नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Tuesday, May 31, 2011

प्रिय पाठक

 प्रिय पाठक
 
आज थोड़ी बातचीत आपसे ! मुझे बहुत ख़ुशी होती है , जब मैं ये देखता हूँ कि न केवल भारत में बल्कि दुनिया कि विभिन्न देशों में हिंदी पढने और समझने वाले मित्र हैं , जो मेरे ब्लोग्स को पसंद करते हैं और पढ़ते रहते हैं . वास्तव  में आप का पढना ही मेरे लिखने का कारण और प्रेरणा है. क्या ही अच्छा होता अगर मैं आप के विचार जान पाता ! किसी रचना को पढ़ कर आप को शायद बहुत आनंद आता होगा ; किसी रचना को पढ़ कर लगता होगा कि कुछ कमी रह गयी . कभी आपके मन में ये भी आता होगा कि इस रचना को किसी और ढंग से लिखते तो अच्छा होता , कभी ये कि ये रचना ब्लॉग के लायक थी ही नहीं ! आप को जैसा भी लगता हो , अगर आप अपनी बात को हिंदी या अंग्रेजी में हर रचना के नीचे बने कमेंट्स नाम के लाइव लिंक को क्लिक कर के सामने आये हुए बॉक्स में लिखें . अपने नाम की जगह नाम लिखें . हाँ अगर इंटर नेट पर हिंदी में लिखना चाहें तो आप सहारा लें इस गूगल की इस ख़ास सेवा का जो आपको दुनिया की कितनी ही भाषाओँ में लिखने का पन्ना देती है ; लिंक ये है   www .google .com /transliterate   . थोड़े अभ्यास के बाद आप हिंदी में लिखना शुरू कर देंगे . जो लिखा उसे कॉपी और पेस्ट तकनीक से आप कमेन्ट  बॉक्स में छाप सकते हैं . आपके कमेंट्स मुझे बहुत सहयोग देंगे . अगर आपने किसी कमेन्ट के माध्यम से कोई प्रश्न पूछा तो मैं उसका कमेंट्स के माध्यम से ही उत्तर भी दूंगा .आशा करता हूँ आप से जुड़ने का मौका मिलेगा .
 
आपका मित्र
महेंद्र आर्य , मुंबई , भारत

Monday, May 30, 2011

फ़रिश्ते ऐसे होते हैं !

एक शख्स रोज सुबह जल्दी उठ कर सड़क पर निकल जाता है . नौ बजे तक घर लौट आता है , और फिर तैयार होकर अपने व्यापार के लिए निकल जाता है . शाम को लौट कर रात का खाना खाकर फिर २-३ घंटों के लिए बाहर चला जाता  है . उसकी बीवी को भी नहीं पता की वो रोज जाता कहाँ है.  ऐसे में जो ख्याल मन में आते हैं वो बुरे ही होते हैं , पता नहीं क्या चक्कर है ? रोज रोज कहाँ जाता है ? कुछ बताता क्यों नहीं ? आखिर एक दिन उसकी बीवी को पता लग ही गया की वो कहाँ जाता है और क्या करता है .

उस शख्स का नाम है प्रवीण गुप्ता और वो उड़ीसा के भुवनेश्वर  शहर में रहता है . उसका अपना बहुत बड़ा व्यापार है , अपार धन सम्पति है . वो रोज सुबह निकलता है , सड़क पर सो रहे गरीब भिखारियों के बीच जाता है . उनसे बात करता है . उनके जीवन की कहानी सुनता है . हर भिखारी के जीवन में कोई बहुत बड़ा कारण उसे मिलता है जिसके कारण वो इस प्रकार का जीवन जीने के लिए बाध्य हुआ . प्रवीण ऐसे एक व्यक्ति को अपने साथ लेकर अस्पताल में जाता है , जहाँ उस भिखारी को नहला धुला कर , उसके बालों को कटवा कर एक साफ़ सुथरा इंसान बनाया जाता है . फिर होता है उसका पूरा मेडिकल चेक अप . अक्सर उनके शरीर में इतने गहरे और पुराने  घाव होते हैं , जो बिना इलाज के सड़ने की नौबत तक पहुँच जाते हैं . प्रवीन उनके घाव अपने हाथों से साफ़ करता है . उनकी मरहम पट्टी करता है .उन्हें पेट भर भोजन खिलाता है . दवा और इलाज शुरू करता है . उनसे उनके रिश्तेदारों की पूरी जानकारी लेने की कोशिश करता है . 

