नील स्वर्ग

नील स्वर्ग
प्रकृति हर रंग में खूबसूरत होती है , हरी, पीली , लाल या फिर नीली

Saturday, April 23, 2011

राम राज्य आया ही समझो !

मुझे याद है जब अन्ना हजारे का जंतर मंतर पर आमरण अनशन चल रहा था और सारा  देश अपने आप को अचानक एक क्रन्तिकारी मोड  में महसूस कर रहा था , उस समय हमारी श्रीमतीजी ने कहा - " ये सब ड्रामा २-४ दिन में ख़तम हो जाएगा और फिर  - वही ढपली और वही ताल !" उस समय मुझे बड़ा गुस्सा आया उन पर ! ये क्या ? हर चीज में बुराई ही ढूंढती रहती है . सारा देश देशभक्ति की डबल डोज लेकर मदमस्त है और ये देवी अपनी ही गा रही हैं .
डबल डोज - नहीं समझे ? अरे भाई , एक वीक  में तो जब भारत ने पहले पाकिस्तान को और फिर  श्री लंका को हरा कर क्रिकेट का विश्व कप जीता तब ; हाँ मुझे याद है वो दिन ! लगता था सारा देश सड़कों पर उतर आया था . एक हाथ में झंडा और दुसरे में बियर की और शैम्पेन की बोतल लेकर ! क्या नर क्या नारी , क्या स्कूटर क्या गाडी ! सारा माहौल जैसे देशभक्ति के रंग में सराबोर हो गया था . ऊपर से पहले स्टेडियम  में और फिर सड़कों पर बजते हुई  बॉलीवुड  की देशभक्ति अपने पूरे शबाब पर थी . आय हाय ! क्या गाने बज रहे थे – बार बार  हाँ , बोलो यार हाँ , अपनी जीत हो , उनकी हार हाँ ! ........और वो क्या था होकी वाला गाना - चक दे , हो चक दे इंडिया .....................और न जाने कौन कौन से ! ये अलग बात है की दो दिनों में जब देशभक्ति का बुखार उतरा तो यश  चोपड़ा जी ने देशभक्ति का बिल भेज दिया BCCI  को ! उनकी फिल्म का गाना बिना इजाजत बजने की रोयल्टी मांग ली ; मामूली सी ! मात्र २५ लाख रुपैये ! अरे भाई , इसमें बुरा क्या किया ; जब BCCI  खुले आम करोड़ों रुपैये बाँट रही थी उन अदना से खिलाडियों को तो क्या २५ लाख जैसी मामूली रकम नहीं दे सकती थी उन गानों को बजवाने के लिए . आखिर मैच जीता तो गया था इन्ही गानों की बदौलत .  
लेकिन हम बात कर रहे थे अन्ना की ! हाँ तो पाठकों , डबल डोज की दूसरी डोज तो थी ही अन्ना की चलाई हुई आंधी . हर व्यक्ति अपने आप को किसी तरह इस आन्दोलन से जोड़ना चाहता था . जुड़ना आसान भी थे . डेढ़ रुपैये की एक मोमबत्ती लेकर जलानी थी कहीं भी ; हाँ अपने घर से बाहर. जहाँ दस लोगों ने मिल कर एक जगह दस मोमबत्ती जला दी , समझो जुड़ गए आन्दोलन से . मुझे तो लगता है ये किसी मोमबत्ती बनाने वाले के दिमाग की योजना है . कोई भी विरोध प्रगट करना हो तो मोमबत्ती तैयार .कोई समर्थन करना हो तो भी मोमबत्ती ! बूम आ गया मोमबत्ती के व्यापार में . अन्ना के साथ सैंकड़ों  लोगों ने अनशन किया . क्या आप को नाम याद है किसीका ? नहीं न ? हाँ तो बात ये है की सिर्फ अनशन करने से कोई प्रसिद्द नहीं हो जाता .जुड़ने का सबसे सस्ता और माकूल तरीका है  मोमबत्ती ! बहरहाल सरकार जागी , लेकिन अन्नाजी को पूरा  टेस्ट करने के बाद .
