महिला ने सड़क पर एक जुड़वां भाई बहनों को जन्म देकर प्राण त्याग दिए . कारण ये था की चितरंजन शिशु सदन ने उसे भर्ती करने से इंकार कर दिया ; मजबूरी में उसके पति ने शम्भुनाथ पंडित हस्पताल के दरवाजे खटखटाए - उन्होंने भी मना कर दिया . परिणाम उषा की सड़क पर मृत्यु !

इस खबर पर किसी अख़बार ने कोई हेडलाइन नहीं लिखी , कोई सम्पादकीय नहीं छापा , देश की कहीं नाक नहीं कटी और सरकार को कहीं सफाई नहीं देनी पड़ी . इन्क्वारी की औपचारिकताओं के बाद निष्कर्ष निकाल दिया गया की दोनों हस्पतालों ने कभी भी उस महिला को भरती करने से इंकार नहीं किया . बात यहीं ख़त्म !

हम किस देश में रह रहें हैं - जहाँ मानव प्राण एक खेल की हार से भी कितने बौने हैं . हार जीत तो हर खेल के दो परिणाम हैं , जो हमेशा होते रहेंगे ; लेकिन उषा तांती के दोनों बच्चों के लिए तो आजीवन हार लिख दी गयी . मन मंथन कीजिये !


Sunday, January 15, 2012

विद्वान अनपढ़

 पिछले हफ्ते मैं और मेरी पत्नी एक संक्षिप्त अवकाश के लिए कर्नाटक में मैसूर के पास स्थित एक खूबसूरत रम्य स्थान पर गए - जिसका नाम है  औरेंज काउंटी कबीनी ! वहां पहुँचने के लिए बैंगलोर से कार की यात्रा है करीब पांच घंटे की . कबीनी वहां एक नदी का नाम है .

 हमने भी एक कार ली . कार का ड्राइवर  नन्दीश हिंदी अच्छी  तरह समझता और बोलता था . और इतना ज्यादा बोलता था की सारे रस्ते या तो हम उसकी बात सुनते रहे , या फिर उसे हमारी बातों में भी हिस्सा लेने की इजाजत देनी पड़ी . एक खास बात ये थी की वो व्यक्ति हर विषय पर अच्छी जानकारी रखता था . मसलन जब मैंने अपने ब्लैक बेरी फोन में भरे हुए गीत बजाने  शुरू किये  तो उसने मुझसे अनुरोध किया कि , क्या मैं ये गीत उसके सेल फोन में भेज सकता हूँ . मैंने टालने के लिए कहा की मेरा फोन ब्लैक बेरी है इसलिए इसमें सामान्य तरीके से संगीत नहीं भेजा जा सकता . उसने छूटते  ही कहा तो आप ब्लू टूथ से भेज दीजिये .

रस्ते में एक जगह हमने कुछ नाश्ता करने के लिए गाडी रोकी . वो हमारे पास की टेबल पर बैठ कर नाश्ता कर रहा था . मैंने वेटर से कहा , की हमारे ड्राइवर का बिल भी हमें ही दे देवे . हम बिल का पेमेंट कर के गाडी में आ गए . नन्दीश ने  गाड़ी स्टार्ट कार दी . वो पूछने लगा - साहब आपने  मेरा कितना बिल चुकाया . मैंने कहा - जाने दो क्या फरक पड़ता है , ये तुम्हारे हिसाब में नहीं पकड़ा जाएगा . उसने फिर भी जोर दे पूछा . मैंने कहा की सिर्फ बयालीस रुपैये . उसने तुरत गाडी के ब्रेक लगा दिया . मैंने पूछा - भाई क्या हुआ ? उसने कहा - साहब होटल वाले ने ज्यादा पैसे ले लिए . मैंने उठने के पहले उससे पूछा था की मेरा कितना बिल हुआ तो उसने पच्चीस रुपैये बताया था ; उससे ज्यादा हो भी नहीं सकता था क्योंकि मैंने जो डोसा  मंगाया था , उसका मूल्य पच्चीस रुपैये ही था . उसने कहा - साहब ज्यादा दूर नहीं आये , गाडी घुमा लूँ क्या ? मैंने कहा - नहीं भाई , सत्रह रुपैये के लिए हमें वहां जाकर बात करने की जरूरत नहीं , ये समझ लेंगे की सत्रह रुपैये वेटर को टिप दे दी . उसने कहा - साहब बात सत्रह रुपैये की नहीं , बात उसूलों की है . आप अपनी  मर्जी से किसी को चाहे हजार रुपैये दे देवें , लेकिन गलत तरीके से कोई आपसे पैसे क्यों लेवे ? उसकी बात में दम था , लेकिन मैंने समय बचाने के लिए उसे आगे बढ़ने का आदेश दिया .