दिन में फोन से , या कोई आदमी भेज कर उस भिखारी के घर वालों की तलाश करता है . कुछ अता पता न मिलने पर उडिया अखबार में विज्ञापन देता है . कुल मिला कर उसके घर के लोगों को खोज कर उनसे मिलाना उसका उद्देश्य बन जाता है .  घर वाले न मिलने तक वो भिखारी प्रवीण की सेवा  शुश्रूषा  में रहता है . रात के भोजन के बाद वो जाकर उनकी खबर लेता है . उन्हें सांत्वना और साहस देता है . उन्हें एक नए सिरे से अच्छी जिंदगी शुरू करने की प्रेरणा देता है . प्रवीण अब तक ऐसे ८५ लोगों  को सड़क से उठा कर उनके घर की चार दिवारी में सुख से जीवन  काटने के लिए भेज चुका है .जो उसे  जानते हैं- ख़ास कर अस्पताल और पुलिस के लोग , वो उसे भगवान ही मानते हैं और उसकी पूरी मदद करते हैं . 

प्रवीण अपने कार्यों की न कहीं चर्चा करता है , न उसे किसी से शाबासी  या प्रसिद्धि चाहिए. जो व्यक्ति अपनी पत्नी तक को अपने सत्कार्यों के बारे में नहीं बताता , उसे क्या कहेंगे आप . एक आम आदमी के रूप में ऐसे लोग फ़रिश्ते के सिवा क्या हो सकते हैं ?  


Tuesday, May 24, 2011

सोशल सर्विस


मैं जहाँ सुबह की सैर के लिए जाता हूँ , वहां देखता हूँ एक सज्जन को जो नित्य वहां आते हैं , धोती और कुरता पहने होते हैं . सर पर एक टोपी भी लगाते हैं . वो जब आते हैं तो उनके हाथ में एक थैला होता है , जिसमे भरी होती है हरी हरी पत्तियां . सबसे पहले वो वहां लगे एक पीने के पानी के नल पर जाकर उन पत्तियों को अच्छी तरह धोते हैं ; फिर थैले को लेकर अपनी सैर पर निकल जाते हैं . जो लोग उनसे पहले मिल चुके होते हैं , वो सभी उन्हें राम राम कह कर अभिवादन करते हैं . बहुत से लोग चलते चलते उनसे मुट्ठी भर पत्तियां लेते हैं , और आगे निकल जाते हैं .

एक दिन मैंने भी उनके पास जाकर कहा - राम राम ! उन्होंने  बड़े प्यार से उत्तर दिया - राम राम बेटा ! मैंने पूछा - बाबूजी , ये पत्तियां आप लेकर घूमते हैं तथा लोगों को बांटते  हैं , ये क्या है ? उन्होंने मुझसे पूछा - क्या तुम्हे डाईबिटिज का रोग है ? मैंने कहा - नहीं ! उन्होंने कहा - ये पत्तियां नीम की पत्तियां है जो मैं रोज सुबह एक पेड़ से तोड़ कर लाता हूँ . आजकल बहुत बड़ी मात्रा में ये रोग लोगों को  है ; ये पत्तियां चीनी की मात्रा को संतुलित करती हैं , लोग जानते तो हैं , लेकिन हर जगह नीम के पेड़ नहीं मिलते . इसलिए मैं ये सब के लिए ले आता हूँ . मैंने पूछा - बाबूजी ये काम तो आप बहुत अच्छा करते हैं ; जो पत्तियां बच जायेंगी उनका आप क्या करेंगे ? उन्होंने कहा - जाने के पहले मैं बची हुई पत्तियां वहां एक कुर्सी पर छोड़ देता हूँ . देर से आने वाले लोग वहां से अपने आप लेकर खा लेते हैं . 

मेरा मन उस सज्जन के लिए श्रद्धा से भर गया . निष्काम और निःस्वार्थ सेवा का एक अनुपम उदहारण था ये ! लोग कहते हैं , सोशल सर्विस या तो बहुत सारे पैसे खर्च कर के होती है या फिर बहुत सारा समय . इस टोपी वाले सज्जन ने मुझे सिखा दिया कि समाज सेवा के लिए सिर्फ ह्रदय में इच्छा होने की जरूरत है , बाकि कुछ हो या न हो !

मेरा प्रणाम उस समाज सेवक को ! 