फिर शुरू हुआ इस भ्रस्टाचार उन्मूलन अभियान का दूसरा अध्याय . सरकार की जैसी आदत है , उन्होंने हर बात के लिए ना कहना शुरू किया. लोकपाल बिल को लिखने की कमिटी में बाहरी  लोग ? क्या बात करते हैं ? ये तो संभव ही नहीं है ? आखिर संभव हो गया  ! कमिटी का अध्यक्ष कोई जनता का आदमी - असंभव ? ये भी संभव हुआ ! अन्ना ने कहा - कमिटी में शरद पवार जैसे लोग ? सरकार ने कहा - क्यों क्या बुराई है उनमे ? अपने मंत्रालय के अलावा भी बहुत सी चीजों में दिलचस्पी रखतें हैं वो - मसलन क्रिकेट ! क्या तुम्हारा बिल ICC की कुर्सी सँभालने से ज्यादा पेचीदा है ?  अरे लोकपाल क्या चीज है ? क्रिकेट में तो न्याय की परिकाष्ठा है ! मैदान पर खड़े दो अम्पायर जब सही फैसला नहीं दे पाते तो तीसरा अम्पायर पविलियन में बैठा आधुनिक तकनीक के सहारे फैसला देता है . खैर जनाब , सरकार कुछ भी कहती रही , लेकिन शरद पंवार साहब ने आने वाले खतरे को भांप लिया और आनन फानन में प्रस्तावित कमिटी से इस्तीफ़ा दे दिया . बच गए समझो , क्योंकि इसके साथ उनका नाम ख़बरों से गायब हो गया .
खैर जनाब , कमिटी बनी और आज तक भी कमिटी ही विषय चल रहा है . जब द्रौपदी का चीर हरण हुआ था तब उसने भगवन कृष्ण को मदद के लिए पुकारा था ; वैसे ही जब जब कांग्रेस पार्टी का चीर हरण संभावित होता है , तब तब महामहिम श्री अमर  सिंघजी अवतरित होतें हैं . इस बार फिर अपने सुदर्शन चक्र को लेकर उतर आये और सीधा प्रहार किया - जनता की कमिटी के अद्यक्ष श्री शांति भूषण जी पर . शांति भूषण पहले वार से बच पाते , उसके पहले ही किया दूसरा वार प्रशांत भूषण पर . उधर जब युद्ध  का मैदान खुला देखा तो कूद पड़े कांग्रेस के दूसरे हीरो - श्रीमान दिग्विजय सिंघजी !     दिग्गी राजा की एक ख़ास बात है जिसके लिए वो मीडिया में बने रहते हैं ; किसी को बुरा भला कहना या किसी की इज्जत के साथ तलवारबाजी करना .इस बार दिग्गी का निशाना बने जन कमिटी के दूसरे सदस्य  श्री संतोष हेगड़े . उन्हें ये सब सहने का अनुभव नहीं था , तो उन्होंने हथियार डालने का फैसला किया . आन्दोलन के मुख्य सारथी श्री अरविन्द भाई केजरीवाल आजकल कम बोल रहें हैं . नपा तुला बोलने में ही भलाई है . अन्नाजी बेचारे भोले भाले मराठी सज्जन ! मीडिया ने ज्यादा जोर दिया तो कह बैठे - अरे भाई मैं तो इन दोनों भूषणों को जानता ही नहीं था . दिल्ली आया तो पहली बार मिला . सबने कहा तो ले लिया इनको कमिटी में .
आज की ताजा रिपोर्ट पढ़ कर तो ऐसा लग रहा ही राम राज्य यूँ ही आ जायेगा , किसी लोकपाल या अन्ना हजारे की जरूरत ही नहीं है . लीजिये पढ़िए आज के अखबार के ये कुछ ताजा बयान!
शरद पवार जी ने आज एक सभा में कहा -" समाज इस बढ़ते हुए भ्रस्टाचार से बहुत दुखी है .ये कहना बहुत मुश्किल है की पिछले दिनों जो बड़े बड़े घोटाले देश के सामने आये उनमे कितना सत्य है , लेकिन जनता छुटकारा चाहती है इस भ्रष्टाचार नामक बीमारी से !मैं नहीं जानता की जनता को मिलाकर ये लोकपाल बिल बनाने की कमिटी का गठन किया गया है , ये एक प्रजातान्त्रिक देश के लिए कितना सही है; बहरहाल हमारी पार्टी भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान में पूरा सहयोग करेगी "
लो साहब, अब बचा क्या ! आधा काम तो यहीं पूरा हो गया ! आगे देखिये -
जस्टिस संतोष हेगड़े ने इस बात पर संतोष जताया की सरकारी अध्यक्ष श्री प्रणव मुखर्जी  ने उन्हें विश्वास  दिलाया है कि सरकार इस भ्रस्टाचार विरोधी कानून को सख्त से सख्त बनाने में पूरा साथ देगी ; इस बात से संतुष्ट होकर हेगड़े साहब ने कमिटी ना छोड़ने का फैसला किया . 
प्रणव मुखर्जी ने कुछ कह दिया तो समझो कि सोनिया जी ने कह दिया . आगे के समाचार -
