नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Thursday, July 28, 2011

पाकिस्तान की नयी विदेश नीति



यह चित्र किसी फ़िल्मी अभिनेत्री का नहीं . ये हैं हिना रब्बानी खार ! पाकिस्तान की नयी विदेश मंत्री ! हिना आजकल भारत यात्रा पर हैं . सारा मीडिया उनकी बातचीत से ज्यादा उनके व्यक्तित्व की कहानी लिख रहा है . हिना ने क्या पहना, उनका पर्स कैसा है , उनकी मुस्कराहट कैसी है . भारत की बेरोक टोक मीडिया पूरा स्वाद ले रही है, इस खूबसूरत विदेश मंत्री की यात्रा का .

एक बहुत बड़ा बदलाव नजर आ रहा है पाकिस्तान की विदेश नीति में ! पाकिस्तान के विषय नहीं बदले हैं , लेकिन तरीका बदला है . बातचीत के माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए शायद हिना को विदेश मंत्री बनाया गया है . हिना मात्र ३३ वर्ष की हैं . हिना ने १९९९ में अपनी ग्राजुएसन तथा २००१ में होटल मनेजमेंट में मास्टर किया . लाहोर के एक फैशनेबल इलाके में पोलो लाउंज नाम का एक रेस्तरां चलाती हैं .

एक राजनीतिज्ञ पिता की पुत्री होने के कारण राजनीति में दिलचस्पी हुई . २००८ के चुनाव में वो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सीट पर भारी बहुमत से चुन कर आई . आर्थिक विभाग की राज्य स्तर की मंत्री बनी. २००९ का पाकिस्तानी बजट पेश करके वो पाकिस्तानी पहली महिला वित्त मन्त्री थी जिन्होंने बजट पेश किया . प्रधान मंत्री युसूफ रजा गिलानी ने इस साल के शुरू में अपने मंत्री मंडल में फेर बदल किया , उस समय हिना को उन्होंने विदेश मंत्रालय में राज्य स्तर का मंत्री बनाया . पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के त्यागपत्र के बाद उन्हें कार्यवाहक विदेश मंत्री बनाया गया गया . और इसी महीने की १९ तारीख को उन्हें औपचारिक रूप से पाकिस्तान का विदेश मंत्री घोषित कर दिया गया .

बेनजीर भुट्टो के बाद शायद ये पहली महिला हैं जो इतने बड़े पद पर चुनी गयी है हैं , इक ऐसे देश में , जो अपने इस्लामी देश होने की के कारण महिला को सिर्फ घर गृहस्थी तक ही सीमित रखना चाहता है . एक ऐसा देश जहाँ सरकार चाहे या न चाहे , तालिबानी हुकूमत अपने फैसले लागू करती है . बहरहाल हिना ने अपना आधा काम तो पूरा कर लिया है , यानी कि अपने व्यक्तित्व से भारत के लोगों का दिल जीतना ; लेकिन देखना ये है कि आतंकवाद . २६ नवम्बर के हमले और कश्मीर जैसे मुद्दों का उनके पास क्या नया फार्मूला है .

हिना फेसबुक पर भी मौजूद हैं . उनके फेसबुक की दिवार पर बहुत सारे भारतीयों के जुमले नजर आने लगे हैं . कुछ उदहारण -

गगन पसरीचा लिखते हैं - हेलो हिना ! उम्मीद है की तुम भारत पाक रिश्तों में एक नया अध्याय लिखोगी !गुड लक !
सुमीत महेंद्र लिखते हैं - एक और बेनजीर भुट्टो ! हार्दिक शुभकामनायें !
नीरज गोगोई शरारत पूर्ण ढंग से लिखते हैं - हिना ! आप मुंबई जरूर आयें .........बाला साहब पिघल जायेंगे !
और एक सचिन मेहता लिखतें हैं - हिना तुझ पर सारा जहाँ वर दूँ !