यात्रा के अंतिम दस किलोमीटर का रास्ता बहुत ख़राब था . उस ख़राब रास्ते के बीच अचानक एक आधे किलोमीटर का रास्ता जो एक गाँव से होकर गुजरता था , वहां रास्ता काफी ठीक मिला . मैंने यूँ ही कहा - कमाल है - इस छोटे से टुकड़े को ठीक कर दिया लेकिन बाकी सारा रास्ता इतना ख़राब . नन्दीश अपने एक्सपर्ट कोमेंट देने में कहाँ चूकने वाला था . उसने कहा - साहब , हमारे देश का संविधान लिखा था बाबा साहब अम्बेडकर ने . उन्होंने अपने संविधान में पिछड़ी जातियों के लिए विशेष प्रावधान किये थे . अब ये गाँव पिछड़ी जातियों का गाँव था ; इसलिए और कहीं सड़क बने या न बने, यहाँ जरूर बन जाती है .

मैंने पूछा - नन्दीश , तुम कितना पढ़े लिखे हो ? उसने कहा - दूसरी क्लास तक . मुझे विश्वास नहीं हुआ . मैंने कहा - भाई मुझे तो नहीं लगता की तुम ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हो . उसने कहा - साहब मैं सच कह रहा हूँ , मैं सिर्फ दूसरी तक ही पढ़ा हूँ , लेकिन मेरी पत्नी एक ग्रजुएट है . मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा . मैंने पूछा - नन्दीश, तुम्हारी पत्नी ने तुमसे शादी  करने के लिए हाँ कैसे कर दी . उसने बताया - साहब इसकी भी एक कहानी है ; मेरे घर के लोग पहले लड़की देखने गए थे , उन्हें लड़की पसंद आ गयी , फिर उन्होंने मुझसे कहा की तुम जाकर लड़की से मिल लो और रिश्ता पक्का कर आओ . मुझे पता चला की उन्होंने मेरे अनपढ़ होने की बात वहां बताई नहीं थी . जब मैं वहां गया तो मैंने सबको साफ़ साफ़ बता दिया की मैं सिर्फ दूसरी क्लास तक पढ़ा हूँ और पेशे से टैक्सी ड्राइवर हूँ . उन्होंने पूछा की कमाते कितना हो , तो मैंने कह दिया की कभी सौ रुपैये तो कभी पांच सौ रुपैये , और कभी कभी कुछ भी नहीं . मैंने लड़की को भी बता दिया की मेरे घर में कोई ऐशोआराम नहीं है , लेकिन तुम मुझे पसंद हो , अगर मैं भी तुम्हे पसंद हूँ तो फिर हम शादी कर सकते हैं , वर्ना कोई मजबूरी नहीं . मैंने उसके घर वालों से कह दिया - की अगर आपकी हाँ हो तो मुझे शादी में एक पैसा नहीं चाहिए , बस आपकी बेटी ही चाहिए . उसके घर वालों ने न कर दिया . तीन महीने बाद मुझे समाचार मिला की लड़की कहती है की वो सिर्फ मुझसे ही शादी करेगी और किसी से नहीं . और इस तरह हमारी शादी हो गयी . हम लोग बहुत खुश हैं साहब .

मेरा मन किया की मैं इस विद्वान अनपढ़ को एक जोरदार सलाम करूँ , लेकिन फिर मेरा साहब होना आड़े आ गया . मैंने उसे उसके भाड़े के अलावा और भी इनाम दिया और शुभकामनायें दी .

क्यों नहीं हमारे पढ़े लिखे नौजवानों में ऐसी सच्चाई और साफगोई नजर आती है !