उत्तर प्रदेश कि मुख्यमंत्री कुमारी मायावती ने इस कमिटी के संगठन पर अपना असंतोष व्यक्त किया .कारण  ये बताया कि इस कमिटी में दलितों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं  है ! उन्होंने कहा कि दस लोगों कि इस कमिटी में जहाँ पांच सरकार के मंत्री हैं और पांच जनता के प्रतिनिधि , वहां उसमे एक भी दलित का ना होना क्या ये नहीं दर्शाता कि इस कमिटी के बनाने वालों कि मानसिकता जातिवादी है .उन्होंने ये भी बताया कि उनकी सरकार तो पहले से ही राज्य से भ्रष्टाचार कि जड़ें काटने में उन्मुख है . उन्हें अन्ना का साथ देने में कोई परहेज नहीं है लेकिन क्यों ना एक बंदा  दलित प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया जाए . हाँ , उन्होंने दिग्गी को भी आड़े हाथों लिया इस बात पर कि अन्ना को सबसे पहले उत्तर प्रदेश में अपनी जंग चेद्नी चाहिए . मायावतीजी ने कहा - उत्तर प्रदेश से क्यों ? पहले अपने कांग्रेस शासित  प्रदेशों कि तो सफाई करवा लो ! उत्तर प्रदेश में तो भ्रष्टाचार हमें विरासत में मिला है , जिसे हटाने के लिए हम तन मन धन से लगे हैं !
लो जी हो गयी ना पूरी फतह ! मायावती जी भी साथ आ गयी तो अब लड़ाई कहाँ बची . किससे लड़ेंगे हमारे यौद्धा ? जब मित्र शत्रु का ही भेद मिट गया फिर रहा क्या ! और अगली खबर -  
राज्य सभा के सदस्य श्री अमर सिंघजी ने कहा - कि दोनों भूषणों को इस कमिटी से त्यागपत्र देकर ईमानदारी, पारदर्शिता और जिम्मेवारी के वो ऊंचे आयाम प्रस्तुत करने चाहिए जो आरोप लगने पर पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण जी अडवाणी ने , पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री  ने, टी टी कृष्णम्माचारी ने , माधव सिंह सोलंकी ने तथा नटवरसिंह जी ने प्रस्तुत किये . अमर सिंघजी ने कहा कि जो अपेक्षाएं राज नेताओं से कि जाती हैं , वही नियम जन प्रतिनिधियों पर भी लागू होने  चाहिए.   
अब अमर सिंह जैसे नेता ईमानदारी, पारदर्शिता और जिम्मेवारी के  ऊंचे आयाम के गीत गायेंगे तो भ्रस्टाचार बच कर कहाँ जाएगा . आगे खबर ये है -
देश के कानून मंत्री और कमिटी के सदस्य श्री वीरप्पा मोइली ने ऐसा विश्वास दिलाया कि उनकी सरकार लोकपाल बिल को जल्दी से जल्दी संसद में पेश करने के लिए वचन बद्ध है. इस समय ये सरकार का मुख्या और प्राथमिक कार्य है . उधर विरोधी पक्ष बी जे पी के प्रवक्ता श्री शांता कुमार ने कहा कि मात्र बिल को संसद में पेश करने से कुछ नहीं होगा . उन्होंने कहा कि पिछले ४२ वर्षों में  ८ बार संसद में पेश किये जाने के बावजूद  ये बिल संसद ने पारित नहीं किया .  प्रधान मंत्री जी को चाहिए कि इस बिल को ना केवल जल्द से जल्द संसद में लायें बल्कि इसे पारित भी करें .उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस बिल को पूरा समर्थन देगी !
अब क्या बचा ! विरोधी पक्ष ने भी संसद के पहले ही पारित कर दिया इस बिल को . सब कुछ सही चल रहा है , फिर भी ना जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि कुछ भी सही नहीं है . ये नेता जो कुछ कहते हैं उसका उल्टा करते हैं . अन्दर कि तैयारी  ये है कि इस कमिटी की  ही धज्जियाँ उड़ा दी जाये ताकि सरकार पर कोई तोहमत ना लगे .
आज अखबार पढ़ते हुए , पहली बार मुझे ऐसा लगा कि मुझ से ज्यादा राजनीति की  समझ है मेरी धर्मपत्नीजी को , जिन्होंने बारात सजने के वक़्त ही तलाक  की  घोषणा कर दी थी !