शायद ये पहला अवसर है की किसी देश के मंत्री को भारत के आम लोगों से ऐसा रेस्पोंस मिला है . युसूफ रजा गिलानी साहब की शतरंज की ये चाल अच्छी है , देखना ये है की ये चालें हमारे वृद्ध विदेश मंत्री कृष्ण और अति वृद्ध प्रधान मंत्री मनमोहन का मन मोहने में कितनी कामयाब होती है !

Thursday, July 14, 2011

मुंबई और मुंबई की स्पीरिट

कल एक और बोम्ब ब्लास्ट हो गया . अब तक ३१ लोगों के मारे जाने की खबर है , सैंकड़ों हस्पताल में है . सब कुछ सामान्य है . हाँ अब हर हादसा सामान्य  हो गया है . हर हादसे के समय बिजली की गति से फैलती खबर . मोबाईल फ़ोनों का जाम हो जाना . सच्ची ख़बरों के साथ साथ अफवाहों के और कितने ही  बोम्ब ब्लास्ट जुड़  जाना  .
 FM रेडियो वालों को एक नया मसाला मिल जाना . गानों के बीच में ये बताना की धीरज बनाये रखें . कहाँ ट्राफ्फिक जाम है  उसकी सूचना देना और  अफवाहों को आगे न बढ़ाएं इसकी सलाह देना . TV के न्यूज़ चैनलों को मिल जाता है एक नया विषय जरा हट के . गृह मंत्री , मुख्य मंत्री पिछले मंत्रियों की गलती से सबक लेते हुए तुरंत घटना स्थल पर पहुँच जाते हैं और जनता को बयान देते हैं . बड़े बड़े लोगों का निंदा प्रस्ताव , हताहतों के साथ संवेदना , विदेशों के सन्देश - सब कुछ सामान्य नहीं तो और क्या है ? हाँ एक और चीज भी सामान्य  है - दुर्घटना की अगली सुबह मुंबई वासियों का सवेरे सवेरे अपना खाने का डब्बा लेकर दफ्तर के लिए निकल पड़ना . मीडिया के कैमरे पकड़ लेते हैं किसी राह चलते को और पूछते हैं - कल इतना बड़ा धमाका हो गया शहर में , क्या आपको डर नहीं लगता. बेचारा मुम्बईकर अचानक पूछे हुए इस प्रश्न का उत्तर देता है - डरने से क्या होगा ? काम नहीं करेंगा तो कैसा चलेंगा ? और बस , इसके बाद की कहानी कहने लगता है वो मीडिया का साक्षात्कार कर्ता- " ये है मुंबई की स्पीरिट , जो कभी मरती नहीं , जो कभी डरती नहीं . मुंबई शहर इसीलिए मुंबई कहलाता है क्योंकि हर मुंबई वाला हर हादसे को भूल कर अपने जीवन को सामान्य बनाने में जुट जाता है ." बेचारा मुम्बईकर सोचता है की मैंने ऐसा क्या कह दिया . वो थोड़ी देर समझ भी नहीं पाता की ये महाशय उन जैसे मुम्बईकरों की तारीफ़ कर रहें हैं या मजाक उड़ा रहें हैं.
क्या यही है मुंबई की स्पीरिट ? पडोसी  के घर में मौत का मातम हो और आप निकल जाएँ डब्बा लेकर दफ्तर के लिए . किसी मुहल्लेवाले का बच्चा रात भर घर नहीं लौटा और आप स्कूल को फोन कर के पूछें की स्कूल खुला  है या नहीं .
मीडिया ने मुंबई की स्पीरिट का मजाक बना दिया है . रोजमर्रा का जीवन , नौकरी के लिए जाना , बच्चों को स्कूल भेजना - ये सब जीवन की मजबूरियां हैं , कोई बहुत बहादुरी वाली भावना नहीं . हर व्यक्ति अन्दर से कहीं न कहीं सहमा होता है ऐसे हादसों के बाद . मुंबई की आत्मा है उन लोगों की वजह से जो इस हादसे के वक़्त उतर पड़ते हैं सड़कों पर लोगों की मदद करने .      
इन सब से उन लोगों का क्या भला होता है जिन्होंने अपनों को खोया है या जिनके अपने मौत से लड़ रहें हैं हस्पतालों में .