Friday, May 20, 2011

एक खौफनाक सपना

टेलीविजन की ख़बरें देखते देखते न जाने कब आँख  लग गयी. कहतें हैं कि जो बातें हमारे अवचेतन मन में पड़ी रह जाती हैं , वही स्वप्न बन कर हमें नींद में दिखाई पड़ती है . गहरी नींद में एक स्वप्न देखा . स्वप्न कुछ  ऐसेथा - मैं हवाई जहाज से यात्रा कर रहा हूँ . पता चलता है कि  विमान में कोई बड़ी हस्ती भी है . पूछ - ताछ करने से पता चला की देश के गृह मंत्री श्री चिदंबरम साहब भी मेरे साथ उसी विमान में सफ़र कर रहें हैं.  . विमान करीब आधे घंटे की उड़ान पूरी कर चूका था . परिचारिकाएँ यात्रियों को नाश्ता आदि परोसने की तैयारी में थी. तभी सामने की तरफ कोकपिट  से बाहर  निकला एक व्यक्ति . हाथों में बन्दूक  लिए हुए . थोड़ी ही देर में विमान में उसके जैसे ३-४ लोग नजर आये , सबके हाथों में बंदूक थी. सबने मुंह पर कपडा लपेट रखा था.एक जो सामने से आया था,जो सबका सरदार लग रहा था - उसने चिल्ला कर कहा - " आप लोग ध्यान  से सुनो , ये प्लेन हमारे कब्जे में है . पायलोट के बाजू में हमारा साथी है ; हम लोग इस प्लेन को यहाँ से अफगानिस्तान लेकर जायेंगे . कोई भी अपना सीट से हिला तो हमारा साथी उसको गोली मार देगा " 
सारे लोग घबरा कर बैठ गए .कोई प्रार्थना करने लगा , कोई दबी आवाज में रोने लगा . थोड़ी देर में यात्रियों में से एक व्यक्ति की आवाज आई -" सुनिए ! मैं भारत का गृह मंत्री पी . चिदंबरम हूँ ! अगर आप अपनी बात मुझे बताएं तो मैं शायद आपकी मांगों पर कुछ विचार कर सकूं !" 
आतंकवादी ने हंस कर कहा - " मंत्रीजी , आपको कौन नहीं पहचानता ? आप की वजह से ही तो हमने ये प्लेन चुना है हमारे प्लान के लिए . क्यों , क्या आपको लगता है कि आप हमारी मांगों को पूरा करवा सकते हैं ? "
गृहमंत्री ने कहा - " क्यों नहीं , अगर तुम्हारी मांग हमारे मानने लायक होगी तो जरूर मानेंगे ! "
आतंकवादी ने हंस कर कहा - " मिनिस्टर साहब , मानने लायक बातों के लिए प्लेन हाईजैक  नहीं करना पड़ता . हमारी सिर्फ दो ही मांगे हैं - आपकी पारलियामेंट पर हुए हमले के कारण हमारे बहादुर सिपाही अफजल गुरु को आपने बंद कर रखा है, उसे आजाद कर दीजिये . "
गृह मंत्री परेशान हो गए - " ये तो बहुत मुश्किल है ! दूसरी मांग क्या है ? "
आतंकवादी ने कहा - " २६ नवम्बर के हमले के लिए आपने हमारे जांबाज साथी कसाब को मुंबई में बंद कर रखा है , उसकी आजादी चाहिए ! " 
गृहमंत्री बहुत परेशान हो गए .थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा - "देखिये ,मैं तो इस वक़्त आपका बंधक हूँ , इसलिए ये निर्णय लेना मेरे लिए मुमकिन नहीं . आपको हमारे प्रधान मंत्री से ही सीधे बात करनी होगी . "  
आतंकवादी हंसा -" वो तोमैं भी जानता हूँ , किसी भी बात पर फैसला करना तो आप लोगों की फितरत में ही नहीं ; वर्ना हमारे दोस्त अफजल और कसाब क्या अब तक जिन्दा बचे होते . " 
तभी पीछे से किसी बूढ़े आदमी ने कहा -" देखो भाई साहब मुझे एक बार बाथ रूम जाना जरूरी है ,.................   "
उसकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि उस आतंकवादी ने सीधा बंदूक उठा कर गोली दाग दी - धायं !
मेरी जोर से चीख निकल गयी . आँख खुली तो देखा कि मैं अपने बिस्तर पर था औरपूरी तरह से पसीने में भीगा हुआ था . 
अब ठीक हूँ और सोचता हूँ कि ऐसा सपना देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को क्यों नहीं आता !