Friday, April 8, 2011

भ्रष्टाचार से पहले अपने आप से लड़ें !

भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जोरदार मुहिम छेड़ी है , अन्ना हजारे ने . जब एक आम आदमी अपने प्राणों को दांव पर लगा कर लड़ता है, भ्रष्टाचार  के राक्षस  से  तो उसके साथ सारा देश जुड़ जाता है . बहुत गालियाँ पड़ रही है राज नेताओं को और सरकार को . लोग आगे बढ़ बढ़ कर अपना समर्थन दे रहें हैं अन्ना को . लेकिन ये समय है आत्म मंथन का भी . क्या आपने बाइबल की वो कहानी सुनी है - जिसमे एक पापी को दण्डित करने के लिए बहुत बड़ी भीड़ जमा थी अपने हाथों में पत्थर लेकर ; लेकिन ईशा ने शर्त रखी के पहला पत्थर वो ही उठाये जिसने जीवन में कोई पाप नहीं किया हो .और फिर सब के हाथ से पत्थर छुट कर गिर गए जमीन पर .
 
भ्रष्टाचार सिर्फ वही नहीं है जो कलमाड़ी ने किया ; भ्रष्टाचार वही नहीं जो राजा ने किया ; इस देश के दैनिक जीवन में भ्रष्टाचार जड़ से लेकर शिखर तक कूट कूट के भरा है . आइये जरा चर्चा करें हमारे जीवन के छोटे छोटे उदाहरणों की . बच्चे को स्कूल में दाखिला नहीं मिल रहा , किसी को पैसे देकर मिलता है तो हम तुरत तैयार हो जाते हैं . रेल की टिकट नहीं मिल रही , किसी टिकट बाबू को घूस देकर सीट मिलती है तो हम तैयार हैं . इनकम टैक्स का अफसर हमारे भरे गए रिटर्न में खामियां निकल कर उसमे टैक्स और जोड़ने की बात करता है , हम उसे ले दे के सलटाने में विश्वास रखतें हैं . स्कूल और कोलेज के छात्रों को अगर इम्तिहान का परचा कहीं से मिलता हो तो वो कुछ भी करने को तैयार हैं . पैसे लेकर शिक्षक पर्चे की हिंट देने को तैयार है ; स्कूल में ढंग से नहीं पढ़ने वाला मास्टर पैसे लेकर प्राइवेट टूशन पढ़ाने को तैयार है. ब्लैक में टिकट लेकर सिनेमा देखना तो हमारे यहाँ शाश्वत नियम रहा है .  डाक्टर अपनी फीस कमाने के लिए बिना जरूरत के टेस्ट और यहाँ तक की  ऑपरेशन लिख देता है ; सामान्य गर्भ की अवस्था में भी आज ज्यादातर प्रसव पेट काट कर किये जाते हैं .अस्पताल गर्भ का लिंग परीक्षण कर कन्याओं को जड़ से मिटाने में लगें हैं. फिल्म स्टार अवैध शारीरिक संबंधों की चर्चा खुले आम करते हैं .
 
हर जगह हर चीज 'मैनेज' और हर अवस्था का ' अडजस्टमेंट ' होता है . सिर्फ देश का श्रमजीवी ही एक ऐसा वर्ग है जिसके पास भ्रष्टाचार करने के न तो कारण हैं और न ही साधन . इसके अलावा समाज के हर व्यक्ति को अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए . आज अगर  अरविन्द केजरीवाल , किरण बेदी और स्वामी अग्निवेश जैसे लोग अपनी छाती ठोक कर अन्ना के साथ खड़े हैं तो इसलिए की उनका मनोबल अन्ना की तरह साफ़ है . बेईमान आदमी अन्ना के मंच के आस पास भी नहीं फटकते .
 