Thursday, July 7, 2011

विज्ञान की दृष्टि में जीवात्मा

अगर एक वैज्ञानिक से पूछा जाए की प्राण  क्या है , तो उसके पास कोई बहुत स्पष्ट उत्तर नहीं होगा . लम्बी चौड़ी व्याख्या तो वो करने लगेगा, लेकिन एक परिभाषा उसके पास नहीं मिलेगी .अगर ये पूछा जाए की जीवित होने के क्या लक्षण हैं ! इस प्रश्न के उत्तर में जैविक विज्ञान-विद ये लक्षण बताएँगे -
१.     जीवित प्राणी किसी न किसी रूप में ऊर्जा को अपने अन्दर लेता है .
२.     जीवित प्राणी अपने अन्दर से अपान वस्तुओं का त्याग करता है .
३.     जीवित प्राणी निरंतर परिवर्तनशील है.
४.     जीवित प्राणी वातावरण से प्रभावित होता है .
५.     जीवित प्राणी की संरचना में लम्बे अन्तराल में मौलिक परिवर्तन भी आते हैं .
एक विज्ञान विद से पूछा जाए की पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ कैसे हुआ ! इस प्रश्न का भी कोई स्पष्ट उत्तर मिलने की सम्भावना नहीं है . हाँ इस पर वो प्रचलित मान्यताओं में तीन का जिक्र करेगा -
 १. पृथ्वी पर विभिन्न धर्मावलम्बियों ने इस विषय पर अपनी अपनी अवधारणायें  बना रखी है ; सबकी सोच अलग अलग होते हुए भी एक बात सबकी मिलती है , वो यह की कोई बहुत बड़ी शक्ति है , जिसने पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ किया . ये अवधारणाएं पीढ़ी दर पीढ़ी पोषित हो रही हैं . हालाँकि इन धारणाओं को सही मानने के लिए कोई प्रमाण नहीं है , लेकिन इन्हें गलत सिद्ध करने के लिए भी कोई प्रमाण नहीं है . इसलिए विज्ञान की नजर में ये धारणायें विज्ञान की सीमा और सम्भावना के बाहर का विषय है . 
 २. दूसरी प्रचलित मान्यता के अनुसार जीवन ब्रह्माण्ड के किसी दूसरे भाग से संयोग मात्र से पृथ्वी पर आया है . कई वैज्ञानिकों का विश्वास है कि किसी पुच्छल  तारे या धूमकेतु या उल्का के पृथ्वी से टकरा जाने के कारण पृथ्वी पर जीव का प्रवेश हुआ है .उनके चिंतन के अनुसार जब ये खंड अपनी जगह से टूट कर सौर मंडल में प्रवेश कर रहे थे  तब सूर्य के मंडल में इनका कुछ भाग तो खो गया  और कुछ भाग अपने आप में जैविक परमाणुओं को लेकर  पृथ्वी पर आ मिला . अपनी बात के पक्ष में उनका कहना है कि प्रत्येक वर्ष पृथ्वी के किसी न किसी भाग में अंतरिक्ष से उल्का खण्डों की वर्षा होती है . ऐसे पुच्छल तारे दूसरे ग्रहों पर भी पहुंचतें हैं , ऐसे उदहारण है वैज्ञानिकों के पास.
 ३. तीसरी और सबसे प्रचलित मान्यता जो सबसे अधिक प्रचलित अवधारणा है विश्व के वैज्ञानिकों के बीच ; उसके अनुसार जीवन का प्रारंभ पृथ्वी पर करीब ३५० करोड़ वर्षों पहले हुआ था . पृथ्वी के मंडल में एक साथ बहुत मात्रा में रासायनिक प्रतिक्रियाएं हुई . १९५० में दो वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया . उस प्रयोग में उन्होंने पृथ्वी के प्राचीन बाह्य मंडल को प्रयोगशाला के अन्दर निर्मित कर के , उस मंडल में कुछ रासायनिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया .उनका कहना था की उन प्रयोगों में जीवाणुओं के अंश ( अमीनो एसिड ) ऐसी अवस्था में पैदा होते हैं .उनका ये भी मानना है कि कालांतर में ये अंश एक दूसरे से जुड़  गए और जिससे हुआ- प्रारंभिक जीव का निर्माण . 
विज्ञान हो या दर्शन - जीवात्मा सबके लिए एक अनबूझ पहेली की तरह है .अंतर ये है की विज्ञान अपने प्रयत्नों से जीवात्मा के आने और जाने के कारण तथा जीवन की संरचना को ढूंढ रहा है और दर्शन ने इसे ईश्वरीय व्यवस्था मान कर जीवन को जीने के निर्देश तैयार कर लिए हैं . दोनों का साथ साथ चलना ही मानवता के लिए हितकारी है !