इस लेख के लिखने का मेरा प्रयोजन ये है , कि आज समय है जब की हम सब एक प्रण लेवें कि हम अपने जीवन में किसी भ्रष्टाचार  में शामिल नहीं होने देंगे . न रिश्वत लेंगे, न देंगे ! टैक्स की चोरी नहीं करेंगे ! व्यक्तिगत फायदे के लिए गलत काम नहीं करेंगे ! हर चुनाव में वोट डालने जायेंगे ! अपराधी छवि वाले या किसी गलत काम में लिप्त व्यक्ति को वोट नहीं देंगे! अपनी  जातिगत सोच से ऊपर उठ कर सही व्यक्ति का चुनाव ही करेंगे ! अगर कोई भी व्यक्ति सही नहीं है तो अपने वोट पर रद्द होने के निशान लगा कर सबको नकार देंगे !  लाइन तोड़ के किसी का हक़ नहीं मारेंगे ! किसी के गलत काम में उसका साथ नहीं देंगे ! अगर हम सबने अपने जीवन में कुछ बदलाव लाने का फैसला ले लिए तो समझिये अपने आप ही समग्र क्रांति का सूत्रपात हो जाएगा . अगर हम ये सब कुछ कर सकने के लिए समर्पित हैं तो हमें अधिकार है अन्ना के साथ मंच पर बैठने का और भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन में भाग लेने का !       

Wednesday, April 6, 2011

अन्ना हजारे

एक बार फिर अन्ना हजारे आमरण अनशन पर हैं . और इस बार जिस मुद्दे पर हैं उसने देश की सभी राजनैतिक पार्टियों की नींद हराम कर दी है . मुद्दा है - १९६८ से लटक रहे लोकपाल बिल का . लोकपाल बिल जिसमे एक ऐसी स्वतंत्र व्यवस्था है जो भ्रस्टाचार   के उन्मूलन के लिए होगी . लोकपाल बिल एक ऐसी हड्डी है राजैतिक दलों के लिए जो गले में फंसी बैठी है . हर सरकार अपने शासन  काल में एक कोशिश करती है कि किसी तरह ये फांस निकल जाए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. इसलिए हर ५-७ साल में संसद में इस विषय पर बहस का एक नाटक होता है और फिर ये विषय पहुँच जाता है ठन्डे बस्ते में !

इस बार सरकार फंस गयी है . अन्ना हजारे जैसा व्यक्ति जब आमरण अनशन की चुनौती देता है तो वो खोखली धमकी नहीं होती . न ही वो अनशन राजनैतिक नेताओं जैसा होता है , जो नाश्ते के बाद शुरू हो और दोपहर के खाने तक समाप्त हो जाए . सारा जोर लगा रखा है पक्ष और  विपक्ष ने कि  किसी तरह ये अनशन  समाप्त हो और बुड्ढा बातचीत के लिए मान जाये . उन्हें और भी ज्यादा गुस्सा आता है जब किरण बेदी और केजरीवाल जैसे जोशीले लोग अन्ना के प्रवक्ता के रूप में सरकार को फटकार लगते हैं . टी वी के एक न्यूज़ चैनेल की  बहस में तो कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक  सिंघवी ने गरमा कर कह दिया कि इस तरह सरकार कि कनपटी पर बन्दूक रख कर बात मनवाने की कोशिश ठीक नहीं   . लेकिन उनके पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं कि क्यों यह बिल ४२ साल बीत जाने के बाद भी पास नहीं हुआ , इस बिल का जो सरकारी मसौदा  है वो कैसे भ्रस्टाचारियो के खिलाफ काम करेगा जब राजनैतिक पार्टियाँ ही इसे बनायेंगी , वो ही भ्रस्टाचार की शिकायतें सुनेगी और तय करेंगी कि इस पर कोई कार्यवाही हो या नहीं , हो तो  कौन करे और क्या करे .अच्छा मजाक है . चोरों को ही जज की  कुर्सी  पर बिठा दें ? वो तो बैठे हैं ही न ! इसीलिए तो राजा हो या कलमाड़ी - प्रधानमंत्री के चहेते बने रहतें हैं . जनता ने इन्हें नंगा किया है . मीडिया ने मुद्दा सामने ला के रखा , कोर्ट ने सक्रिय भूमिका निभाई .

सरकार अन्ना के अनशन को हल्का न समझे . ये कोई गीदड़ भभकी नहीं है . ये एक चिंगारी है जो सूखे फूस के ढेर पर रखी हुई है. चिंगारी के आस पास की फूस तो प्रज्ज्वलित हो चुकी है ; आंच फ़ैल रही है . देश के सभी शहरों में लोग इस विषय पर सड़क पर उतर रहें हैं . मिश्र देश ने भारत को फिर एक बार सिखाया है कि  क्रांति बिना लड़े भी होती है . इस बार उद्देश्य सरकार का तख्ता पलटने का नहीं बल्कि भ्रस्टाचार का आमूल उन्मूलन है . थोड़ी बहुत जान हो तो आप भी शामिल हो जाएँ अन्ना के सत्याग्रह  में !