Friday, July 1, 2011

चवन्नी


आज से चवन्नी बंद ! कितना लडती महंगाई से ? बेचारी का अस्तित्व ही ख़त्म कर दिया इस मुई महंगाई ने ! बेचारी अबला चवन्नी  ! भिखारी भी चवन्नी मिलने  पर कुछ ऐसे देखता है जैसे कह रहा हो कि आ जा मेरे साथ हो ले !
जीवन से जुडी एक बात यहाँ आपसे शेयर करता हूँ . बात ४४ साल पुरानी है, जब मैं कुल नौ वर्ष का था और कलकत्ता में चौथी क्लास में पढता था . सुबह का स्कूल था .घर से ६.३० बजे निकल कर पैदल जाता . करीब आधी किलो मीटर कि यात्रा थी ८-१० मिनट में पहुँच जाता था . पहले मेरा जेब खर्च बिलकुल शून्य था, लेकिन मेरी   जोरदार मांग पर मेरी दादीमाँ ने मेरे लिए  रोज एक चव्वनी का जेबखर्च पारित करवाया . मेरी माँ को लगता था कि मैं तब तक पैसे वैगरह सँभालने के लायक नहीं हुआ था .
मेरे लिए मुश्किल थी कि इस चवन्नी का रोज क्या जाये ? आखिर मुझे मेरा मनपसंद उपयोग मिल ही गया . मेरे स्कूल के रास्ते में एक अनाज की दुकान पड़ती थी. यूँ तो उस दुकान में गेहूं , चावल, ज्वार  आदि बिकता था , लेकिन सुबह  के समय में उसका मालिक बेचता था कबूतरों के दाने . बहुत से लोग वहां दाने खरीद कर सामने पेड़ के नीचे बिखेर देते थे , जहाँ भीड़ लग जाती थी बहुत सारे कबूतरों की , जो बड़े मजे से अपनी गर्दन मटका मटका कर दाने चुग चुग कर खाते थे . साथ में उनका एक गुटर गूं का संगीत चलता रहता था . बस मेरी समझ में आ गया की मुझे रोज उस चवन्नी  का क्या करना है . बस साहब , उस दिन से रोज मैं चार आने के दाने खरीदता और कबूतरों के आगे डाल  देता . मुश्किल ये थी की मेरा काम यहाँ पूरा नहीं होता था . मैं बहुत देर तक उन कबूतरों को वो दाने खाते हुए देखता रहता था . उसका परिणाम ये होता कि कई बार मैं स्कूल पहुँचने में लेट हो जाता . स्कूल से कई बार मुझे चेतवानी दी गयी . आखिर एक दिन स्कूल ने माताजी को शिकायत की कि आपका सुपुत्र प्रायः लेट आता है . बस फिर क्या ! घर पहुँचते ही मेरी पूछताछ शुरू हो गयी . पहले तो मैंने डर  के मारे कारण  नहीं बताया . मुझे लगा था कि शायद पैसों से कबूतर को दाना खिलाना कोई अच्छी बात नहीं है. ये भी डर  था कि मेरा जेब खर्च भी बंद हो सकता है . लेकिन बताने के अलावा कोई रास्ता नहीं था . सो हिम्मत कर के बता दिया .
और साहब , ग़जब हो गया . मेरी दादी ने प्यार से मुझे गले लगा लिया . माँ की आँखों में भी नमी दिखाई दी . और सबसे अच्छी बात ये हुई कि उस दिन से दादी ने मेरा जेब खर्च दुगुना करवा दिया . यानि की दो चवन्नी ! हुर्रा ! मजा आ गया ! लेकिन दादी की एक शर्त थी की दूसरी चवन्नी मैं अपने मन की चीज पर खर्च करूँगा . अब मैं दादी को  क्या समझाता की मैं तो पहली चवन्नी भी अपनी मन की चीज पर ही खर्च कर रहा था . 
बाय बाय चवन्नी ! तुम्हे बहुत याद करूँगा !

टयूब लाईट

पिछले हफ्ते एक परम मित्र के बेटे की शादी में शामिल होने के लिए उड़ीसा के कटक शहर में गया . मित्र ने सभी मेहमानों के  रहने की व्यवस्था एक अच्छे गेस्ट हाउस में करवा रखी थी. पहले दिन - रात को शादी की पूर्व संध्या  के  एक कार्यक्रम से लौटा तो रात के ११ बजे थे . थोड़ी देर सोने का प्रयास किया , तभी किसी ने दस्तक दी . गेस्ट हाउस का कोई स्टाफ था - कहा , साहब कुछ चाहिए ? मैंने कहा - रूम में पीने का पानी नहीं है , एक बोतल पानी ला दो . वो हाँ भर के चला गया , लेकिन फिर लौटा नहीं .
 
अगले दिन सुबह करीब छह बजे फिर दरवाजे पर दस्तक हुई - खोला तो देखा तीन लोग सामने खड़े थे . एक के हाथ में एक ट्रे थी जिसमे थे बिस्कुट, दूसरे के पास एक चाय का जग और तीसरे के हाथ में प्लास्टिक के गिलासों की एक लम्बी मीनार . एक ने पूछा - साहब चाय ? मैंने कहा - दे दो , लेकिन कमरे में पानी नहीं है , एक बोतल पानी भी ला देना . उसने कहा - ठीक है साब, अभी भेजता हूँ . पानी नहीं आया . चाय बहुत स्वाद थी .
 
बीस मिनट बाद फिर दस्तक हुई . दरवाजा खोला तो वही तीन लोग उसी मुद्रा में - साब चाय ? मैंने कहा - भाई चाय तो ठीक है और दे दो , लेकिन पानी की बोतल का क्या हुआ ? उसने कहा - लो साब अभी भिजवाते हैं . मैं पानी की प्रतीक्षा करने लगा क्योंकि मुझे सुबह वाली दवाएं भी लेनी थी . पानी नहीं आया .
 
बीस मिनट बाद फिर दस्तक हुई . दरवाजा खोला तो वही तीन लोग . बोले- साहब चाय ? इस बार मैंने गुस्से में कहा - भाड़ में गयी चाय. तुम लोग किस मिटटी के बने हो . सुबह से पानी मांग रहा हूँ वो तो लाते नहीं ! एक बोला - साब अभी लाते हैं . मुझे उम्मीद नहीं थी .
 
पांच मिनट बाद फिर दस्तक हुई . मैंने दरवाजा खोला तो देखा की उन तीनों में सीक खड़ा था पानी की एक बोतल लिए . मैंने कहा - थैंक्स , सॉरी जरा गुस्से में कुछ कह दिया था .
 
पांच मिनट बाद फिर दस्तक हुई . इस बार उन तीनों में से दूसरा खड़ा था . बोला - साहब पानी ! मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी , मैंने कहा - चलो दे दो , अब कल तक नहीं मांगूंगा .
 
पांच मिनट बाद फिर दस्तक हुई . खोला तो उन तीनों में तीसरा खड़ा था हाथ में पानी की एक बोतल लिए . मेरी जोरदार हंसी  छूट  गयी . मैंने उसकी बोतल भी रख ली और कहा - भाई तुम लोग कमाल के लोग हो .
 
टयूब लाईट जरा देर से जली .